माघे पर्व पर करते हैं जीवन साथी का चुनाव
आस्था और विश्वास के साथ हो समुदाय द्वारा माघे (मागे) पर्व अनोखे ढंग से सप्ताह भर प्राचीन रीति रिवाज के साथ उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। माघ महीने के प्रारम्भ यानि 15 जनवरी से माघे पर्व प्रारम्भ होता है और अप्रैल माह के अंत तक चलता है।
दिनेश शर्मा, चक्रधरपुर : आस्था और विश्वास के साथ 'हो' समुदाय द्वारा माघे (मागे) पर्व अनोखे ढंग से सप्ताह भर प्राचीन रीति रिवाज के साथ उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। माघ महीने के प्रारम्भ यानि 15 जनवरी से माघे पर्व प्रारम्भ होता है और अप्रैल माह के अंत तक चलता है। माघे पर्व की कोई निश्चित तिथि नहीं होती। ग्रामीण गांव के मुंडा की अध्यक्षता में बैठक कर पर्व की तिथि तय करते हैं। 'हो' समुदाय के लिए माघे पर्व सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण त्योहार है। ग्रामीण अलग-अलग गांव में अलग-अलग तिथि निर्धारित कर पर्व मनाते हैं। इस अवसर पर आसपास के गांवों के रहने वाले स्वजातीय बंधुओं को आमंत्रित किया जाता है। माघे पर्व के अवसर पर युवक-युवतियों को अपना जीवन साथी चुनने की छूट भी रहती है। समाज का लड़का समाज की लड़की को पसंद कर अपने घर ले जाने के लिए स्वतंत्र होता है। इस तरह लड़का एवं लड़की को एक दूसरे से राजी- खुशी विवाह करने की स्वतंत्रता है। विश्वास के साथ 'हो' समुदाय द्वारा माघे (मागे) पर्व अनोखे ढंग से सप्ताह भर प्राचीन रीति रिवाज के साथ उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। माघ महीने के प्रारम्भ यानि 15 जनवरी से माघे पर्व प्रारम्भ होता है और अप्रैल माह के अंत तक चलता है। माघे पर्व की कोई निश्चित तिथि नहीं होती। ग्रामीण गांव के मुंडा की अध्यक्षता में बैठक कर पर्व की तिथि तय करते हैं। 'हो' समुदाय के लिए माघे पर्व सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण त्योहार है। ग्रामीण अलग-अलग गांव में अलग-अलग तिथि निर्धारित कर पर्व मनाते हैं। मागे पर्व के पहले दिन को 'जाएर जाते' कहा जाता है मांगे पर्व के पहले दिन को 'जाएर जाते' कहा जाता है। जाएर जाते में प्राचीन संस्कृति के अनुसार बकरा, मुर्गा-मुर्गी की पूजा करके जाहिर स्थान (पूजा स्थल) का शुद्धिकरण करके पर्व को आमंत्रित किया जाता है। हो समाज में इस तरह के विवाह को राजी-खुशी विवाह कहते हैं। विवाह के बाद लड़का पक्ष को 'गोनोंग' स्वरूप गाय, बैल, हड़िया आदि देना पड़ता है। गोनोंग के बाद दोनों पक्ष मिलकर विवाह को मान्यता देते हैं। इली के रूप में मनाया जाता है मागे का दूसरा दिन द्वितीय दिन आते इली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन दिऊरी (पुजारी) के आंगन में भूमि पर हड़िया डालकर प्राचीन रिवाज के अनुसार सामूहिक पूजा अर्चना करके अपने पूर्वजों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। राजी-खुशी विवाह को सामाजिक मान्यता देते हैं। हो समुदाय में दहेज प्रथा नहीं है। दहेज प्रथा के विपरीत लड़का पक्ष को ही 'गोनोंग' देना पड़ता है। 'गुरीई' के रूप में मनाया जाता चौथा दिन, गोबार लिपाई होती है मागे पर्व का चौथा दिन 'गुरीई के रूप में मनाया जाता है। इस दिन घर एवं आंगन की साफ सफाई करके गोबर लिपाई की जाती है। 'मागे पर्व' के रूप में मनाया जाता है पांचवां दिन पांचवा दिन 'मागे पर्व' के रूप में मनाया जाता है। यह दिन मागे पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन एकत्रित होकर सभी लोग नृत्य-संगीत से रात भर झूमते रहते हैं। लगातार सात रात नृत्य-संगीत का कार्यक्रम चलता है तथा दिन को अपना काम भी करते हैं। रात्रि के नृत्य-संगीत कार्यक्रम में युवक पूजा स्थल पर सामूहिक पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा के तुरंत बाद मादल की थाप प्रारम्भ होती है और नृत्य संगीत का कार्यक्रम अंतिम दिन तक चलता रहता है। मागे पर्व के इस पवित्र दिन को मिलन पर्व' भी कहा जाता है। छठवें दिन जातरा पर्व के छठवें दिन को जातरा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गांव का द्वितीय पुजारी पूजा स्थल पर पूजा करता है। सातवां दिन हरमागेया सातवां दिन 'हरमागेया' के रूप में मागे पर्व का समापन किया जाता है। हरमागेया में गांव के बच्चे लाठी-डंडा लेकर गांव के एक छोर से दूसरे छोर तक शोर मचाते हुए मुर्गा-मुर्गी को खदेड़ते हुए जाते हैं। इस दिन मुर्गा-मुर्गी को पकड़ने के लिए बच्चे स्वतंत्र रहते हैं। युवतियां, स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े सब भेदभाव से दूर हटकर कदम से कदम मिलाकर नृत्य करते हैं। मागे पर्व यहां के हो समुदाय के लिए प्राचीन संस्कृति का परिचायक है।