यहां बच्चोंं के पेट में दागी जा रही लोहे की छड़, चीख से गूंज उठता पूरा जिला; अंधविश्वास पर टिकी चिड़ी काठी की परंपरा
एक ओर इंसान चांद पर पहुंच गया है हर रोज नए-नए आविष्कार हो रहे हैं और दूसरी तरह समाज का एक हिस्सा आज भी अंधविश्वास में जकड़ा हुआ है। एक ऐसी ही परंपरा का पालन सरायकेला-खरसावां जिले के कई गांवों में किया जा रहा है। इसके तहत मकर संक्रांति के दिन लोहे के गर्म छड़ को बच्चे के नाभि के चारों ओर दाग दिया जाता है।
मासूमों की चीख से गूंज उठेगा पूरा गांव
ऐसे दी जाती है चिड़ी काठी
सूरज उगने से पहले महिलाएं अपने मासूम बच्चों को गोद में लिए गांव के ओझा के घर जाती हैं, जहां घर के आंगन में मिट्टी की जमीन पर बैठा ओझा ग्राम देवता की पूजा कर गोबर के उपले को जलाकर लोहे को गर्म करता है। महिलाएं अपने बच्चों को ओझा की गोद में दे देती हैं।दादा, परदादा वर्षों से इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं। गांव में एक दिन में 150 से ज्यादा बच्चों को चिड़ी काठी दिया जाता है। ऐसा करने से बच्चों को पेट से जुड़ी समस्या व नजर आदि नहीं लगती- बाबूराम महतो, ओझा।
यह भी पढ़ें: Ranchi में बनेगा ताज होटल, सरकार ने टाटा समूह की कंपनी को लीज पर दी छह एकड़ की जमीन; कैबिनेट बैठक में बनी सहमतिकोलाबीरा चिड़ी काठी से पेट की बीमारी दूर होने वाली बात सरासर गलत है। पूर्व में अशिक्षा के कारण इन प्रथाओं को लोग मानते थे। अब विज्ञान काफी आगे बढ़ गया है। आजकल सब बीमारी की दवा है। लोहे की सलाख से बच्चों के पेट को दागना अमानवीय है- डा. नकुल चौधरी, उपाधीक्षक सदर अस्पताल सरायकेला।