भारत में ग्लूकोमा के 80% मामलों की नहीं खोज-खबर, जानें क्या है यह खतरनाक बीमारी
Glucoma भारत में तेजी से बढ़ रही एक समस्या है जिसकी वजह से व्यक्ति के आंखों की रोशनी जा सकती है लेकिन जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में ग्लूकोमा के 80% मामलों का पता ही नहीं चल पाता है। हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो आंखों की नियमित जांच से इस बीमारी का समय रहते पता लगाया जा सकता है और जरूरी उपचार से ठीक किया जा सकता है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। ग्लूकोमा को छुपा चोर भी कहा जाता है। दुनियाभर में तकरीबन 8 करोड़ लोग इससे प्रभावित हैं। हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो ग्लूकोमा के लगभग 80% मामलों का पता ही नहीं चल पाता। ग्लूकोमा एक ऐसी बीमारी है, जो ऑप्टिक तंत्रिका को प्रभावित करती है। ऐसा आमतौर पर बढ़े हुए इंट्राओकुलर प्रेशर के कारण होता है।शुरुआत में इसके कोई लक्षण नजर नहीं आते. लेकिन धीरे-धीरे ये परेशानी बढ़ती जाती है। समय रहते इस पर ध्यान न दिया जाए, तो ये अंधेपन की भी वजह बन सकता है।
भारत में ग्लूकोमा से निपटने में कुछ प्रमुख चुनौतियों में से एक यह है कि यहां नियमित आंखों की जांच नहीं होती है, खासकर गरीब आबादी और ग्रामीण क्षेत्रों में। साथ ही लोगों में आंख से जुड़ी बीमारी को लेकर जागरूकता भी कम है। इन्हीं वजहों से ये समस्या तेजी से बढ़ रही है। दिल्ली आई सेंटर और सर गंगा राम अस्पताल के वरिष्ठ कॉर्निया, मोतियाबिंद और सर्जरी एक्सपर्ट इकेदा लाल ने बताया कि, 'ग्लूकोमा आंखों की स्थितियों का एक समूह है, जो ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाता है, जिससे धीरे-धीरे दृष्टि हानि होती है। शुरुआती चरण में इसका कोई लक्षण नहीं दिखता है। प्रारंभिक निदान के लिए नियमित रूप से आंखों की जांच जरूरी है।'
उन्होंने आगे बताया कि जैसे-जैसे स्थिति बढ़ती है, व्यक्ति को धुंधली दृष्टि, कम रोशनी के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई और रोशनी के चारों ओर प्रभामंडल देखने का अनुभव हो सकता है। कुछ मरीजों को आंखों में दर्द और सिरदर्द का भी अनुभव हो सकता है। डॉक्टर ने कहा, 'अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई दे, तो नेत्र परीक्षण के लिए नेत्र चिकित्सक को दिखाना महत्वपूर्ण है।'
भारत में 40 साल और उससे ज्यादा उम्र के लगभग 1 करोड़ लोग ग्लूकोमा का शिकार हैं, लेकिन, उनमें से सिर्फ 20 प्रतिशत ही इस बीमारी के बारे में जानते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ग्लूकोमा के लक्षण ही शुरुआत में नहीं दिखाई देते। एक्सपर्ट्स के अनुसार, ग्लूकोमा किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है, लेकिन मुख्य रूप से मीडियम एज ग्रूप और बुजुर्गों में ये समस्या ज्यादा देखने को मिलती है।
नई दिल्ली एम्स में आरपी सेंटर फॉर ऑप्थेलमिक साइंसेज के रोहित सक्सेना ने को बताया, ''ग्लूकोमा में दृष्टिहानि ऑप्टिक तंत्रिका की डैमेजिंग की वजह से होती है, जो आंखों से ब्रेन तक इमेज को ले जाने के लिए जिम्मेदार होती है। अंधापन डे टू डे की एक्टिविटीज को करने की क्षमता में कमी से जुड़ी हो सकती है, जिसमें अवसाद और चिंता भी शामिल हैं।"इसके अलावा डाक्टर्स का कहना है कि, बढ़ती उम्र के साथ ग्लूकोमा आम होता जाता हैृ। फैमिली हिस्ट्री और जेनेटिक्स इसमें अहम भूमिका निभाते हैं। जिन लोगों के परिवार या रिश्तेदार में कोई ग्लूकोमा से प्रभावित होता हैं, उन लोगों को इसके होने का खतरा ज्यादा होता है। ग्लूकोमा का कोई पूर्ण इलाज नहीं है, लेकिन, इसमें जल्दी पता लगाना और उपचार बहुत महत्वपूर्ण है। इससे अंधेपन की समस्या को रोकने में मदद मिलती है। डॉक्टर्स ने कहा कि, जब इसकी पहचान हो जाती है, तो लोगों को लगातार मॉनिटरिंग और प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
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