सरायकेला : नक्सल प्रभावित जिले में गांव का बिजनेस मॉडल बना आत्मनिर्भरता और विकास का आधार
झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले के तुड़ियान गांव में ग्रामीणों ने एक अनूठी पहल की है। यह जिला मतांतरण से भी प्रभावित है। समिति बनाकर दो तालाबों में मछली पालन को व्यावसायिक रूप दिया। साहूकारी का जाल काटकर निर्धन परिवारों को बेटी के विवाह के लिए ब्याज मुक्त ऋण दिया जाता है। तालाबों की आय से गांव में सुविधाओं का भी प्रबंधन किया जाता है।
By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Wed, 02 Aug 2023 06:48 PM (IST)
गुरदीप राज, सरायकेला। झारखंड का नक्सल प्रभावित जिला सरायकेला-खरसावां। मतांतरण का भी प्रभाव। ऐसे में यहां निर्धन ग्रामीण परिवारों के लिए जीवनयापन अतिकठिन है।
बेटियों के विवाह और जीवन सुगम बनाने वाली सुविधाओं की बात तो दूर की कौड़ी है, लेकिन जहां चाह वहां राह।जिले के तुड़ियान गांव के निवासियों ने पूरे देश के गांवों के लिए ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है जो निर्धन परिवारों की समय पर सहायता के साथ विकास और सुविधाओं की व्यवस्था भी करता है।
ग्रामीणों की बनाई वीणापाणि समिति ने गांव में जल संचयन के लिए बने दो सरकारी तालाबों पर आधारित बिजनेस मॉडल तैयार किया है, जो बेटियों के विवाह में आर्थिक सहायता देने से लेकर सड़क, बिजली, पानी की सुविधाओं का प्रबंधन भी सफलतापूर्वक कर रहा है।खरसावां प्रखंड मुख्यालय से करीब छह किलोमीटर दूर तुड़ियान गांव में निम्न आय वर्ग के करीब डेढ़ हजार लोग रहते हैं।
ज्यादातर ग्रामीण निजी कंपनियों, दुकानों व अन्य जगह मजदूरी करते हैं, जबकि कुछ सब्जी की खेती पर निर्भर हैं। निर्धनता के कारण इन्हें अपनी बेटियों के विवाह के लिए साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता था।
भारी ब्याज भी चुकाना होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। वीणापाणि समिति इन्हें ब्याजमुक्त कर्ज देती है। समिति ने अब तक गांव की 14 बेटियों का विवाह कराया है।
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समिति गांव के बीचों-बीच दो-दो एकड़ में फैले दो सरकारी तालाबों में मछली पालन करती है, जिससे प्रतिवर्ष लगभग छह लाख रुपये की आय होती है।समिति का संचालन स्थानीय युवाओं द्वारा किया जाता है, जो स्वयं स्थानीय कंपनियों में कामगार हैं। इन युवाओं ने लगभग 12 वर्ष पूर्व आपस में चंदा कर बंगाल से मछली का जीरा मंगाकर मछली पालन शुरू किया था। रोहू, कतला, मांगुर आदि मछली का पालन यहां किया जाता है। वर्ष में पांच बार तालाब से मछली निकालकर बाजार में बेची जाती है, जिससे ठीक आय होती है।गांव के प्रत्येक परिवार को वर्ष में एक बार तीन किलो मछली नि:शुल्क दी जाती है, जबकि अन्य दिनों में रियायती दर पर मछली उपलब्ध कराई जाती है।ऐसे मिली प्रेरणा
तुड़ियान गांव में बेटियों के विवाह के लिए ग्रामीण कर्ज में डूबने लगे थे। साहूकारों का कर्ज उतारना आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के लिए असंभव सा था। जब रुपये नहीं मिलते तो साहूकार गांव में आकर शोर मचाते। गांव के युवाओं ने इसे गंभीरता से लिया और बैठक कर गांव की बेटियों के विवाह में सहायता का निर्णय लिया। यहीं से मछली पालन का विचार पनपा और वीणापाणि समिति का गठन किया गया।विवाह के बाद ग्रामीण जब संभव होता है, समिति को रकम वापस कर देते हैं। जो सक्षम नहीं होते हैं, उनसे राशि वापस नहीं ली जाती है।गांव के सुभाष महतो बताते हैं कि मेरी बेटी के विवाह के लिए रुपये का अभाव था। साहूकार ने ब्याज की रकम इतनी ज्यादा बताई कि घर लौट आया। फिर वीणापाणि समिति से संपर्क कर 40 हजार रुपये उधार लिए। विवाह ठीक से संपन्न हो गया। मैंने धीरे-धीरे रुपये लौटा दिए।एक अन्य ग्रामीण कृष्णापदो महतो कहते हैं कि समिति से बेटी की शादी के लिए 30 हजार रुपये लिए थे। इस मदद से ग्रामीणों को काफी राहत मिली है।समिति ऋण लेने वाले का नाम सार्वजनिक नहीं करती है। जो असमर्थ होते हैं, उनकी ऋण राशि समिति माफ कर देती है।अन्य कार्यों पर भी खर्च, मंदिर भी बनवाया
तुड़ियान गांव में बनी वीणापाणि समिति के अध्यक्ष राजेश कुमार महतो बताते हैं कि बेटियों के विवाह के अलावा गांव के विकास पर भी मछली पालन से प्राप्त राशि खर्च की जाती है। बिजली का ट्रांसफार्मर खराब होने पर अब समिति ही मरम्मत का खर्च उठाती है। इसके अलावा गांव की सड़क से लेकर हैंडपंपों तक की मरम्मत भी इसी बिजनेस मॉडल से मिली राशि से कराई जाती है।गांव में सांस्कृतिक और आस्था के मूल्यों के संरक्षण के लिए भी समिति कार्य करती है। हाल ही में तुड़ियान गांव में 10 लाख रुपये की लागत से सरस्वती मंदिर का निर्माण कराया है।गांव की बेटियों का विवाह कराने में वीणापाणि समिति बढ़-चढ़कर सहयोग करती है। हम नहीं चाहते हैं कि कोई ग्रामीण कर्ज की वजह से अपमानित हो। - मिथुन महतो, कोषाध्यक्ष, वीणापाणि कमेटी