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सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित बच्चों को उपचार से ज्यादा चाहिए प्यार

जीन में परिवर्तन मस्तिष्क का असामान्य विकास सिर की चोट और रक्तस्र्राव है सेरेब्रल पाल्सी का कारण। इसे ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन पहचान और उपचार से नियंत्रण पाया जा सकता है। 6 अक्टूबर को विश्व सेलेबऱल पाल्सी दिवस पर जानकारी दे रहे हैं विकास गुप्ता न्यूरो सर्जन दिल्ली

By Keerti SinghEdited By: Updated: Tue, 04 Oct 2022 06:13 PM (IST)
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सेरेबऱल पाल्सी से ग्रसित बच्चों को चाहिए आपका स्नेह

 लालजी बाजपेयी

सेरेब्रल पाल्सी एक न्यूरोलाजिकल डिसआर्डर है। इससे ग्रसित बच्चे के बारे में अभिभावक तीन से चार साल बाद ही जान पाते हैं। इस बीमारी का उपचार नहीं है। इसलिए उपचार से ज्यादा आजीवन बेहतर देखभाल की जरूरत होती है। यदि समय पर बीमारी की पहचान हो जाए और चिकित्सकीय मदद ली जाए तो कुछ हद तक राहत मिल सकती है। सेरेब्रल पाल्सी से ग्रस्त बच्चे स्वस्थ बच्चों की तरह चलने-फिरने में अक्षम होते हैं और इनका बौद्धिक विकास भी प्रभावित होता है। इसके अलावा इन्हें करवट लेने व उठने में भी परेशानी होती है। उम्र के साथ ही इस बीमारी के लक्षण गंभीर होते जाते हैं। कुछ मामलों में बच्चे को व्हीलचेयर का सहारा भी लेना पड सकता है। इसके कारण बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास नहीं हो पाता है और वे पूरी तरह दूसरों पर निर्भर होते हैं। इसलिए इससे ग्रसित बच्चों को अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है।

इस बीमारी से शिशु प्राय: गर्भावस्था के दौरान ही ग्रसित हो जाता है। कुछ मामलों में जन्म के बाद बच्चे इससे ग्रसित होते हैं। इसके कारकों में जीन में परिवर्तन, जन्म के समय पर्याप्त मात्रा में मस्तिष्क को आक्सीजन न मिलना, मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला बुखार, मस्तिष्क का असामान्य विकास, सिर में चोट लगना और रक्तस्र्राव आदि शामिल हैं। यदि इस बीमारी में कुछ राहत की बात की जाए तो चार से पांच साल की उम्र में सटीक लक्षणों के आधार पर ही चिकित्सक विभिन्न जांचों द्वारा किसी निर्णय पर पहुंचते हैं। लक्षणों के आधार पर सेरेब्रल पाल्सी चार तरह की होती है, इसमें स्पास्टिक, मिश्रित, डिस्काइनेटिक और एटैक्सिक हैं।

लक्षण:

-बोलने में परेशानी होना

-मांसपेशियों में जकडन या अधिक लचीलापन होना

-झटके आने की समस्या

- दौरे पडना

-लार बहाना

-धीमा शारीरिक विकास

-उठने या चलने में कठिनाई

-शरीर के एक हिस्से का ठीक से काम न करना

-दृष्टि बाधित होना

- सुनने में अक्षमता

-सीखने में कठिनाई

-समझ की कमी

-भोजन निगलने में परेशानी

-बौद्धिक क्षमता प्रभावित होना

उपचार:

इस बीमारी से ग्रसित प्रत्येक बच्चे में लक्षण अलग होते हैं। इसलिए उपचार में भी अलग-अलग विशेषज्ञों की मदद ली जाती है। इसके उपचार में न्यूरो सर्जन, न्यूरो फिजीशियन के साथ विहैवियर और फीजियोथेरेपिस्ट अहम भूमिका निभाते हैं। इस बीमारी में चिकित्सक रक्त की जांच, क्रेनियल अल्ट्रासाउंड, एमआरआई, सीटी स्कैन कराकर निदान की कोशिश करते हैं। इससे ग्रसित कुछ बच्चों की मांसपेशियां या तो बहुत लचीली होती हैं या फिर उनमें इतनी जकडन होती है कि रोगी पैर व कमर चलाने में पूरी तरह असमर्थ होता है। ऐसे में सर्जन डोरसाल रिझोटामी नामक सर्जरी का विकल्प अपनाते हैं, जिससे पैर व कमर की सक्रियता बढ सके। यानी दवाइयां, सर्जरी, विहैवियर व फीजियोथेरेपी से इस बीमारी में राहत की उम्मीद की जा सकती है।