Fire Holi: भारत का वो गांव जहां गुलाल, लड्डू या फूलों से नहीं बल्कि खेली जाती है आग की होली
Fire Holi भारत में कहीं रंग और गुलाल से तो कहीं फूलों से कहीं लड्डूओं से तो कहीं लठ से होली खेली जाती है। लेकिन भारत में ही एक गांव ऐसा है जहां आग से होली खेली जाती है। जानें
By Ritu ShawEdited By: Ritu ShawUpdated: Wed, 08 Mar 2023 01:28 PM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Fire Holi: होली रंगों का त्योहार है, लेकिन विविधता भरे देश भारत में होली को कई अलग-अलग तरहों से भी मनाया जाता है। कहीं रंग और गुलाल से, तो कहीं फूलों से, कहीं लड्डूओं से तो कहीं लठ से। लेकिन आपने आग से होली खेलने के बारे में सुना है? जी हां, भारत में ही एक ऐसी जगह है जहां आग से होली खेली जाती है। मालूम है ये सुनने में थोड़ा डरावना है लेकिन, गोवा के मल्कार्नेम गांव के लोग अपने शरीर पर गर्म अंगारे बरसाते हैं, यह त्योहार से जुड़ी एक अनोखी परंपरा है।
कई राज्यों में, होली का त्यौहार अगले दिन शुरू होता है जब लोग एक रात पहले 'होलिका' दहन करते हैं, जिसे बुराई के अंत का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, दक्षिण गोवा में पणजी से 80 किमी दूर स्थित मैलकोर्नेम गांव में लोग एक अलग और अनोखे उत्सव का पालन करते हैं, जिसे वे सदियों से मनाते आ रहे हैं।
ये परंपरा कब शुरू हुई?
यहां के स्थानीय लोगों के मुताबिक इस परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई इसका रिकॉर्ड किसी के पास नहीं है। लेकिन 'शेनी उजो' (आग की होली) वहां के मंदिर संस्कृति का अभिन्न अंग है। साल में एक बार, यह परंपरा होली के त्योहार की पूर्व संध्या पर मनाई जाती है। कोंकणी में, "शेनी" का अर्थ है गाय का सूखा उपला और "उजो" शब्द का अर्थ आग है। होली से एक रात पहले, सैकड़ों लोग श्री मल्लिकार्जुन, श्री वागरोदेव और श्री झालमीदेव सहित विभिन्न मंदिरों के बीच खुले स्थान पर इकट्ठा होने लगते हैं जहां "शेनी उजो" अनुष्ठान किया जाता है। वागरोदेव मंदिर एक बाघ को समर्पित है इस जंगली जानवर की मूर्ति की कई दशकों से पूजा की जा रही है।मंदिरों का पूरा समूह अद्वितीय है क्योंकि इनमें 43 शिवलिंग हैं।
"शेनी उजो" की विधि
"शेनी उजो" की तैयारी होली के त्योहार से एक पखवाड़े पहले शुरू हो जाती है और जो लोग अनुष्ठान में भाग लेना चाहते हैं उन्हें सख्त शाकाहारी भोजन का पालन करना होता है और पवित्र जीवन का पालन करना होता है। होली से एक रात पहले, ग्रामीण विभिन्न अनुष्ठानों को करने के लिए सुपारी के पेड़ों के तीन विशाल तनों के साथ एक खुली जगह पर इकट्ठा होते हैं, जिसका समापन "शेनी उजो" में होता है। इन सभी अनुष्ठानों को करते समय व्यक्ति को नंगे पैर रहना होता है। पूरी रात अनुष्ठान चलता रहता है। प्रतिभागी मैदान में एकत्रित होने से पहले मंदिरों के चारों ओर दौड़ते हैं और सुबह के समय वे गाय के गोबर के उपले जलाते हैं और खुद पर अंगारे फेंकते हैं। इस अवसर पर दर्शक गिरते अंगारों के नीचे दौड़ भी सकते हैं।ऐसा माना जाता है कि अगर आप इस आग पर भागते हैं, तो पिछले वर्ष में आपके द्वारा किए गए पाप क्षमा हो जाएंगे। यह भी माना जाता है कि ऐसा करने से रोग ठीक हो जाते हैं। वहां स्थानीय लोगों का कहना है कि सालों से चली आ रही "शेनी उजो" की परंपरा के दौरान आज तक किसी के चोटिल होने की घटना नहीं हुई है।