अब जानवरों की नुकसान पहुंचाए बिना तैयार होगा लेदर, इंपीरियल कॉलेज लंदन ने की हैरान करने वाले खोज
पूरी दुनिया लेदर की दिवानी है। लड़का हो या लड़की हर कोई फैशन वर्ल्ड में परफेक्ट लुक हासिल करने के लिए लेदर का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि इसे बनाने में इस्तेमाल होने वाली एनिमल स्किन की वजह से कई लोग इससे कतराते हैं। ऐसे में अब इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने बैक्टीरिया की मदद से सस्टेनेबल लेदर तैयार किया है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। फैशन की दुनिया में लेदर का अपना अलग ही क्रेज है। जैकेट हो या पर्स, लेदर कैरी करने से अलग ही लुक आता है। हालांकि, कई सारे लोग लेदर के इस्तेमाल का विरोध करते हैं, क्योंकि इसे बनाने के लिए अलग-अलग तरह के जानवरों की स्किन का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे लोग एनिमल क्रूएलिटी मानते हैं। यही वजह है कि खूबसूरत लगने बावजूद कई लोग लेदर का इस्तेमाल करने से कतराते हैं।
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अब बिना जानवरों के तैयार होगा लेदर
हालांकि, अब इसे लेकर एक अच्छी खबर सामने आई है। अगर आप भी लेदर लवर हैं, तो यह आर्टिकल आपके लिए ही है। हाल ही में इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने बैक्टीरिया की मदद से सस्टेनेबल लेदर तैयार किया है। खास बात यह है इस बैक्टीरिया से तैयार होने वाला यह लेदर पूरी तरह से एनिमल और प्लास्टिक फ्री होगा। इसका मतलब यह है कि इसे बनाने के लिए न तो जानवरों का मांस इस्तेमाल होगा और न ही किसी प्लास्टिक का।बैक्टीरिया की मदद से तैयार होगा लेदर
लेदर बनाने वाले इन बैक्टीरिया की खासियत यह है कि ये खुद ही रंग छोड़ते हैं और उसी रंग से डाई हो जाते हैं। इस तरह यह बैक्टीरिया लेदर को बनाने और फिर उसे डाई करने से होने वाले प्रदूषण को रोकने में मददगार साबित होगा। इस शोध में शामिल प्रोफेसर टॉम एलिस का कहना है कि हमने सस्टेनेबल तरीके से सेल्फ डाइंग लेदर तैयार किया है। इस लेदर तैयार करने के लिए रिसर्चर्स ने बैक्टीरिया की एक प्रजाति के जीन्स में बदलाव किया, जिसकी वजह से यह बैक्टीरिया माइक्रोबियल सेल्यूलोज शीट्स प्रोड्यूस करते हैं।
इतना ही नहीं यह बैक्टीरिया जेनेटिक परिवर्तनों की वजह से काले रंग का पदार्थ भी प्रोड्यूस करते हैं, जिसकी मदद से सेल्यूलोज शीट्स को कलर किया जा सकता है। वैज्ञानिको द्वारा तैयार किए गए इस बैक्टीरिया की मदद से रिसर्चर्स ने एक शूज और पर्स तैयार किया। अपनी इस शानदार खोज के लिए शोधकर्ताओं को बायोटेक्नोलॉजिकल एवं बॉयोलॉजिकल साइंस रिसर्च काउंसिल यूके की ओर से 20 करोड़ का फंड भी मिला है।
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