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Jharkhand News: साहिबगंज में गंगा का रौद्र रूप, कटाव में अब तक इतने घर नदी में समाए; विस्थापन को विवश लोग

साहिबगंज में गंगा किनारे तेज गति से कटाव जारी है। इससे जिले के कई प्रखंड इसकी चपेट में आ गए है। गंगा किनारे रहने वाले लोग विस्थापन को मजबूर हैं। इस साल अब तक 18 घर गंगा नदी में समा गए हैं। लोग सुरक्षित स्थान की ओर पलायन कर रहे हैं।पिछले साल 150 से अधिक परिवार सुरक्षित स्थान के लिए विस्थापित हुए थे।

By Nav Kumar MishraEdited By: Shashank ShekharUpdated: Sun, 01 Oct 2023 06:47 PM (IST)
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साहिबगंज में गंगा किनारे तेज गति से कटाव, अब तक इतने घर नदी में समाए

नव कुमार मिश्रा, उधवा (साहिबगंज)। साहिबगंज जिले में उधवा प्रखंड की पूर्वी प्राणपुर पंचायत, पश्चिम प्राणपुर पंचायत के अजमत टोला, दक्षिण पलाशगाछी पंचायत के बानुटोला चुआर तथा उत्तर पलाशगाछी पंचायत के खट्टीटोला व नाकिरटोला में गंगा किनारे कटाव तेज हो गया है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस बार अब तक 18 घर व एक मस्जिद गंगा नदी में समाया है। कितना भूभाग गंगा में समाया है, इसका कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है, लेकिन पूर्वी प्राणपुर पंचायत के हुसैनाबाद मौजा में 50 से 60 बीघा जमीन गंगा नदी में समाने की बात कही जा रही है।

पिछले साल 150 से ज्यादा परिवार हुए विस्थापित

कटाव से लोगों में दहशत है। गंगा नदी किनारे बसे लोग सुरक्षित स्थान की ओर पलायन कर रहे हैं। इस साल करीब 50 तो पिछले साल 150 से अधिक परिवार विस्थापित हुए। पूर्वी प्राणपुर तथा पश्चिमी प्राणपुर के सौ से अधिक परिवार पश्चिम बंगाल के मालदा, 70 से अधिक परिवार कटहलबाड़ी पंचायत के मदिया गांव में बस गए हैं।

कई परिवारों ने प्राणपुर दियारा के कृषि क्षेत्र में आवास बनाया है। पतौड़ा पंचायत के पहाड़ गांव, दरगाहडांगा तथा मोहनपुर पंचायत के बाघपिंजरा, किष्टोपुर, रामपुर, तालबन्ना में भी विस्थापितों ने घर बनाया है।

पूर्वी प्राणपुर पंचायत के पूर्व मुखिया बेचन मंडल ने बताया कि विगत कई सालों की तुलना में इस बार कटाव कम हुआ है, लेकिन फिर भी हुसैनाबाद मौजा में 50 से 60 बीघा जमीन गंगा नदी में समा गया है। दक्षिण पलाशगाछी पंचायत तथा पूर्वी प्राणपुर पंचायत का 70 प्रतिशत हिस्सा कटाव से गंगा नदी में समाहित हो चुका है।

पूर्वी प्राणपुर का जीतनगर, खटियाकाना, गणेश मंडल टोला तथा जलबालू गांव का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। अभी कातलामारी गांव में तीव्र गति से कटाव हो रहा है। इसके बाद श्रीधर दियारा पंचायत का दस नंबर कालोनी कटाव की जद में आ आएगा। उत्तर पलाशगाछी पंचायत अंतर्गत खट्टीटोला तथा नाकिरटोला में कटाव हो रहा है।

जुलाई से अक्टूबर तक होता कटाव

गंगा अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं के कारण हमेशा अपने प्रवाह पथ को बदलती रहती है। बारिश के कारण सहायक नदियों को अपने में समाहित कर गंगा नदी तेज रफ्तार से आगे बढ़ती है। गंगा नदी में जुलाई से अक्टूबर तक उफान रहता है और अपने तटों को आसानी से काटती है।

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि अमुमन जुलाई से अक्टूबर तक गंगा नदी का जलस्तर चढ़ने तथा घटने के समय मिट्टी में नमी होने के कारण जमीन नीचे की ओर धंसती है। इसके कारण कटाव अधिक होने लगता है। फिलहाल जलस्तर कम हो रहा है। ऐसे में गंगा कटाव का होना स्वाभाविक है।

कटाव निरोधी कार्य से हो सकता है निदान

समस्या के समाधान के लिए जुलाई 2012 में गंगा कटाव संघर्ष समिति का गठन किया गया था। समिति के अध्यक्ष मो. बदरुद्दीन शेख ने बताया कि वर्ष 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने सौ करोड़ रुपए की लागत से कटाव रोकने की योजना बनाई थी पर जल संसाधन विभाग ने फंड की कमी के कारण मात्र दो करोड़ रुपए से बोल्डर पिचिंग कार्य कराया।

बाद में हेमंत सोरेन की सरकार ने 2013-14 में पचास करोड़ रुपए खर्च कर तीन जगह पर कटाव रोकने के लिए बोल्डर पिचिंग कार्य कराया। इसमें नाकिरटोला के उत्तर भाग से खट्टीटोला, बानुटोला से शुभानटोला तथा जालिम टोला से श्रीधर कालोनी नंबर दस तक का आंशिक हिस्सा शामिल है।

लगभग साढ़े आठ किलोमीटर हिस्से पर जहां कटावरोधी कार्य किया गया है वहां कटाव नहीं हो रहा है। शेष साढ़े आठ किलोमीटर हिस्से में कटाव जारी है।

योजना बनाकर काम किया जाना चाहिए

जिला प्रशासन, नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) और स्थानीय जनप्रतिनिधि कटाव के बढ़ते खतरे को लेकर लगातार मंथन कर रहे हैं। दिसंबर 2021 में आईआईटी रुड़की की टीम ने जिले के कटाव प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर कुछ सुझाव दिए थे, जिस पर अब तक अमल नहीं हुआ है।

मौके का जायजा लेने के बाद आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर जेड अहमद ने बताया था कि कटाव की समस्या गंभीर रूप ले रही है। इसे रोकने के लिए नदियों पर काम करने वाली एजेंसियों की निगरानी में कार्य योजना बनाकर जल्द से जल्द काम शुरू किया जाना चाहिए।

जब तक पूरी स्थिति का अध्ययन नहीं कर लिया जाता, कोई भी कदम उठाया जाना नाकाफी होगा। साहिबगंज से लेकर वाराणसी तक गंगा कटाव को रोकने के लिए समन्वित योजना बनाकर काम किया जाना चाहिए।

बराज के बाद बढ़ी परेशानी

गंगा नदी के बांग्लादेश की सीमा में प्रवेश करने से पूर्व पश्चिम बंगाल में 1975 में फरक्का बराज बनाकर बांध दिया गया है। जब से नदी बंधी है तब से गंगा नदी ने रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया।

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अपने प्रवाह पथ में जमा गाद की वजह से प्रवाहित होने वाली बाधा की पीड़ा से अपने तटों को खंगाल रही है। बिहार से झारखंड की सीमा में प्रवेश करने के बाद साहिबगंज, राजमहल तथा उधवा में गंगा नदी अपने तट को काट रही है। पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में भी कटाव जारी है।

राजस्व कर्मचारी के प्रतिवेदन के अनुसार इस साल अंचल में 18 घर व एक मस्जिद गंगा में समाया है। कुछ भूमि का भी कटाव हुआ है लेकिन वह कितना है इसका कोई रिकार्ड नहीं है। कटाव पर नजर रखी जा रही है। सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।- विशाल पांडेय, सीओ, उधवा

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