कोरोना काल में फंसी कुम्हारों के चाक की गति
कोविड-19 ने परोक्ष और अपरोक्ष रूप से लगभग हर तबके को प्रभावित किया है। कइयों की रोजी-रोजगार छीन गई तो कई अभी भी अपनी साख बचाने की जद्दोजहद करते दिख रहे हैं।
राहुल हेम्ब्रोम, चक्रधरपुर : कोविड-19 ने परोक्ष और अपरोक्ष रूप से लगभग हर तबके को प्रभावित किया है। कइयों की रोजी-रोजगार छीन गई, तो कई अभी भी अपनी साख बचाने की जद्दोजहद करते दिख रहे हैं। ऐसा ही जद्दोजहद करता कुम्हार समुदाय भी दिख रहा है। जी हां, दीपोत्सव के दिन नजदीक आने के साथ ही हमें दीयों एवं मूर्तियों को ढालने वाले कुम्हार की याद आ ही जाती है। लेकिन शायद आपको पता होगा कि इनके दीयों से दूसरों के घर तो रोशन हो जाते हैं, लेकिन स्वयं अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए दीपक साबित नहीं हो पा रहे हैं। पश्चिमी सिंहभूम जिला अंतर्गत चक्रधरपुर की ही बात करें तो यहां कई बस्तियां हैं, जहां अच्छी तादाद में कुम्हार बसते हैं। हर साल यहां दीपोत्सव को लेकर तैयारी प्रारंभ हो जाती है, लेकिन इस बार कोरोना के कहर का असर दिख रहा है। कुम्हारों को आर्डर बहुत कम मिले हैं। लिहाजा इस बार दीपावली को लेकर पहले जैसा जैसी उत्साह कुम्हार बस्ती में नहीं दिख रहा है। ट्रेनों का परिचालन नहीं होना भी बना मुसीबत
कुम्हारों की चाक पर बाधित ट्रेनों की मार पड़ रही है। चक्रधरपुर के दीप, लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा समेत अन्य मिट्टी के उत्पाद मनोहरपुर, गोईलकेरा, सोनुवा, बंदगांव से लेकर जामदा, बड़बिल, खरसावां तक अच्छी और बड़ी मांग है। लेकिन इस बार इसकी मांग नहीं है। मुख्य कारण यात्री ट्रेनों का परिचालन नहीं होना है। पैसेंजर एवं यात्री ट्रेनों के चलने से कुम्हारों के उत्पाद बड़ी सरलता से इन क्षेत्रों में पहुंच जाते थे, लेकिन इस साल ऐसा नहीं हो पाया है। जिसके कारण दुकानदार एवं थोक विक्रेता आर्थिक नुकसान की आशंका से दीप एवं मिट्टी के उत्पादों का आर्डर नहीं दे रहे हैं। सड़क मार्ग से परिवहन में अधिक खर्च