एक नवाब के शौक को पूरा करने के लिए हुई थी Galouti Kebab की खोज, बेहद दिलचस्प है इसका 400 साल पुराना इतिहास
शायद ही कोई ऐसा हो जिसने galouti Kebab का नाम न सुना हो। लखनऊ की शान यह कबाब अपने बेहतरीन स्वाद की वजह से पूरी दुनिया में जाना जाता है। यह खाने में इतने ज्यादा नरम होते हैं कि मुंह में डालते ही घुल जाते हैं। इसका स्वाद जितना लजवाब है उतना ही शानदार इसका इतिहास है। आइए जानते हैं कब और कैसे हुए गलौटी कबाब की खोज-
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Galouti Kebab: तहजीब और अदब का शहर लखनऊ अपने नबावी अंदाज के लिए जाना जाता है। यह शहर कई वजहों से दुनियाभर में काफी मशहूर है। नवाबी संस्कृति को दर्शाता यह शहर पाक कला का खजाना है, जिसका स्वाद चखने दूर-दूर से लोग लखनऊ आते हैं। यहां कई ऐसे व्यंजन मिलते हैं, जिनका नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। लखनऊ नॉनवेज लवर्स के लिए एक बढ़िया फूड स्पॉट है, जहां कई वैरायटी के पकवान मिलते हैं।
गलावटी या गलौटी कबाब इन्हीं में से एक है, जो दुनियाभर में लखनऊ की पहचान माना जाता है। नवाबों की शाही रसोई से निकला यह व्यंजन आज भी अपने लजीज स्वाद की वजह से काफी पसंद किया जाता है। सिर्फ इसका स्वाद ही नहीं, बल्कि इसका इतिहास भी काफी शानदार है। अगर आप भी गलौटी कबाब के शौकीन हैं या अभी तक आपने इसका स्वाद नहीं चखा है, तो आज हम आपको बताएंगे इसके इतिहास के बारे में, जिसे जानकर आपका मन भी एक बार इसे चखने को जरूर करेगा।
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गलौटी कबाब का इतिहास
इतिहास के पन्नों को पलटा जाए, तो पता चलेगा कि 13वीं शताब्दी से ही कबाब हमारे खानपान का हिस्सा बन चुके थे। हालांकि, बात अगर गलौटी कबाब की करें, तो इस लजीज कबाब की खोज अपने नवाबी अंदाज के लिए मशहूर लखनऊ में हुई थी। इसे खासतौर पर एक नवाब के लिए सबसे पहले बनाया गया था, जिसके बाद यह देखते ही देखते पूरे शहर, फिर देश और फिर पूरी दुनिया में मशहूर हो गया।
ऐसे हुई गलौटी कबाब की खोज
गलौटी कबाब खासतौर पर नवाब सिराज-उद-दौला के उत्तराधिकारी नवाब असफ-उद-दौला (Nawab Asaf-ud-Daula) के लिए ईजाद किए गए थे। इसकी शुरुआत 17वीं शताब्दी के अंत में अवध के नवाबों की रसोई में हुई थी। कहा जाता है कि नवाब असद-उद-दौला मीट खाने के बेहद शौकीन थे। हालांकि, उम्र बढ़ने की वजह से उनके दांत टूटने लगे, जिसकी वजह से उनके लिए मीट खाना मुश्किल हो गया। ऐसे में अपने शौक को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने शाही रसोइए यानी खानसामे हाजी मोहम्मद फकर-ए-आलम से ऐसे कबाब बनाने को कहा, जो खाने में बेहद नरम और आसानी से पचने योग्य हो।इसलिए कहलाया गलौटी कबाब
नवाब के शौक को पूरा करने के लिए उनकी इच्छानुसार हाजी मोहम्मद फकर-ए-आलम ने गलौटी कबाब की खोज की। यह कबाक इतने ज्यादा मुलायम थे कि इन्हें बिना चबाए आसानी से खाया जा सकता था। अपनी इसी खासियत की वजह से ही इसे गलौटी कबाब का नाम दिया गया। ‘गलौटी’ कबाब का नाम फारसी शब्द "गलावत" पर रखा गया, जिसका अर्थ है "नरम" या "मुंह में पिघलना"। ये कबाब इतना नरम होते हैं कि मुंह में जाते ही घुल जाते हैं।