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Kanjivaram Silk Saree की बुनाई में होता है सोने-चांदी के तार का इस्तेमाल, दक्षिण भारत से मिली थी खास पहचान

भारत के तमिलनाडु राज्य में कांचीपुरम को मंदिरों का शहर कहा जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये शानदार सिल्क साड़ियों (Kanjivaram Silk Sarees) का जन्म स्थान भी है? इसे बनाने के लिए बेहतरीन क्वालिटी के रेशम का इस्तेमाल किया जाता है जिसके चलते इसकी कीमत लाखों तक पहुंच जाती है। आइए इस आर्टिकल में आपको इसकी मेकिंग से लेकर हर छोटी-बड़ी डिटेल के बारे में बताते हैं।

By Nikhil Pawar Edited By: Nikhil Pawar Updated: Wed, 24 Jul 2024 02:45 PM (IST)
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दक्षिण भारत से हुई थी Kanjivaram Saree की शुरुआत  
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। कांजीवरम साड़ी की शुरुआत तमिलनाडु के एक छोटे से शहर कांचीपुरम से शुरू हुई थी। इसके इतिहास  (Kanchipuram Sarees History) के बारे में ज्यादा स्पष्टता तो नहीं है, लेकिन एक मान्यता है कि यहां भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था, जिसके लिए कई साड़ियां तैयार की थीं। बताया जाता है कि कांचीपुरम में बुनाई की इस परंपरा को ऋषि मार्कण्डेय के वंशजों ने शुरू किया था। लोकल भाषा में इसे कांचीपुरम साड़ी भी कहा जाता है।

मेकिंग में होता है सोने-चांदी के तार का इस्तेमाल

यह साड़ियां हर लिहाज से बेहद खास होती हैं, किसी भी तरह की कांजीवरम साड़ी में कढ़ाई (Kanchipuram Silk Sarees Features) के लिए इस्तेमाल होने वाले धागे में कम से कम 40 प्रतिशत चांदी और 0.5 फीसद सोना होता है। वहीं, इन साड़ियों का वजन एक किलो तक भी हो सकता है। खास बात है कि इसे Geographical Indication Tag भी हासिल है, जिसका मतलब है कि दुनिया के किसी भी दूसरे हिस्से में यह दावा नहीं किया जा सकता कि वहां शुद्ध कांजीवरम साड़ी बनाई जाती है।

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भारतीय महिलाओं की पारंपरिक पोशाक है साड़ी

साड़ी शब्द का मतलब कपड़े का लंबा टुकड़ा होता है, लेकिन पिछले 3 हजार साल में पहनावे के लिए इस्तेमाल होने वाले इस ट्रेडिशनल पीस ने जबरदस्त तरक्की की है। पूरे भारत में करीब 30 बेमिसाल तरह की साड़ियां मिलती हैं, लेकिन एक साड़ी जो सबसे ज्यादा पसंद की जाती है, वो है कांजीवरम सिल्क साड़ी (Kanjivaram Silk Saree)।

आज भी जिंदा है 400 साल पुरानी कला

कांजीवरम सिल्क साड़ियों बेहद शुभ माना जाता है। 400 साल से भी ज्यादा पुरानी इस कला को जिंदा रखने में नेशनल अवार्ड विनर रह चुके बी. कृष्णमूर्ति (B.Krishnamoorthy) को खास श्रेय जाता है। महज 15 साल की उम्र से उन्होंने बुनाई करना शुरू कर दिया था और आज वह एक Master Weaver हैं। बता दें, साल 2010 और 2018 में इन्होंने अपने हाथ से बुनी कांजीवरम साड़ी के लिए संत कबीर सम्मान भी जीता है। बताया जाता है कि कांचीपुरम में पैदा हुए बी. कृष्णमूर्ति बचपन से ही मंदिरों से जुड़े रहे। यहां की दीवारों पर बनी हिरण, तोता, हंस और मोर जैसी नक्काशी को देखकर उन्हें पेंटिंग की प्रेरणा मिलती थी।

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ऐसे तैयार करते हैं कांजीवरम साड़ी

क्यों लाखों में पहुंच जाती है कीमत?

बुनाई की बारीकियों और इसमें लगने वाली लेबर की वजह से एक लूप पर 3 लोग काम कर सकते हैं। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं, कि आज कांजीवरम साड़ी की कीमत 1 लाख या उससे भी ज्यादा हो सकती है। किसी साड़ी पर पेंटिंग, तो किसी पर सोने-चांदी का काम। जाहिर है कि ये साड़ियां Work Of Art होती हैं और इन्हें बनाने वाले बुनकर किसी कलाकार से कम नहीं हैं। ये लोग अपनी रचना पर अपना नाम तो नहीं लिख सकते, लेकिन कांजीवरम साड़ी की विरासत के लिए बहुत बड़ा योगदान दे रहे हैं। कहना गलत नहीं होगा कि साड़ियां न तो कभी फैशन से बाहर हुई थीं और न ही आगे कभी हो सकती हैं।

फैब्रिक में होता है सोने-चांदी का इस्तेमाल

कांजीवरम साड़ी का फैब्रिक काफी मजबूत होता है। वजह है कि इसमें रेशम के धागों के साथ सोने और चांदी के तारों को मिलाया जाता है। ऐसे में, जाहिर तौर पर इसका वजन भी भारी हो जाता है, इसलिए अगर कभी बाजार में आपको 2 किलो की कांजीवरम साड़ी दिखाई पड़े, तो चौंकिएगा बिल्कुल नहीं!

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