झारखंड में जोहार को आधिकारिक रूप से किया गया अनिवार्य, रामचरित मानस की इस चौपाई में शब्द का किया गया है वर्णन
झारखंड में सरकारी कार्यक्रम या समारोह में जोहार बोलने को आधिकारिक रूप से अनिवार्य कर दिया गया है। जिस जोहार शब्द का प्रयोग किया गया है उसका प्रयोग सबसे पहले रामचरित में सैंकड़ों साल पहले तुलसी दास ने किया है।
By Jagran NewsEdited By: Mohit TripathiUpdated: Tue, 31 Jan 2023 09:38 PM (IST)
सिमडेगा, जागरण टीम: हाल ही की एक रैली में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था कि झारखंड में नमस्कार, प्रणाम और सत् श्री अकाल नहीं चलेगा। अब सभी को जोहार बोलना पड़ेगा। सोमवार को इसे लेकर राज्य सचिवालय ने अधिसूचना जारी कर आधिकारिक रूप से इसे अनिवार्य बना दिया गया।
जारी अधिसूचना के मुताबिक, अब किसी भी सरकारी कार्यक्रम या समारोह में जोहार बोलकर ही अभिवादन करना होगा। इसके साथ ही फूल और बुके की जगह अब अधिकारी पौधा, किताब या शॉल देकर स्वागत करेंगे। इस संदर्भ में सभी विभागों और जिला प्रशासन को अधिसूचित कर दिया गया है।
झारखंड में अभिवादन के लिए जिस जोहार शब्द को अधिकृत और अनिवार्य किया गया है, उसका आदिवासी संस्कृति में काफी महत्वपूर्ण है। आदिवासी सम्मान में एक-दूसरे जोहार बोलते हैं। जोहार शब्द का जिक्र तुलसीदास ने रामचरित मानस में आज से सैकड़ों साल पहले किया था।
अयोध्या कांड में भरत मिलाप से ठीक पहले भगवान राम से मिलने सेना के साथ वन जाते भरत को भ्रमवश आक्रमण की तैयारी समझ चुके निषादराज के निर्देश पर उनकी सेना ने भी पारंपरिक युद्ध साजो-सज्जा के साथ तैयारी पूरी कर ली और निषादराज को जोहार बोलकर प्रणाम किया था। इसी प्रसंग को तुलसीदास ने चौपाई में पंक्तिबद्ध किया है। लिखा - 'निज निज साजु समाजु बनाई, गुह राउतही जोहारे जाई'।
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