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सदियों पुरानी है 'लिट्टी-चोखा' की कहानी, क्या आप जानते हैं कैसे बना यह बिहार की पहचान?

बिहार का प्रसिद्ध व्यंजन लिट्टी-चोखा (Litti-Chokha) आज दुनिया भर में अपने स्वाद के लिए मशहूर है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत मगध साम्राज्य के समय हुई थी जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी जो आज का पटना है। उस समय के सैनिकों के लिए लिट्टी-चोखा एक बेहद पौष्टिक और पोर्टेबल फूड आइटम था क्योंकि इसे युद्ध के दौरान अपने साथ ले जा सकते थे। आइए आपको बताते हैं इसका दिलचस्प इतिहास।

By Nikhil Pawar Edited By: Nikhil Pawar Updated: Sun, 13 Oct 2024 06:52 PM (IST)
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Litti Chokha History: कब और कैसे हुई 'लिट्टी-चोखा' की शुरुआत? (Image Source: Instagram)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। लिट्टी-चोखा (Litti-Chokha) सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि बिहार की संस्कृति और पहचान का प्रतीक भी है। लिट्टी-चोखा का स्वाद इतना अनूठा और लाजवाब होता है कि एक बार खाने के बाद हर कोई इसका दीवाना हो जाता है। आज सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के लोग इस डिश को बड़े चाव से खाते हैं। समय के साथ लिट्टी-चोखा का स्वरूप बेशक बदलता रहा लेकिन इसका स्वाद लोगों के दिलों पर हमेशा राज करता रहा है। जी हां, आपको जानकर हैरानी होगी कि लिट्टी-चोखा का इतिहास (Litti Chokha History) उतना ही पुराना है जितना बिहार की धरती।

मगध साम्राज्य से जुड़ा इतिहास

लिट्टी-चोखा की उत्पत्ति कब हुई, इस बारे में कोई ठोस प्रमाण तो नहीं मिलता है, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसकी जड़ें मगध साम्राज्य से जुड़ी हैं, जिसने छठी शताब्दी ईसा पूर्व से 5वीं शताब्दी ईस्वी तक बिहार और झारखंड के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। मगध साम्राज्य उस समय का एक शक्तिशाली साम्राज्य था और इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज का पटना) एक बहुत ही समृद्ध शहर हुआ करता था। जब यूनानी राजदूत मेगस्थनीज लगभग 350 ईसा पूर्व से लगभग 290 ईसा पूर्व के बीच पाटलिपुत्र आए, तो वे इस शहर की समृद्धि और लोगों के जीवन स्तर को देखकर दंग रह गए थे।

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रसोई से युद्ध के मैदान तक

ऐसा माना जाता है कि मगध साम्राज्य के सैनिकों के लिए लिट्टी-चोखा एक बेहद पौष्टिक और पोर्टेबल भोजन था क्योंकि वे इसे युद्ध के दौरान अपने साथ ले जाते थे। सैनिक युद्ध के दौरान इन पराठों को गर्म पत्थरों या गोबर के उपलों पर सेंककर चटनी या अचार के साथ खाते थे। लिट्टी को गेहूं के आटे से बनाया जाता था और इसमें सत्तू, घी, और विभिन्न प्रकार के मसाले होते थे। वहीं, चोखा, जो कि आलू और बैंगन से बना होता था और लिट्टी के साथ बहुत ही स्वादिष्ट लगता था।

समय के साथ बदला स्वाद

लिट्टी-चोखा का स्वाद आज जितना परिचित है, इसकी उत्पत्ति और विकास का इतिहास उतना ही रोचक है। विभिन्न शासकों के आगमन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के साथ इस व्यंजन में कई बदलाव आए। मुगल काल के दौरान, शाही रसोइयों ने लिट्टी को एक नया आयाम दिया। मुगल सम्राटों को लिट्टी को पायस और शोरबा के साथ परोसा जाता था। यह शाही रसोई की विस्तृत विविधता और प्रयोग का एक उदाहरण है। लिट्टी को अधिक शाही स्वाद देने के लिए इसमें विभिन्न प्रकार के मेवे और सूखे मेवे भी मिलाए जाते थे।

दूसरी ओर, चोखा की उत्पत्ति झारखंड के आदिवासी समुदायों से जुड़ी मानी जाती है। वे लकड़ी की आग पर आलू, बैंगन, टमाटर और प्याज जैसी सब्जियों को भूनते और मैश करके एक सरल सा व्यंजन बनाते थे। यह चोखा उनके मुख्य भोजन चावल या बाजरे के साथ परोसा जाता था। यह एक बेहद सरल और पौष्टिक भोजन था जो आदिवासियों के दैनिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा था।

समय के साथ, लिट्टी और चोखा का संयोजन एक ऐसा स्वादिष्ट व्यंजन बन गया जो बिहार और झारखंड की पहचान बन गया। लिट्टी का नरम और स्वादिष्ट अंदर और चोखा का तीखा और मसालेदार स्वाद एक दूसरे को पूरक करते हैं। आज, लिट्टी-चोखा पूरे भारत में लोकप्रिय है और इसे विभिन्न रेस्तरां और स्ट्रीट फूड स्टालों पर आसानी से उपलब्ध है। इस प्रकार, लिट्टी-चोखा सिर्फ एक व्यंजन नहीं है, बल्कि यह हमारे इतिहास, संस्कृति और विविधता का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक ऐसा व्यंजन है जो सदियों से विकसित हुआ है और आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

ऐसा भोजन जो युद्ध के मैदान में भी साथ रहा

इतिहास गवाह है कि लिट्टी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक अहम भूमिका निभाई थी। प्राचीन काल से ही लिट्टी को सैनिकों के लिए एक आदर्श भोजन माना जाता था। इसे आसानी से तैयार किया जा सकता था और इसे बिना किसी बर्तन के भी पकाया जा सकता था। इसकी लंबी शेल्फ लाइफ के कारण, सैनिक इसे लंबे अभियानों के दौरान अपने साथ ले जा सकते थे। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिट्टी की उपयोगिता और बढ़ गई।

तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने जंगलों में गुप्त रूप से रहते हुए लिट्टी को अपना मुख्य भोजन बनाया था। लिट्टी को बनाने के लिए कम से कम सामग्री की आवश्यकता होती थी और इसे जंगलों में आसानी से उपलब्ध सामग्री से तैयार किया जा सकता था। लिट्टी को आग में या गरम पत्थरों पर सेंककर बनाया जाता था, जिससे ईंधन की बचत होती थी। इसके अलावा, लिट्टी को पानी में भिगोकर कई दिनों तक रखा जा सकता था, जिससे सैनिकों को भोजन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता था।

लिट्टी के पोषक तत्वों ने सैनिकों को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखने में मदद की। इसकी ऊर्जा प्रदान करने की क्षमता ने सैनिकों को लंबे समय तक जंगलों में छिपे रहने और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने में सक्षम बनाया। इस प्रकार, लिट्टी ने स्वतंत्रता संग्राम में एक अहम भूमिका निभाते हुए भारतीयों के लिए एक प्रतीक बन गई।

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