कांग्रेस कहती रह गई 'ऑल इज वेल...' गीता ने कह दिया 'बाय बाय...' तो यह है कोड़ा दंपती की BJP में वापसी का कारण
सिंहभूम की सांसद व प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष गीता कोड़ा ने आखिर वह कर ही लिया जिसकी अटकलें लंबे समय से लगाई जा रही थीं। सोमवार को रांची में प्रदेश भाजपा कार्यालय में वह भाजपा में शामिल हो गईंं। हालांकि इसकी कई वजहें हैं। इधर मधु कोड़ा काभी राजनीतिक सफर भाजपा से ही शुरू हुआ है। कोड़ा दंपती भाजपा में जाने के लिए हमेशा से उत्सुक थे।
दिनेश शर्मा, चक्रधरपुर। अंतत: सोमवार को रांची में प्रदेश भाजपा कार्यालय में सिंहभूम की सांसद व प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष गीता कोड़ा ने पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम ही लिया। इस बात की पिछले चार-पांच माह से चर्चा थी कि कोड़ा दंपती लोकसभा चुनाव के पूर्व भाजपा में शामिल हो सकते हैं। दैनिक जागरण ने सबसे पहले अंदरखाने से छनकर आ रही यह खबर प्रकाशित की थी। गीता कोड़ा के भाजपा में शामिल होने के साथ ही इन खबरों की पुष्टि भी हो गई।
गीता को प्रदेश अध्यक्ष बनने की थी चाहत
गीता कोड़ा के भाजपा में शाामिल होने के कई कारण बताए जा रहे हैं। पार्टी आलाकमान से वे विभिन्न कारणों से नाराज चल रही थी। उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलबाजियों के बीच भी कांग्रेस आलाकमान ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया। पार्टी आलाकमान आल इज वेल कहकर चुप्पी साधे रहा। जानकारों का कहना है कि गीता कोड़ा कांग्रेस आलाकमान से प्रदेश अध्यक्ष का पद मांग रही थी, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर को बना दिया गया।
इस वजह से प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बनीं गीता
हालांकि, गीता कोड़ा की नाराजगी सामने आने के बाद उन्हें प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। एक अन्य मामला राज्य की गठबंधन सरकार द्वारा 1932 के खतियान को स्थानीयता की पहचान बनाए जाने का रहा।इस मामले में कोड़ा दंपती खुलकर सामने आए और उन्होंने अंतिम सर्वे सेटलमेंट को आधार बनाने की बात कही। उनका यह स्टैंड अब तक कायम रहा है। इस मामले में भी गठबंधन सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया।
भाजपा से शुरू हुआ था मधु कोड़ा का राजनीतिक सफर
बताते चलें कि गीता कोड़ा के पति पूर्व सीएम व पूर्व सांसद का राजनीतिक जीवन भाजपा से ही शुरू हुआ था। वे पहली बार वर्ष 2000 में भाजपा के टिकट पर जगन्नाथपुर विस से चुनाव लड़कर जीते थे। तत्कालीन भाजपा सांसद लक्ष्मण गिलुवा के उस समय करीबी होने के कारण वह बाबूलाल सरकार में खनन राज्य मंत्री बने।भाजपा में जाने के लिए उत्सुक थे कोड़ा दंपती
वर्ष 2005 में सीटिंग एमएलए होने के बाद पार्टी की अंदरूनी खींचतान के कारण उनका टिकट काट दिया गया। उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और सहानुभूति लहर पर सवार होकर आसन जीत दर्ज की। जानकार कहते हैं कि उनकी और तत्कालीन सीएम अर्जुन मुण्डा की प्रतिद्वंदिता की वजह से उनका टिकट काटा गया।
अपने दूसरे कार्यकाल में मधु कोड़ा ने इतिहास रचते हुए निर्दलीय सीएम बनकर 22 माह के लगभग राज्य की बागडोर कांग्रेस व झामुमो के समर्थन से संभाली। इधर जानकारों के अनुसार कोड़ा दंपती भाजपा में जाने के जितने उत्सुक थे, उससे कहीं अधिक भाजपा उन्हें अपने पाले में देखना चाहती थी।यह भी पढ़ें: पति और सास ने चोरी से बहू के खाने में मिलाया जहर, निवाला मुंह में डालते ही... इस वजह से मां-बेटे ने बनाया ये प्लान
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