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संथाल समाज की अजीब मान्‍यता: नर व मादा कुत्‍ते से कराई जाती है बेटा-बेटी की शादी, होती हैं सारी रस्‍में

सरायकेला-खरसावां जिले के आदिवासी बहुल गांव हुटुप में एक अजीबोगरीब परंपरा का पालन किया जाता है जिसके तहत छोटे-छोटे बच्‍चों की शादी नर और मादा कुत्‍ते से करा दी जाती है। उनकी मान्‍यता के अनुसार ऐसा दोष निवारण के लिए किया जाता है।

By Fani Bhushan TuduEdited By: Arijita SenUpdated: Tue, 17 Jan 2023 09:38 AM (IST)
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संथाल समाज में बच्‍ची के साथ कुत्‍ते से कराई जा रही है

फणीभूषण टुडू, चांडिल। झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के चांडिल व ईचागढ़ प्रखंड क्षेत्र के सीमावर्ती आदिवासी संथाल बहुल गांव हुटुप में एक अजीबोगरीब परंपरा देखने को मिली। यहां गांव में कुल छह बच्‍चों की शादी नर व मादा कुत्‍ते से रचाई गई। सोमवार को गांव के धंदो टुडू ने अपनी पांच साल की बेटी रिया की शादी कुत्ते के साथ, पर्वत टुडू ने अपनी पांच साल की बेटी कनक की शादी कुत्ते के साथ, वहीं कुना हांसदा ने अपने पांच साल के बेटे अरूण हांसदा की शादी मादा कुत्‍ते के साथ, सीताराम मुर्मू ने अपने पांच वर्षीय बेटे सुरज मुर्मू की शादी मादा कुत्‍ते के साथ, सुरेंद्र मुर्मू ने अपने पांच वर्षीय बेटे मुकेश मुर्मू का मादा कुत्‍ते के साथ व भीमसेन लायेक ने अपनी पांच वर्षीय बेटी प्रिया की कुत्ते के साथ विवाह मंडप में पूरे विधि विधान व आदिवासी रीति रिवाज के साथ शादी कराई।

नर व मादा कुत्‍ते के साथ बच्‍चों ने पूरा किया सिंदूरदान का रस्‍म

शादी समारोह में कुत्ते ने बच्ची के साथ व मादा कुत्‍ते ने बच्चे के साथ सिन्दुरदान कर शादी की रस्म पूरी की। शादी के मौके पर पूरे गांव के लोग व मेहमान भी पहुंचे। मेहमानों ने आदिवासी परंपरा अनुसार वर-वधु को चुमावन कर सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद दिया। ग्रामीण व मौजूद मेहमानों ने दूल्हा-दुल्हन की चुमावन व आरती उतारकर गृह प्रवेश भी कराया। मौके पर ग्रामीणों व मेहमानों ने ढोल नगाड़ा तथा मांदर के थाप पर संथाली विवाह गीतों पर संथाली नृत्य किया।

बच्चे के दोष निवारण के लिए है मान्यता

वैसे आदिवासी संथाल समुदाय में मान्यता है कि बेटी के ऊपर का दांत सबसे पहले निकलने पर कुत्ता के साथ शादी व बेटे के ऊपर का दांत सबसे पहले निकलने पर मादा कुत्‍ते के साथ आखाईन जातरा के दिन शादी कराई जाती है। इससे दोष निवारण होता है। आदिवासी संथाल समुदाय के लोगों की मान्यता है कि इस तरह बच्‍चों की शादी कराने से बच्चे का आंतरिक कलह या बड़े होकर होने वाले किसी भी प्रकार की आकस्मिक दुर्घटना एवं दोष कट जाते हैं इसलिए आदिवासी संथाल समाज में इस तरह का रस्म आज भी बरकरार है। 

नोट: दैनिक जागरण बाल विवाह अथवा किसी भी प्रकार के अंधवि‍श्‍वास को बढ़ावा नहीं देता है। यह खबर केवल पाठकोंं की जानकारी के लि‍ए है।

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