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लगातार बदलते फैशन में भी महिलाओं की पहली पसंद है साड़ी, हर राज्य में अलग दिखता है इसका स्टाइल, फैब्रिक और कीमत

फैशन की दुनिया में लगातार बदल रहे ट्रेंड्स में भी साड़ी एक ऐसा पहनावा है जिसे लेकर भारतीय महिलाओं की पसंद (Womens First Choice Sarees) आज भी कायम है। फैशन और ट्रेडिशन का यह अनोखा मेल भारत की हजारों साल पुरानी संस्कृति का सबूत है। आइए आज इसकी ऐसी 5 किस्मों के बारे में जानते हैं जो अपने शानदार फैब्रिक डिजाइन और कीमत को लेकर चर्चा में बनी रहती हैं।

By Nikhil Pawar Edited By: Nikhil Pawar Updated: Tue, 30 Jul 2024 02:12 PM (IST)
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Famous Sarees in India: बेहद खास हैं भारत की ये 5 साड़ियां (Image Source: X)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय महिलाओं को साड़ी से एक खास लगाव है। इसे महज एक पहनावे से इतर एक धरोहर के रूप में देखना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा, क्योंकि भारत की कई साड़ियां (Sarees Types in India) आज भी अपने फैब्रिक, डिजाइन और कीमत के साथ फैशन की दुनिया में जस की तस खड़ी हैं। हर एक साड़ी से एक राज्य के कारीगरों का खास पहचान जुड़ी हुई है, जिसे तैयार करने में उन्हें महीनों और सालों तक का वक्त लग जाता है। आइए इस आर्टिकल में जानते हैं 5 राज्यों की 5 मशहूर साड़ियों (Famous Sarees in India) के बारे में।

1) पटोला साड़ी (Patola Saree)

भारत के गुजरात राज्य को सिर्फ उद्योगों ही नहीं, बल्कि टेक्सटाइल, कला और शिल्प के लिए भी जाना जाता है। पटोला साड़ी को यहां शुभ मौकों पर पहनने का रिवाज भी है और माना जाता है कि इसमें बुरी नजर से बचाने की शक्ति होती है। हस्तकला से तैयार इस साड़ी की खासियत ऐसी है कि आप इसे दोनों ओर से पहन सकते हैं। कहा जाता है कि असली पटोला का फैब्रिक 100 साल तक भी खराब नहीं हो सकता है। असली पटोला साड़ी की कीमत 2 लाख से शुरू होकर 5 लाख तक भी जा सकती है। बताया जाता है कि 12वीं शताब्दी में सोलंकी वंश के राजा कुमारपाल ने 700 पटोला बुनने वालों को गुजरात के पाटन में बसने के लिए बुलाया था, जो पहले महाराष्ट्र के जालना से बाहर बसे थे। इसी तरह पाटन पटोला की परंपरा शुरू हुई थी।

2) कांजीवरम साड़ी (Kanjivaram Saree)

दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के कांचीपुरम क्षेत्र में बनने वाली ये खास कांजीवरम साड़ियां करीब 400 सालों से लोगों को आकर्षित करती आ रही हैं। बेहतरीन क्वालिटी के शहतूत रेशम से बनाई जाने वाली इन साड़ियों की कीमत 1 लाख से शुरू होकर 10 लाख रुपये या उससे ज्यादा भी हो सकती है। इस साड़ी को बनाने के लिए रेशम के धागों के साथ सोने और चांदी के तारों का भी इस्तेमाल किया जाता है, यही वजह है कि एक साड़ी का वजन 2 किलो तक भी पहुंच जाता है। इसे GI टैग भी मिला हुआ है, यानी कि दुनिया के किसी दूसरे हिस्से में शुद्ध कांजीवरम साड़ी बनाने का दावा नहीं किया जा सकता है।

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3) बनारसी साड़ी (Banarasi Saree)

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बनने वाली बनारसी साड़ियों को भी GI टैग हासिल है। चटकीले रंग, फूल पत्तियों के डिजाइन और हाथों की शानदार बुनाई से यह साड़ियां शाही लुक देने का काम करती हैं। इस एक साड़ी की कीमत भी लाखों तक जाती है और इसे बनाने में आमतौर पर 6 महीने का वक्त भी लग सकता है। मुगल काल के दौर में भी इस साड़ियों का उल्लेख देखने को मिलता है। इस साड़ी में बुनाई के लिए कई बार सोने और चांदी के तारों का इस्तेमाल भी किया जाता है, जो भारत की शादियों में नई दुल्हन के लिए खासतौर से खरीदी जाती हैं।

4) चिकनकारी साड़ी (Chikankari Saree)

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की मशहूर चिकनकारी साड़ियां भी अपनी बारीक और जटिल बुनाई के कारण काफी खास हैं। इसकी एम्ब्रॉयडरी महीन मखमल के कपड़े पर की जाती है, जिसके कारण फैब्रिक का अलग ही लुक सामने आता है। इसका कनेक्शन 16वीं शताब्दी में मुगल काल से भी माना जाता है, जहां मुगल बादशाह जहांगीर की पत्नी बेगम नूरजहां ही इस कला को लखनऊ लेकर आई थीं। डार्क शेड के कंट्रास्ट डिजाइनर ब्लाउज के साथ पेस्टल शेड की चिकनकारी साड़ियां एलिगेंट लुक देती हैं, ऐसे में आज भी इस पारंपरिक कढ़ाई की अहमियत कम नहीं हुई है।

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5) पैठणी साड़ी (Paithani Saree)

महाराष्ट्र की पैठणी साड़ियों को भी बेशकीमती साड़ियों की लिस्ट में गिना जाता है। उनकी बुनाई के लिए शुद्ध रेशम ही नहीं, बल्कि सोने और चांदी के तार का भी इस्तेमाल किया जाता है। करीब 8 हजार धागों को हाथ से जोड़कर लूम पर लगाने के बाद एक साड़ी तैयार होती है, जिसमें महीनों का वक्त भी लग सकता है। खास बात है कि इस एक साड़ी को कई पीढ़ी तक चलाया जा सकता है और सही देखभाल करने पर वक्त के साथ शुद्ध पैठणी साड़ी की चमक भी कम नहीं होती है। शुरुआत में इसे सिर्फ राजघराने की महिलाएं ही पहना करती थीं। इसके इतिहास की बात करें, तो यह दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व सातवाहन राजवंश के समय से देखने को मिलता है।

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