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Jharkhand Traditions: स्त्री नहीं जोत सकती खेत, रंग लगाया तो शादी तय, दुल्हन लेकर जाती है बरात

Jharkhand Interesting Traditions झारखंड की पहचान और शान दोनों हैं आदिवासी। संताल आदिवासी उरांव आदिवासी और हो आदिवासी समुदाय की यहां बड़ी आबादी है। इन तीनों समुदायों की अपनी परंपराएं हैं। यह परंपराएं इनकी पहचान हैं। आइए जानते हैं इनकी कुछ रोचक परंपराएं।

By M EkhlaqueEdited By: Updated: Wed, 31 Aug 2022 04:02 PM (IST)
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Unique Traditions In Jharkhand: झारखंड में आदिवासी समुदाय के बीच कई परंपराएं प्रचलित हैं।
रांची, डिजिटल डेस्क। Jharkhand Aadivasi Traditions झारखंड का आदिवासी समाज अपनी विशिष्ट जीवनशैली, कला-संस्कृति और राेचक परंपराओं के लिए भी जाना जाता है। जंगलों और पहाड़ों में रहने वाले इस समाज में अनेक ऐसी परंपराएं जिंदा हैं, जिन्हें सुनकर दंग रह जाएंगे। शहरीकरण, आधुनिकता और विज्ञान-तकनीक के कारण इस समाज में तेजी से बदलाव आ रहा है, लेकिन पुरखाें की परंपराओं को इस समाज ने अब भी सहेज रखा है। इन परंपराओं को सुनकर आपके हमारे मन में तरह-तरह के सवाल उठ सकते हैं, लेकिन इससे इस समाज पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। पुरखों की परंपराओं का यहां पूरी मुस्तैदी के साथ सम्मान किया जाता है। इन तमाम परंपराओं को आदिवासी समाज प्रकृति से जोड़ कर देखता है। वजह, आदिवासी स्वयं को प्रकृति पूजक मानते हैं। प्रकृति ही उनके लिए सबकुछ है। प्रकृति के बिना उनका अस्तित्व ही नहीं।

झारखंड में 32 आदिवासी जनजातियां करती हैं निवास

झारखंड में वर्तमान में कुल 32 प्रकार की जनजातियां निवास करती हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-342 के तहत राष्ट्रपति ने जिन जनजातियों को अधिसूचित कर रखा है, उनमें उरांव, संताल, मुंडा, हो, खरवार, खड़िया, भूमिज, लोहरा, चेरो, चीक बड़ाइक, गोंड, गोड़ाइत, बथुडी, करमाली, बिंझिया, खोंड, किसान, कोरा, कवर, कोल, माहली, बेदिया, बंजारा, बैगा, असुर, बिरहो, बिरजिया, कोरवा, सबर, परहिया, सौरिया पहाड़िया और माल पहाड़िया शामिल हैं। इनमें आठ को आदिम जनजाति की श्रेणी में रखा गया है। इनमें बिरहोर, कोरवा, असुर, परहिया, विरजिया, सौरिया पहाड़िया, माल पहाड़िया तथा सबर शामिल हैं। इन सभी जनजातियों की अपनी विशेष जीवनशैली और परंपराएं हैं। यही इनकी पहचान भी है।

उरांव समुदाय में महिलाएं नहीं कर सकती खेत की जुताई

यूं तो झारखंड में सबसे ज्यादा आबादी संताल आदिवासियों की है। दूसरे नंबर पर उरांव आदिवास आते हैं। इस समुदाय में एक रोचक परंपरा यह है कि महिलाएं खेतों की जुताई नहीं कर सकती हैं। यानी महिलाएं खेत में हल और बैल लेकर जमीन की जुताई कर उसे खेती लायक नहीं बना सकती हैं। इसे बहुत बड़ा अपशगुन माना जाता है। इस समुदाय का कहना है यह काम सिर्फ और सिर्फ पुरुषों का है। पुरखों के जमाने से यह परंपरा चली आ रही है। वह इसे किसी सूरत में नहीं बदल सकते हैं। कुछ माह पहले गुमला जिले के सिसई प्रखंड की शिवनाथपुर पंचायत में मंजू उरांव ने ट्रैक्टर से खेत की जुताई कर दी थी। इसके बाद गांव के लोग उसके खिलाफ हो गए। स्नातक पास मंजू उरांव को सामाजिक बहिष्कार की धमकी तक मिलने लगी। परिवार वाले तर्क देते रहे कि उसने हल और बैल से खेत की जुताई नहीं की है, बल्कि ट्रैक्टर से जुताई की है। इसलिए इसको अपशगुन नहीं माना जाना चाहिए। किसी तरह यह मामला शांत हुआ। बरहहाल, उरावं जनजाति झारखंड के दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू प्रमंडल में सबसे अधिक निवास करते हैं। इस जनजाति में 14 प्रमुख गोत्र हैं। लकड़ा, रुंडा, गारी, तिर्की, किस्पोट्टा, टोप्पो, एक्का, लिंडा, मिंज, कुजुर, बांडी, बेक, खलखो और केरकेट्टा गोत्र शामिल हैं।

हो आदिवासी में दुल्हन लेकर जाती है दूल्हे के घर बरात

झारखंड में हो आदिवासी आबादी के लिहाज से चौथा बड़ा समुदाय है। कोल्हान प्रमंडल के विभिन्न जिलों में इनकी सबसे अधिक आबादी है। इनमें 80 से ज्यादा गोत्र हैं। बोदरा, अंगारिया, बालमुचू, चांपिया, बारला, तामसोय और हेमासुरीन इनमें से प्रमुख गोत्र हैं। इस समाज में कई अनूठी परंपराएं पुरखों के जमाने से चली आ रही हैं। इन्हीं में से एक है लड़का-लड़की की शादी। शादी यहां पांच प्रकार की होती हैं। इनमें आंदि बपला, दिकू आंदि, राजी-खुशी, ओपोरतिपि व अनादर शामिल हैं। समुदाय के भीतर एक गोत्र में शादी नहीं हो सकती है। इतना ही नहीं यहां घर-जमाई बनने का भी रिवाज नहीं है। यहां दुल्हन बरात लेकर दूल्हे के घर जाती है। दूल्हे के घर पर ही हर रस्म पूरी की जाती है। देहेज जैसे बुराई यहां नहीं है। हां, दूल्हा पक्ष को ही एक जोड़ी बैल-गाय और कुछ नकद राशि देनी पड़ती है। दुल्हन जब बरात लेकर पहुंचती है तो हर कोई नाचता गाता है। दूसरे दिन बरात वापस आती है और दुल्हन अपने नए घर में रह जाती है।

संताल आदिवासी में लड़की पर रंग डालना सख्त मना

अब बात करते हैं संताल आदिवासी समुदाय की। आबादी के लिहाज से झारखंड का यह सबसे बड़ा समुदाय है। इस समुदाय में हर वर्ष बाहा पर्व मनाया जाता है। यह पर्व बसंत ऋतु के समय ही मनाया जाता है। कई दिनों तक यह त्योहार चलता है। इसमें किसी लड़की पर रंग डालने की इजाजत नहीं होती है। अगर आपने किसी लड़की पर रंग डाल दिया तो उससे आपको शादी करनी पड़ सकती है। इतना ही नहीं संताल समुदाय इसके लिए रंग डालने वाले को दंडित भी कर सकता है। जुर्माना भी लगा सकता है। यह दंड तय होता है लड़की की मर्जी से। इस त्योहार के दिन यह समुदाय तीर-धनुष की पूजा करता है। यह त्योहार एक दिन नहीं मनाया जाता। गांव के लोग अपनी सुविधा अनुसार इसकी तारीख तय कर के मनाते हैं। त्योहार के समय कोई कामकाज नहीं करता। लोग सिर्फ और सिर्फ मस्ती करते हैं। हां, यदि कोई मजाकिया रिश्ता है, और आप उससे आनंद वास्ते होली खेलना चाहते हैं तो पानी और फूल का इस्तेमाल कर सकते हैं। बाहा का अर्थ फूल होता है। इसलिए इस त्योहार में फूलों से होली खेलने की परंपरा पुरखों के जमाने से चली आ रही है।

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