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Sawan Special: लहरिया बिना अधूरा है सावन, जानें इस माह में इसे पहनने का महत्व और इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें

Sawan Special सावन मतलब हर जगह हरियाली खुशहाली। हमारे यहां सावन माह से ही त्योहारों की शुरुआत होती है इस वजह से भी यह महीना बहुत खास होता है। इस माह में भगवान शिव के पूजा-उपासना की जाती है उनके लिए व्रत रखे जाते हैं और महिलाएं कुछ खास चीज़ों को इस महीने अपने साज-श्रृंगार में शामिल करती है जिसमें से एक है लहरिया।

By Priyanka SinghEdited By: Priyanka SinghUpdated: Sun, 30 Jul 2023 10:05 AM (IST)
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Sawan Special: क्या है लहरिया, कैसे होता है यह प्रिंट और इसके प्रकार

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Sawan Special: सावन आते ही वातावरण तो हरा-भरा हो ही जाता है साथ ही मन भी खुशनुमा रहता है। सावन का महीना हिंदू धर्म में बहुत ही पावन माना गया है और इसी महीने से यहां तीज-त्योहारों की शुरुआत होती है। सावन में जिस तरह सोमवार व्रत, भगवान शिव की पूजा- अराधना का महत्व है उसी प्रकार इस मौसम में हरे रंग के साजो-श्रृंगार और खासतौर से लहरिया पहनने का भी। जी हां, लहरिया बिना तो सावन और तीज़ का त्योहार अधूरा माना जाता है और सिर्फ सावन ही नहीं, लहरिया को आप अन्य दूसरे खास मौकों पर भी पहनकर अलग और खूबसूरत नजर आ सकती हैं। तीज पर नव विवाहिताओं और सगाई पर सिंजारे में लहरिया की साड़ियां और सूट ही शगुन के रूप में भेजी जाती हैं, क्योंकि यह सबसे अलग दिखता है। सीकर, लक्ष्मणगढ़, फतेहपुर के अलावा चूरू के लाडनू, सुजानगढ़, रतनगढ़, राजगढ़ सहित कई शहरों में लहरिया और बंधेज रंगने का काम सबसे ज्यादा किया जाता है।

लहरिया शब्द का मतलब

लहरिया रंगाई की बहुत ही अलग तरह की कला है। जिसमें पानी की लहरों की बनावट नजर आती है। ऊपर-नीचे उठती हुई आड़ी-तिरछी लकीरों की छाप एक नया भाव प्रकट करती हैं। तीज त्योहार के मौकों पर मारवाड़ी और राजपूत महिलाओं के पहनावे में लहरिया खासतौर से शामिल होता है। क्योंकि यह परिधान खुशनुमा जीवन का प्रतीक माना गया है। लहरिया सौभाग्य का भी प्रतीक माना जाता है। शादी शुदा महिलाएं सावन में, तीज में लहरिया प्रिंट की साड़ी, सूट या लहंगा पहन कर ही पूजा करती हैं। साड़ी के अलावा दुपट्टों में भी यह प्रिंट काफी पसंद किया जाता है। 

क्या है लहरिया?

लहरिया राजस्थान की एक पारंपरिक टाई एंड डाई तकनीक है। इसे 17वीं शताब्दी में ईजाद किया गया था। पहले इसका इस्तेमाल राजपुताना राजाओं की पगड़ी पर किया जाता था। वैसे ये परंपरा आज भी बनी हुई है। 19वीं शताब्दी के अंत तक इसका इस्तेमाल राजस्थान के कई अलग-अलग हिस्सों में होने लगा। राजस्थानी संस्कृति की बात करें तो राजस्थान में लहरिया सिर्फ कपड़े पर उकेरा गया सिर्फ एक डिजाइन या स्टाइल नहीं, बल्कि यह रंग-बिरंगी धारियां शगुन और संस्कृति के वो रंग लिए हुए हैं, जो राजस्थानी संस्कृति को बयां करते हैं। सावन में लहरिया पहनना बहुत ही शुभ माना गया है। पहले ये लहरिया प्रिंट केवल मेवाड़ के राजघराने के लिए ही बनता था और नीला लहरिया तो आज भी मेवाड़ राजघराने की धरोहर के रूप में जाना जाता है।

कैसे होता ये प्रिंट?

लहरिया प्रिंट कई स्टेप्स के बाद तैयार होता है। एक ही कपड़े को कई बार डाई कर अलग-अलग रंगों की लाइनें बनाई जाती हैं। इसी के साथ कपड़े को अलग-अलग तरीकों से बांधा जाता है जिससे तिरछी लाइनें बन सकें। इस प्रिंट को बनाने में मेहनत होने के साथ रंगरेज की क्रिएटिविटी की भी बहुत बड़ी भूमिका निभाती है।

सावन में क्यों पहना जाता है लहरिया?

इसे सावन में पहनना महिलाएं शुभ मानती हैं। जैसे उत्तर भारत और दूसरी जगहों पर तीज के अवसर पर हरी-भरी धरती के रंग में रंग जाने की कामना महिलाओं को होती है, तो वे हरे रंग के कपड़े पहनती हैं, ठीक उसी तरह राजस्थान में परिधान रंग-बिरंगा हो जाता है। इस वजह से यहां लहरिया पहना जाता है। 

लहरिया के प्रकार

लहरिया कई प्रकार के होते है।

- जो बारीक लाइन का लहरिया होता है उसे राज शाही लहरिया कहते है।

- एक लहरिया में ही स्काई ब्लू, पिंक और येलो कलर के मिक्स का जो लहरिया आता है उसे समदर लहरिया बोलते है।

- ग्रीन कलर का उसमें रेड और रानी कलर की बड़ी बड़ी मोटी लाइन्स होती है वो भोपालशाही लहरिया के नाम से जाना जाता है।

आमतौर पर लहरियों में दो रंगों का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन बढ़ती डिमांड और बदलते फैशन को देखते हुए अब मल्टी कलर लहरिया आने लगे हैं। साड़ी के अलावा इसे अब कुर्ती, लॉन्ग सूट, स्कर्ट में भी यूज किया जा रहा है। आज लहरिया को लगभग हर तरह के ट्रेडिशनल वेयर में देखा जा सकता है। 

Pic credit- Instagram