Rakshabandhan 2023: रक्षाबंधन मनाने के पीछे प्रचलित है ये ऐतिहासिक कहानी, इस मुगल सम्राट से जुड़ा है इतिहास
Rakshabandhan 2023 भाई-बहन के इस पावन त्योहार को हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार का लोगोंं को बेसब्री से इंतजार रहता है। रक्षाबंधन को मनाने के पीछे कई सारी पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं लेकिन इस त्योहार से जुड़ी एक ऐतिहासिक कहानी भी है जिसे काफी कम लोग जानते हैं। तो चलिए आपको बताते हैं रक्षाबंधन से जुड़ी यह रोचक कहानी।
By Harshita SaxenaEdited By: Harshita SaxenaUpdated: Wed, 30 Aug 2023 11:32 AM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Rakshabandhan 2023: देशभर में इस समय रक्षाबंधन की धूम मची हुई है। हर कोई इस त्योहार का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत बनाने वाला यह त्योहार हर साल सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस त्योहार का काफी महत्व है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांध उनसे सुरक्षा का वचन लेती हैं। भारत में हर एक त्योहार को मनाने की अपनी अलग मान्यता और परंपरा है। राखी भी इन्हीं त्योहारों में से एक है।
हर साल यह त्योहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल देशभर में 30 और 31 अगस्त को रक्षाबंधन मनाया जा रहा है। भाई-बहन का यह त्योहार यूं तो देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस त्योहार को मनाने की शुरुआत कैसे हुई। दरअसल, इस त्योहार को मनाने के पीछे कई सारी पौराणिक कहानियां प्रचलित है, लेकिन इससे जुड़ी एक ऐतिहासिक कहानी भी काफी मशहूर है। आइए जानते हैं रक्षाबंधन से जुड़ी इसी प्रचलित ऐतिहासिक कहानी के बारे में -
इस मुगल शासक से जुड़ी है कहानी
हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहार का इतिहास एक मुगल शासक से जुड़ा हुआ है। रक्षाबंधन की यह ऐतिहासिक कहानी रानी कर्णावती और मुगल सम्राट हुमायूं से जुड़ी हुई है। ऐसा माना जाता है कि रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी थी। इसके बाद से इस त्योहार को मनाने की परंपरा शुरू हुई। रानी ने मुगल सम्राट को राखी भेज कर मदद की गुहार लगाई थी, जिसके बाद हुमायूं ने कर्णावती की मदद करने का फैसला किया था।विधवा रानी ने भेजी थी राखी
दरअसल, राणा संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा की विधवा रानी कर्णावती ने मुगल सम्राट को उस वक्त राखी भेजी थी, जब गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया था। उस दौरान रानी का बेटा चित्तौड़ की गद्दी संभाल रहा था, लेकिन उनके पास इतनी फौज नहीं थी कि वह अपनी रियासत की सुरक्षा कर सके। ऐसे में मदद की उम्मीद से कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी, जिसे सम्राट ने कबूल कर उनकी मदद की।
ऐसे निभाया अपना वचन
रानी कर्णावती की मदद करने के लिए हुमायूं अपनी विशाल सेना के साथ चित्तौड़ के लिए निकल पड़े, लेकिन लंबा रास्ता होने की वजह से जब तक वह चित्तौड़ पहुंचे, तब तक रानी कर्णावती जौहर (आग में कूदकर जान देना) कर चुकी थी। रानी के जौहर के बाद बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया था। इस बारे में सुन हुमायूं आग बबूला हो गए और उन्होंने बदला लेने के लिए चित्तौड़ पर हमला कर दिया। बहादुर शाह और हुमायूं के बीच हुए इस युद्ध में हुमायूं को जीत हासिल हुई और उन्होंने दोबारा रानी कर्णावती के बेटे विक्रमजीत सिंह को चित्तौड़ का शासन सौंप दिया और इस तरह भाई-बहन का यह रिश्ता हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।Picture Courtesy: Freepik