Move to Jagran APP

Father's Day 2023: सिर्फ पिता ही दे सकते हैं बच्चों को जिंदगी की ये सीख

Fathers Day 2023 दुनियाभर में हर साल जून में फादर्स डे यानी पिता दिवस मनाया जाता है। इसे महीने के तीसरे रविवार को ही सेलिब्रेट किया जाता है। पहली बार साल 1910 में फादर्स डे मनाया गया था लेकिन इसे आधिकारिक दर्जा 6 दशकों के बाद ही मिल सका।

By Ruhee ParvezEdited By: Ruhee ParvezUpdated: Sat, 17 Jun 2023 01:12 PM (IST)
Hero Image
Father's Day 2023: बातें जो सिर्फ एक पिता ही सिखा सकते हैं
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Father's Day 2023: हम सभी की जिंदगी में मां और पिता का किरदार काफी अलग होता है। मां को जहां हमारी सेहत, खाने-पीने, सलामती आदि की चिंता रहती है, वहीं पिता का फोकस हमें 'लाइफ-लेसन्स ' देने पर होता है। बचपन में उनका टोकना हमें पसंद नहीं आता और हम अपनी बात पर अड़े भी रहते हैं। हालांकि, जब जिम्मेदारियों का बोझ हम पर पड़ता है, तब हमें समझ आता है कि पापा की सीख कितनी सही थी।

कवि जॉर्ज हर्बर्ट ने बिल्कुल सही ही कहा था, "एक पिता सैकड़ों स्कूलटीचर्स से कहीं ज्यादा जरूरी होता है"। भले ही हम पढ़ने या फिर जॉब की वजह से अपने पिता के साथ या पास नहीं रह पाते, लेकिन हर जरूरी फैसला या छोटी से छोटी बात, हम उनकी सलाह के बिना नहीं करना भूलते। फादर्स डे के मौके पर आज हम बता रहे हैं ऐसी बातों के बारे में, जो हम सभी के पिता ने कई बार कही होगी, लेकिन इनका असल मतलब हमें बड़े होकर ही समझ आता है।

"मेहनत कभी बेकार नहीं जाती" ​

जब हम सुबह देर से उठते थे, तो हमें यही सुनने को मिलता था। उस समय यह बातें ताने की तरह लगती थीं, लेकिन अब समझ आता है कि कितनी सही थीं। कड़ी मेहनत आपको कभी भी निराश नहीं करेगी। मेहनत करने से हम में हमेशा सुधार आता है, फल जरूर मिलता है और अपनी सीमाओं का पता चलता है।

"अपनी गलतियों को स्वीकार करो, उनको छिपाने के बहाने न ढूंढ़ो"

हर पिता अपने बच्चों को अपनी गलतियों को स्वीकार करने की सीख जरूर देता है, फिर चाहे गुस्से से हो या प्यार से। अपनी गलती को स्वीकार कर लेने से कोई भी छोटा या कम नहीं हो जाता, बल्कि इससे व्यक्ति को अहसास होता है कि क्या गलत हुआ और गलती को कैसे सुधार सकते हैं।

"पहले एक अच्छे इंसान बनो, बाकी सब अपने आप ठीक हो जाएगा"

बचपन में कई बार जब हम कुछ गलत करते थे, तो हमारे पिता हमेशा एक अच्छा इंसान बनने की सलाह दिया करते थे। उनकी यह बात हमें उस समय इरिटेट कर देती थी, क्योंकि शायद उस समय हम यह नहीं जानते थे कि एक अच्छा इंसान क्या होता है। साथ ही अच्छा बनना क्यों इतना जरूरी है। इसका असल मतलब हमें तब समझ आया, जब हम बड़े हुए और घर से बाहर निकले। अच्छा और उदार होना हमारी मानसिकता में सकारात्मकता को बढ़ाता है।

"कभी भी बेईमानी के तरीके नहीं अपनाना, चाहे वे कितने भी आसान दिखें"

हम हमेशा हर चीज के लिए एक आसान रास्ता ढूंढ़ते हैं। कई बार हमें काम खत्म करने की इतनी जल्दी होती है कि हम बेईमानी को भी नजरअंदाज करते जाते हैं। इसी तरह हमारी जिंदगी में बेईमानी घुस जाती है, जो उस समय हमारे काम को आसान तो बना देती है, लेकिन यह रास्ता कभी सही नहीं होता। कम उम्र में हमें इसका फर्क समझ नहीं आता, लेकिन बड़े होने पर पता चलता है कि बेईमानी का रास्ता कैसे और कितना गलत है।

"खुद की क्षमताओं पर कभी शक न करना"

हमसे ज्यादा अगर हम पर कोई भरोसा करता है, तो वह हैं - हमारे पिता। पिता शुरू से हमें यही सिखाते हैं कि खुद की क्षमताओं पर कभी भी शक मत करो। स्कूल और कॉलेज के दिनों में शायद इन शब्दों का हमारे लिए कोई मतलब नहीं होता, लेकिन जब हम पैसा कमाना शुरू करते हैं या फिर अपनी खुद की जिंदगी शुरू करते हैं, तब हमें समझ आता है कि हमारे पिता कितना सही कहा करते थे।

"अपने पैसों और खर्चों को मैनेज करना सीखें"

बचपन में पिता से यह बात सुनना शायद किसी को भी पसंद नहीं था। उस वक्त अगर हमसे कोई खिलौना या स्कूल की कोई चीज टूट जाती थी, मार्क्स कम आते थे या फिर कीमती चीज की डिमांड कर बैठते थे, तो हमें परिवार का बजट बताया जाता था और यही सुनने को मिलता था कि हमें पैसों की अहमियत को समझना चाहिए। अब जब हमें खुद अपना खर्चा उठाना पड़ रहा है, तो हम कैसे खुद से खर्चों पर फुलस्टॉप लगा लेते हैं। इसके लिए आपको अपने पिता का धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने बचपन से आपको खर्चों को मैनेज करना सिखाया।

" हमेशा कामयाबी की उम्मीद रखो लेकिन हार के लिए तैयार भी रहो"

बचपन में जब भी हम अपनी परीक्षा के परिणाम या फिर किसी इम्तिहान के नतीजों को लेकर परेशान या उलझन में रहते थे, तो पिता यही बताते थे कि हार और जीत जिंदगी का हिस्सा हमेशा रहेंगे, लेकिन यही जिंदगी नहीं है। वह हमेशा यही कहते थे कि कामयाबी की उम्मीद कभी नहीं छोड़नी चाहिए, लेकिन साथ ही हार या असफलता के लिए भी तैयार रहना चाहिए। जिससे हमारे अंदर हार का डर कुछ हद तक कम तो होता था, साथ ही हार न मानने का हौसला भी मिलता था।

हर साल जून के तीसरे रविवार को दुनियाभर में फादर्स डे मनाया जाता है। इसे पहली बार साल 1910 में मनाया गया था, लेकिन इसे आधिकारिक दर्जा 6 दशकों के बाद ही मिल सका। यह दिन हमारी जिंदगी में पिता की अहमियत और उन्हें सम्मान देने के लिए सेलिब्रेट किया जाता है।