सदियों से लोगों को लुभा रही यह स्वादिष्ट मिठाई, 'हलवे' से ही मिला इस पेशे को अपना नाम
फरमाइश होते ही घर में बन जाए पूरी गली में खुशबू भर जाए ऐसी शानदार चीज तो एक ही है और वह है हलवा (Halwa)। इस आर्टिकल में शेफ डॉ. सौरभ बता रहे हैं कि यह एक ऐसा व्यंजन (Indian Sweets) है जिसने न सिर्फ एक पूरे पेशे का नामकरण कर दिया बल्कि मीठा बनाने-खाने में गरीब-अमीर का अंतर भी खत्म कर दिया। आइए जानें।
शेफ डॉ. सौरभ, नई दिल्ली। हिंदुस्तान में हजारों तरह की मिठाइयां हैं और उन्हें बनाने के सैकड़ों तरीके है, मगर हलवा (Halwa) जैसी सरल और सहूलियत भरी मिठाई दूसरी कोई नहीं। आटे अथवा सूजी के साथ अपने देसी घरेलू रूप में यह एक सोंधा खुशबूदार नाश्ता है- खाने में नरम, पचाने में हल्का और मीठा भी उतना ही जितना आप चाहें। वहीं हलवाई के हाथों में देसी घी के साथ मूंग की घुटाई-भुनाई और मेवों की बारिश के साथ यह विवाह का शानदार डेजर्ट बन जाता है। इस कलाकारी की वजह से ही तो भारत में दावत का खाना और मिठाई बनाने वाले विशेषज्ञ कारीगर को ‘हलवाई’ कहा जाता है!
स्वाद का लंबा सफर
यह जानना दिलचस्प है कि जिस मिठाई ने भारत में एक पेशेवर नाम को जन्म दिया, वह मूल रूप से अरब पाक परंपरा की देन है। ‘हलवा’ अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है मीठा। अरब पाक परंपरा में इसके साक्ष्य मध्य-पूर्व एशिया में सातवीं शताब्दी के अब्बासी खिलाफत काल से मौजूद हैं और यह मानने की पर्याप्त वजहें हैं कि यह मुगलों के साथ भारत में मध्य-पूर्व एशिया और फारसी रसोई की कई व्यंजन परंपराओं के साथ आया। मगर भारत आकर यह मिठाई की हदबंदी से निकल कर संस्कृति का अंग बन गया। एक तरफ तो राजस्थानी राजघरानों में इसके साथ बादाम हलवा और मूंग दाल हलवा जैसे राजसी प्रयोग हुए, तो वहीं यह मंदिरों से लेकर गुरुद्वारों (कड़ा प्रसाद) तक, भंडारे से लेकर लंगर तक आम जनता के लिए प्रसाद के रूप में सामने आया। यही नहीं, भारत में तो आम बजट पेश करने से पहले एक बहुचर्चित ‘हलवा रस्म’ भी होती है, जिसमें केंद्रीय वित्तमंत्री और बड़े-बड़े अधिकारी हाथ बंटाते हैं।यह भी पढ़ें- हिंदुस्तानियों के दिल में रच-बस चुका है हलवे का स्वाद, आखिर कब और कैसे हुई थी इसे बनाने की शुरुआत?
एक ऐसा स्वाद जो दिल को छू ले
भारत में हलवा को स्थानीय सामग्रियों और स्वाद से ढाला गया, जिसके परिणामस्वरूप आज हम इसके कई रूपांतर देखते हैं। प्रमुखतः यहां हलवा में घी, चीनी, स्थानीय अनाज, दालें और गाजर-चुकंदर-कद्दू जैसी सब्जियों तक का उपयोग किया जाता है, जिससे यह अनोखी मिठाइयां विकसित हुईं जो भारतीय खाद्य संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गईं। शायद यह शर्बत के बाद इकलौती ऐसी चीज है, जो गरीब-अमीर की रसोई में फर्क नहीं करती। हलवा मेरे दिल के हमेशा करीब रहा है, क्योंकि इसके साथ मेरे बचपन की यादें जुड़ी हैं। राजस्थान में मेरी मां सर्दियों में आटे का हलवा बनाती थीं। खासकर त्योहारों जैसे नवरात्र और दीवाली में इसका स्वाद और बढ़ जाता था। बचपन में हम अक्सर अपना जन्मदिन हलवा के केक के साथ मनाते थे और यही मेरी इसके साथ सबसे बेहतरीन याद है। जो गर्माहट, सुगंध और प्यार इसमें था, वह अब भी मेरी इंद्रियों में बसा हुआ है। एक और बात, जो मुझे दिल तक छू जाती है, वह है गुरुद्वारे में कड़ा प्रसाद बनाने की परंपरा। यह एक आध्यात्मिक अनुभव है, जब सभी आयु और वर्ग के लोग एक साथ आते हैं। इसे बनाने में जो भक्ति भावना होती है उससे सारा वातावरण पवित्र सुगंध से भर जाता है।सर्दियों का साथी
आइए, अब गुलाबी सर्दियों के मौसम में भारत में इसके कुछ प्रसिद्ध संस्करणों का जायजा और जायका लेते हैं। इनमें सबसे मशहूर और घर-घर बनने वाली चीज है गाजर का हलवा। सर्दियों में जब देसी गाजर इफरात में आने लगती है, उत्तर भारत में इन्हें कद्दूकस करके दूध और चीनी में पकाया जाता है। इसमें स्वाद बढ़ाने के लिए इलायची और शान बढ़ाने के लिए खोया और काजू का इस्तेमाल भी होता है। इसी तरह राजस्थान में मशहूर है दाल का हलवा जिसमें मूंग जैसी दालें, घी और चीनी के साथ धीरे-धीरे पकाई जाती हैं। पंजाब की खास पहचान है सोंधा-सोंधा आटा हलवा, जो गेंहू से बनता है और बेहतरीन पौष्टिक नाश्ता है। इसी तरह कभी दक्षिण भारत की यात्रा पर निकलिए तो मिलेगा काशी हलवा, यह कद्दू से बनता है। खाने में स्वादिष्ट और पाचन में खूब हल्का। दरअसल हर क्षेत्र में हलवा बनाने की अपनी विशिष्ट सामग्री होती है, जो स्थानीय उत्पादन और खाद्य प्राथमिकताओं को दर्शाती है। उदाहरण के लिए केरल में आपको केरल ब्लैक हलवा मिलेगा, जो गुड़ और नारियल के तेल से बनता है!