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Vijayadashami 2024: बिहार से लेकर मध्य प्रदेश तक, विजयादशमी पर राजसी रसोई में बनाए जाते हैं ये पकवान

असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है विजयादशमी। वह दिन जब आज भी राजपरिवारों में रघुवंशी श्रीराम के शौर्य को नमन कर शस्त्र पूजन किया जाता है और आयोजित किया जाता है विशाल मेला। विजयदशमी का एक और दिलचस्प पहलू है इस दिन राजपरिवारों में तैयार होने वाले विशेष व्यंजन। चने की दाल से बनने वाली दालपूरी भी इस थाली का हिस्सा होती है।

By Jagran News Edited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 06 Oct 2024 12:40 AM (IST)
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Vijayadashami 2024: विजयादशमी पर्व का प्रिय भोग

आरती तिवारी। कहीं चर्चा है रावण के ऊंचे-ऊंचे पुतलों की तो कहीं दुर्गा मां की भव्य मूर्ति पर न्योछावर हो रहे हैं भक्त, मगर इन दिनों एक हलचल है राज परिवारों के भीतर भी। विजयादशमी आने वाली है, तो राजपरिवारों की रसोई में महक रही है मसालों की खुशबू और तैयारी हो रही है स्वादिष्ट व्यंजनों की। भारत में राजघरानों की पाक-कला की समृद्ध विरासत है और उनके पारंपरिक व्यंजन उत्सव का अभिन्न अंग हैं। विजयादशमी ऐसा समय है जब ये राजसी व्यंजन केंद्र में होते हैं, जहां हर व्यंजन को सटीकता और स्वयं राजपरिवारों के मुख्य सदस्यों की निगरानी में तैयार किया जाता है।

राजा राम के दरबार से

भगवान श्रीराम भले ही राजा रहे, मगर सौम्यता में उनका कोई मुकाबला नहीं। व्यक्तित्व की यह सरलता आज भी अयोध्या के राजपरिवार में मौजूद है। अयोध्या राजपरिवार के विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र की बेटी मंजरी मिश्रा बताती हैं, ‘विजयदशमी को देवी पूजन, चंद्रपूजन, शमी पूजन के साथ ही कुलगुरु की पूजा होती है। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है, जो बिना लहसुन-प्याज के तैयार होता है। इस थाली में कई तरह के व्यंजन होते हैं, जिनमें दाल का पराठा, सूरन की सब्जी, दही बड़ा आदि प्रमुख हैं, जिन्हें प्रसादस्वरूप हम भी खाते हैं।

इस भोजन में मुख्यत: मौसमी सब्जियां होती हैं। जो भी नई सब्जियां आ रही होती हैं, उन्हें अवश्य शामिल किया जाता है, क्योंकि इसमें भोग चढ़ता है। इसके साथ ही इसी मौसम में आने वाले अगस्त्य (अगस्त अथवा गाछ मूंगा) नामक फूल के पकौड़े बनाए जाते हैं। कई तरह की बेहतरीन मिठाइयां इस थाली का अनिवार्य हिस्सा होती हैं। इसमें खीर जरूर बनती है, प्रसाद के लिए हलवा बनता है। मीठा चावल बनता है, जो हमारे यहां का सदियों पुराना व्यंजन है। इसे घर की घी-मलाई के साथ लंबे समय तक दम करके विशेष सामग्रियों के साथ तैयार किया जाता है। इसके साथ ही केसर शर्बत और गुलाब शर्बत भी बनता है।’

सारी तैयारी देखती हैं रानी

बिहार में हथुआ राजपरिवार की कुलमाता कुमार रानी सुमिता साही अपनी सास रानी जनक नंदनी साही की मदद से राजपरिवार की पारंपरिक पाककला को संरक्षित करती आ रही हैं। नवरात्र और विजयदशमी पर तैयार होने वाले विशेष व्यंजनों के बारे में रानी सुमिता बताती हैं, ‘हमारे राजघराने में नौ दिन व्रत के दौरान सात्विक भोजन बनता है। अष्टमी वाले दिन देवी को बलि चढ़ाई जाती है, उस प्रसाद को नवमी को बिना प्याज-लहसुन के तैयार किया जाता है।

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दशमी को शस्त्र पूजन के बाद रसोई में सरसों के तेल और घी में नए आलू और पत्तागोभी के साथ ही खड़े मसालों को कूटकर पत्तागोभी पुलाव तैयार किया जाता है। यह नए मौसम का स्वागत करने वाला व्यंजन है, जिसमें नए चावल, नया आलू आदि इस्तेमाल होते हैं। बैंगन का भर्ता, दही-बड़ा भी थाली का हिस्सा होते हैं। दशमी से एक रात पहले सरसों के तेल, राई, नमक, लाल मिर्च और हल्दी के साथ छौंका लगाकर लौकी का रायता तैयार किया जाता है। चने की दाल से बनने वाली दालपूरी भी इस थाली का हिस्सा होती है।

दशमी को गद्दी पूजा के बाद अरबी प्याज-लहसुन का उपयोग करके अरबी का कोरमा बनता है। मीठे में दूधपिठी बनती है, जो राजपरिवार की रानियां ही बनाती हैं। इसमें गूंथे हुए आटे को हाथ से महीन जौ के आकार में बनाकर दूध में पकाया जाता है। इसके साथ ही मालपुआ बनता है। दशहरा के साथ सर्दियों की शुरुआत होने लगती है, ऐसे में केसर पुलाव और पेय में बादाम-केसर वाला दूध बनता है। इस पूरी थाली में कुकिंग स्टाफ मदद तो करते हैं, मगर राजपरिवार की रानियां ही विशेष भोजन तैयार करती हैं। हमारे परिवार में कुछ शुद्ध शाकाहारी और कुछ मांसाहारी हैं, ऐसे में अलग-अलग रसोई में भोजन बनाने की परंपरा है।’

उत्कृष्ट स्वाद इंद्रहार का

मध्य प्रदेश के रीवा रियासत की बघेली थाली का कोई जवाब नहीं। विजयदशमी पर बनने वाले व्यंजनों के बारे में रीवा राजपरिवार के महाराजा पुष्पराज सिंह बताते हैं, ‘विंध्य की मिट्टी में जो कुछ भी उगाया जाता है, बघेलों का राजपरिवार उसका सेवन करता है। आठ या नौ दिनों के उपवास के बाद शाकाहारी व मांसाहारी बघेली व्यंजन तैयार किए जाते हैं। इसमें इंद्रहार या रसाज, रिकमच, दाल पूरियां, मींजा कढ़ी, कोदई भाजी, लउबरा, घी की गाढ़ी ग्रेवी में तैयार कटहल मसाला, गुलाब चावल, कटहल बिरयानी, महेरी, कोदो चावल की खीर बनती है। इसके साथ ही शुद्ध घी में पका मसालेदार मटन कबाब, मटन/चिकन बघेली, सूफियाना चावल बनते हैं।

वहीं मिठाइयों में कोदो की खीर, चने का हलवा, खुरचन, मावा युक्त लौकी का हलवा और बेसन के लड्डू बनते हैं। बेल का शरबत, आम का रस, महुआ का शर्बत, बादाम ठंडई भी इसमें शामिल हैं। पठानी भोजन और बघेली भोजन के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव देखा जा सकता है क्योंकि पठान गुजरात से रीवा तक आए थे। ऐसे में मुख्य रूप से बरा, मुंगउरा, साबूदाना/सेवइयों की खीर, जर्दा, मीठे चावल मुस्लिम शैली के ऐसे खाद्य पदार्थ हैं, जो विजयदशमी के दौरान खाए जाते हैं।’

धीमी आंच पर सोंधा स्वाद

मेवाड़ राजघराने का शौर्य और शान तो अद्भुत है ही, यहां की रसोई के व्यंजनों की सुगंध इतनी जबरदस्त है कि यह विदेशी मेहमानों को भी खींच लाने में सक्षम है। उदयपुर राजघराने के राजकुमार और महाराणा प्रताप के वंशज लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ स्वयं भोजन पकाने के शौकीन हैं। विजयदशमी के दौरान बनने वाले व्यंजनों के बारे में लक्ष्यराज सिंह बताते हैं, ‘मेवाड़ के राजमहलों में खाद्य धरोहरों को संरक्षण मिला है। यहां सदियों से पारंपरिक भोजन बनता आ रहा है। हमारी शाही थाली दाल-बाटी, चूरमा, लाल मांस, सफेद मुर्ग, मोहन मांस, दाल ढोकली, पापड़, केर सांगरी अचार और रोटी से सजी होती है।

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इसके साथ ही यहां श्रीअन्न से तैयार भोजन भी खूब मिलता है, जिसमें बाजरे की राब का भी अहम स्थान है। वहीं मीठे में मुख्यत: केसरी भात, गुलाबी खीर, मखनी रसगुल्ला शामिल किया जाता है। इस पूरी थाली को तैयार करने की सबसे अहम कड़ी है कि भोजन में इस्तेमाल होने वाला हर मसाला एकदम ताजा होता है और भोजन बनाने की तकनीक है– धीमी आंच में आराम से पकाना, ताकि भोजन का स्वाद बना रहे और सेहत को भी लगे। कुछ ऐसी सीक्रेट रेसिपी व उन्हें पकाने का तरीका भी है, जो पीढ़ी-दर पीढ़ी हमारे साथ चला आ रहा है!’