Move to Jagran APP

सारंडा से दुर्लभ जड़ी-बूटियों की हो रही तस्करी

एशिया प्रसिद्ध सारंडा जंगल से दुर्लभ प्रजाति की जड़ीबूटियों की तस्करी हो रही है। दवा बनाने वाली कंपनियां ग्रामीणों को पैसे का लालच देकर यह तस्करी करा रही हैं।

By JagranEdited By: Updated: Tue, 03 Nov 2020 05:57 PM (IST)
Hero Image
सारंडा से दुर्लभ जड़ी-बूटियों की हो रही तस्करी

सुधीर पांडेय, चाईबासा : एशिया प्रसिद्ध सारंडा जंगल से दुर्लभ प्रजाति की जड़ीबूटियों की तस्करी हो रही है। दवा बनाने वाली कंपनियां ग्रामीणों को पैसे का लालच देकर यह तस्करी करा रही हैं। इम्युनिटी बढ़ाने में इस्तेमाल होने वाले एवं औषद्यीय गुणों वाली मेद छाल, अर्जुन की छाल, अश्वगंधा, चिरैता, अश्वगंधा की दवा कंपनियों में बहुत मांग है। झारखंड की सीमा से लगायत छत्तीसगढ़, ओडिशा के अलावा उत्तर प्रदेश में ले जाकर इन्हें खपाया जा रहा है। इस पखवाड़े में वन विभाग ने अगरबत्ती बनाने में इस्तेमाल होने वाली मेद छाल दो बार तस्करों से बरामद की है। अनुसंधान में यह बात सामने आयी कि इस छाल को ओडिशा के बिसरा में तस्कर ले जाकर बेचते हैं।

गुवा रेंजर कमलेश्वर प्रसाद के अनुसार बिसरा में एक स्टॉकिस्ट अनूप साव इसका कारोबार करता है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में भी दवा कंपनियों में इसकी आपूर्ति की जाती है। हालांकि रेंजर अभी इस बात से इनकार कर रहे हैं कि पिकअप से जब्त की गई छाल विलुप्त हो रहे मेद पेड़ की छाल है। उनका कहना है कि सारंडा जंगल के काफी भीतर इसके पेड़ हैं मगर ये काफी कम मात्रा में रह गये हैं। उनके अनुसार संभवत: यह मेद छाल न होकर लोध छाल है। इसमें भी बेशुमार औषधीय गुण हैं।

-------------

ट्रेन सेवा बंद रहने के कारण अभी सड़क मार्ग से हो रही तस्करी

गुवा रेंजर ने बताया कि औषधीय जड़ी-बूटी की तस्करी ट्रेन से पहले की जाती रही है। गांव वाले ट्रेन में इसे लादकर दूसरे राज्य में सस्ती कीमत पर बेच देते हैं। तस्करी कराने वाले लोग दोगुने दाम पर इसे दवा कंपनियों को बेचकर कमाई करते हैं। लॉकडाउन में ट्रेनों का परिचालन बंद है। इस वजह से अब सड़क मार्ग से यह तस्करी हो रही है। सड़क मार्ग से जाने के कारण ही हम लोग गाड़ियों को पकड़ पाये। हम लोग बरामद छाल की जांच पड़ताल कर रहे हैं।

-----------------------

नहीं रुकी तस्करी तो विलुप्त हो जायेंगी कई दुर्लभ प्रजातियां : वनस्पति शास्त्री

वनस्पति शास्त्री डॉ. अमरनाथ सिंह ने बताया कि सारंडा व आसपास के अन्य जंगलों में बड़ी संख्या में औषधीय पेड़-पौधे पाये जाते हैं। इनमें मेद छाल, अर्जुन, लोध छाल, हर्रे-बहर्ये, अश्वगंधा, सर्पगंधा, चिरैता आदि शामिल हैं। दवां कंपनियां गांव वालों को लालच देकर इसकी तस्करी कराती हैं। छत्तीसगढ़ में मेद छाल की तस्करी का मामला हाल में सामने आया था। दवा कंपनियों के प्रतिनिधि ग्रामीणों को जड़ी-बूटी के नाम न बताकर केवल पहचान बताकर मंगा लेते हैं। इसके बदले में उन्हें कुछ राशि देकर ले जाते हैं। इससे कई औषद्यीय पेड़-पौधे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गये हैं। इनका संरक्षण जरूरी है

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।