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History of Chaat: इस बीमारी के इलाज के लिए हुई थी चाट खाने की शुरुआत, बेहद दिलचस्प है इसका खट्टा-मीठा इतिहास

शादी-पार्टी में या फिर गली-नुक्कड़ और बाजार से गुजरते हुए शायद ही कोई हो जिसे चाट खाने का मन न करता हो। ऐसे में क्या आप जानते हैं कि इसके स्वाद की तरह इसका इतिहास भी बेहद चटपटा और दिलचस्प है? आपको जानकर हैरानी होगी कि इसका कनेक्शन मुगल काल से है। आइए इस आर्टिकल में आपको बताते हैं कि भला कैसे और क्यों हुई थी इसे खाने की शुरुआत।

By Nikhil Pawar Edited By: Nikhil Pawar Updated: Mon, 06 May 2024 02:58 PM (IST)
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कैसे हुई थी चाट खाने की शुरुआत, जानिए इसका दिलचस्प इतिहास
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। History of Chaat: चाट का नाम सुनते ही बच्चों से लेकर बड़ों तक, सभी के मुंह में पानी आने लगता है। पेट खाली हो या भरा, लेकिन इसे खाने के लिए लोग जैसे-तैसे जगह बना ही लेते हैं। देश के हर छोटे-बड़े शहर, गली-नुक्कड़, चौराहे और बाजार में आपको इसके बड़े आउटलेट से लेकर छिटपुट ठेले मिल जाते हैं, जो हर वक्त ग्राहकों की भीड़ से बिजी होते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भला इसकी शुरुआत हुई कहां से थी? बता दें, लोगों की जुबान पर अपना कब्जा कर चुकी इस खट्टी-मीठी और जायकेदार चाट का कनेक्शन मुगल काल से है? आइए जान लीजिए कि कहां की है ये डिश और कैसे पड़ा इसका ये नाम।

16वीं शताब्दी में फैली थी ये बीमारी

आपको जानकर हैरानी होगी कि जो खट्टी-मीठी और तीखी चाट बाजार में खूब शौक से खाई जाती है, उसकी जड़ें 16वीं शताब्दी में पाई जाती हैं। दरअसल, जब मुगल बादशाह शाहजहां और उनकी सेना यमुना किनारे बसने के लिए आई, तो यहां के पानी से हैजा की बीमारी फैल गई थी, जो कि लाख कोशिशों के बाद भी नियंत्रण में नहीं आ रही थी।

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कैसे हुई थी चाट खाने की शुरुआत?

ऐसे में हैजा के इन्फेक्शन से बचने और इसका इलाज करने के लिए उस वक्त एक वैद्य ने सम्राट को कुछ विशेष मसालों के इस्तेमाल के बारे में बताया, जिससे इस इन्फेक्शन से राहत पाने में मदद मिल सके। इस तरह इमली, जड़ी-बूटियों, अलग-अलग तरह के मसालों और धनिया-पुदीना के साथ खट्टा-मीठा और तीखा स्वाद मिलाकर तैयार की गई इस चाट को दिल्ली के कई लोगों ने खाया।

इसे 'चाट' ही क्यों कहते हैं?

अलग-अलग भारतीय मसालों और जड़ी-बूटियों से बनी इस दवा यानी डिश को उस समय लोग चाट-चाटकर खाते थे और चूंकि इसका स्वाद भी अपने आप में अनोखा और चटपटा था, तो ऐसे में लोग इसे चाट कहकर ही पुकारने लगे। आज भारत ही नहीं, साउथ एशिया में भी ये काफी मशहूर है।

मानसओलसा में मिलता है जिक्र

कई इतिहासकार चाट को दही भल्ले से भी जोड़ते हैं। 12वीं शताब्दी में संस्कृत के इनसाइक्‍लोपिडिया मानसओलसा में दही वड़े के जिक्र देखने को मिलता है। बता दें, कर्नाटक पर राज करने वाले सोमेश्वर III ने इसे लिखा था। मानसओलसा में वड़ा को दूध, दही और पानी डुबोने के बारे में बताया गया है। नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान से लेकर दुनिया के कई देशों में आज लोग इसके दीवाने हैं।

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Picture Courtesy: Freepik

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