मानसून बढ़ा सकता है एलर्जिक अस्थमा का खतरा, इन तरीकों से करें इसे मैनेज
अस्थमा (दमा) एक ऐसी स्थिति है जो फेफड़ों में वायुमार्ग को प्रभावित करती है। इस वजह से सांस लेने खांसने में कठिनाई घरघराहट (सांस लेने के दौरान सीटी जैसी आवाज) और सीने में जकड़न जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं। मौसम में बदलाव के साथ अस्थमा मरीजों की हालत और खराब हो सकती है। ऐसे में कुछ खास बातों का खासतौर से रखें ध्यान।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। मानसून सुकून, खुशी के अलावा अपने साथ कई बीमारियों को भी साथ लेकर लाता है। इस मौसम में जॉन्डिस, फ्लू, टाइफाइड, हेपेटाइटिस ए का तो खतरा बढ़ ही जाता है, साथ ही अस्थमा मरीजों की भी हालत बुरी हो जाती है। जिससे आपकी डे टू डे की लाइफ पर असर पड़ सकता है। एलर्जिक अस्थमा को लेकर हमने डॉ. चंद्रमणि पंजाबी, कंसल्टेंट चेस्ट स्पेशलिस्ट, दिल्ली से बातचीत की। जिन्होंने इससे जुड़ी की जरूरी बातें बताई।
एलर्जिक अस्थमा क्या है?
अस्थमा का सबसे आम प्रकार है, जो पालतू जानवरों की रूसी, फफूंद, धूल के कण या पोलन के संपर्क में आने पर ट्रिगर हो जाता है। उदाहरण के लिए, वसंत का खुशगवार मौसम अपने साथ हवा में पराग कणों की भी मात्रा लेकर आता है, जिससे सांस लेने पर वायुमार्ग में सूजन और जलन हो सकती है और इससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इसके चलते खांसी, घरघराहट और सीने में जकड़न जैसे लक्षण नजर आते हैं। कुछ लोगों को इसके चलते नाक बंद होना, खुजली या आंखों से पानी आना, चकत्ते जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
अस्थमा के कारण
अस्थमा कई कारणों से हो सकता है। इसमें पारिवारिक इतिहास, बचपन में सांस से जुड़ा कोई इन्फेक्शन, केमिकल के संपर्क में ज्यादा रहना, धूम्रपान, मोटापा, तंबाकू के धुएं के संपर्क में आना, घर में ऐसे ईंधन (लकड़ी/गाय का गोबर/केरोसिन) का उपयोग जिससे धुआं निकलता है और वायु प्रदूषण शामिल हैं। ये सभी कारण अस्थमा होने के जोखिम को बढ़ा सकते हैं या मौजूदा लक्षणों को और गंभीर बना सकते हैं।इसके अलावा, अस्थमा और भी कई तरह से हो सकता है और इनमें से हर एक के अपने अलग लक्षण और ट्रिगर होते हैं।इनमें व्यायाम से होने वाला अस्थमा और एलर्जी अस्थमा शामिल हैं। हालांकि कुछ चीजों पर ध्यान देकर इस स्थिति को काफी हद तक कंट्रोल में रखा जा सकता है।
जांच और प्रबंधन
एलर्जिक अस्थमा का पता लगाने के लिए, कई तरह के परीक्षण किए जाते हैं। इनमें ब्लड टेस्ट या स्किन प्रिक टेस्ट जैसे टेस्ट शामिल हैं, जिनसे एलर्जेन सेंसिटिविटी का पता लग जाता है। जबकि अस्थमा से जुड़े टेस्ट, जैसे कि स्पाइरोमेट्री या (एफईएनओ - FeNO) का इस्तेमाल फेफड़ों के फंक्शन को समझने के लिए किया जा सकता है।इन टेस्ट के आधार पर मरीज को जरूरी उपचार बताए जाते हैं, जिसमें इनहेलेशन थेरेपी सबसे पहला ऑप्शन है। जिससे मरीज को तुरंत राहत मिलती है। कई बार अस्थमा बहुत खतरनाक भी हो सकता है, तो इसके लिए डॉक्टर्स इमरजेंसी दवाएं भी सजेस्ट करते हैं।ये भी पढ़ें- Viral Infection को न समझें मामूली, बच्चों से लेकर गर्भवती महिलाओं तक के लिए साबित हो सकता है खतरनाक
एलर्जिक अस्थमा को इन तरीकों से करें कंट्रोल
- वसंत, मानसून के मौसम में जितना हो सके घर के अंदर रहें।
- डीह्यूमिडिफ़ायर या एयर कंडीशनर का इस्तेमाल कर घर के अंदर की नमी को बरकरार रखें ।
- नियमित रूप से अपनी दवाओं का सेवन करें।
- अस्थमा के मरीज हैं, तो घर में एयर फिल्टर जरूर लगाएं, जो कमरे की हवा को साफ बनाने का काम करते हैं।