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कोरोनरी आर्टरी डिजीज में सिकुड़ जाती है खून की नसें, लिपिड प्रोफाइल से समझें हार्ट अटैक का खतरा है या नहीं?

कोरोनरी आर्टरी डिजीज (coronary artery disease) दिल से जुड़ी एक बीमारी है जो तेजी से बढ़ रही है। गलत खानपान और एक्सरसाइज की कमी इस बीमारी का बड़ा कारण है। इसमें धमनियां सिकुड़ जाती हैं और लंबे समय तक यह स्थिति रहने से एथेरोस्क्लेरोसिस नामक बीमारी भी हो सकती है। आइए डॉक्टर से जानें कि लिपिड प्रोफाइल की मदद से इस खतरे को कैसे समझा जा सकता है।

By Nikhil Pawar Edited By: Nikhil Pawar Updated: Tue, 17 Sep 2024 07:30 PM (IST)
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समय रहते जरूरी है कोरोनरी आर्टरी डिजीज की पहचान, हार्ट अटैक का रहता है जोखिम (Image Source: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। कोरोनरी आर्टरी डिजीज (Coronary Artery Disease) यानी धमनियों से जुड़ी एक ऐसी बीमारी जिसमें खून की नसें सिकुड़ जाती हैं और ब्लड फ्लो भी धीमा हो जाता है। खराब खानपान और फिजिकल एक्टिविटी की कमी इस बीमारी की असली जड़ है। बता दें, समय रहते इसकी पहचान न होने पर एथेरोस्क्लेरोसिस (Atherosclerosis) का खतरा भी बढ़ जाता है। धमनियों में कोलेस्ट्रॉल और कैल्शियम जमा होने से एक तरह की चिपचिपी परत बन जाती है, जिसे प्लाक कहते हैं। यह प्लाक धमनियों को बंद कर सकता है, जैसे कि एक पाइप में गंदगी जम जाने पर होता है। ब्लड फ्लो कम होने के कारण हर पल हार्ट अटैक का खतरा रहता है। ऐसे में, लिपिड प्रोफाइल की मदद से ब्लड में कोलेस्ट्रॉल और अन्य फैट्स के स्तर को मापा जा सकता है, इस जांच की मदद से डॉक्टर पता लगा पाते हैं कि दिल की बीमारी या हार्ट अटैक का होने का कितना ज्यादा है और आपको क्या जरूरी सावधानियां बरतनी चाहिए। आइए डॉक्टर की मदद से जानते हैं कि लिपिड प्रोफाइल की मदद से इस बीमारी को कैसे समझा जा सकता है।

2023 में जर्नल ऑफ अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी में प्रकाशित ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज रिपोर्ट के अनुसार कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) भारत में बड़ी खामोशी से एक महामारी की तरह फैलती जा रही है, जो देश में होने वाली कुल मौतों में 28.1 प्रतिशत मौतों का कारण होती है। भारत में यह स्थिति और भी ज्यादा गंभीर इसलिए भी है क्योंकि यहां के लोगों को हार्ट अटैक पश्चिमी देशों के लोगों के मुकाबले एक दशक पहले पड़ जाता है। इन चिंताजनक आंकड़ों के कारण सीएडी को समझना और इसके लक्षणों को काबू में करना बहुत जरूरी है। कार्डियोवेस्कुलर हेल्थ के बारे में जरूरी जानकारी जुटाने के लिए लिपिड प्रोफाइल टेस्ट की भी अहम भूमिका होती है।

लिपिड प्रोफाइल क्या है?

लिपिड प्रोफाइल को लिपिड पैनल भी कहते हैं। इसमें खून में मौजूद विभिन्न प्रकार के कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड का टेस्ट होता है।

इस परीक्षण में शामिल हैं-

  • टोटल कोलेस्ट्रॉल
  • लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) कोलेस्ट्रॉल
  • हाई-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल) कोलेस्ट्रॉल

ट्राइग्लिसराइड

इनमें से हर प्वाइंट की कार्डियोवेस्कुलर हेल्थ में एक खास भूमिका है और ये सब मिलकर सीएडी का जोखिम तय करते हैं।

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लिपिड प्रोफाइल रिपोर्ट को समझें

टोटल कोलेस्ट्रॉल

टोटल कोलेस्ट्रॉल से पता चलता है कि खून में कुल कितना कोलेस्ट्रॉल मौजूद है। यूं तो शरीर को सही तरीके से काम करने के लिए कुछ कोलेस्ट्रॉल आवश्यक होता है, लेकिन अगर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा ज्यादा बढ़ जाती है, तो यह रक्तवाहिनियों के अंदर जमा होने लगता है। कोलेस्ट्रॉल का उचित स्तर 200 mg/dL से कम होता है।

एलडीएल कोलेस्ट्रॉल

इसे ‘बैड’ कोलेस्ट्रॉल भी कहते हैं। एलडीएल रक्त वाहिनियों की दीवारों से चिपक जाता है और प्लाक के रूप में जम जाता है, जिससे रक्त वाहिनियां संकरी और कठोर हो जाती हैं। इसकी वजह से एथेरोस्क्लेरोसिस हो जाता है, जो सीएडी का मुख्य कारण है। शरीर में एलडीएल का स्तर 100 mg/dL से कम रहना चाहिए; जितना कम एलडीएल होगा, हृदय रोग का खतरा भी उतना ही कम होगा।

एचडीएल कोलेस्ट्रॉल

एचडीएल कोलेस्ट्रॉल को ‘गुड’ कोलेस्ट्रॉल कहते हैं क्योंकि यह हृदय रोग होने से रोकता है। यह खून में से अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल को लिवर में पहुंचाकर उसे शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है। एचडीएल का स्तर जितना ज्यादा होगा, हृदय रोग का खतरा उतना ही कम होगा। एचडीएल का संतुलित स्तर 60 mg/dL या उससे अधिक है।

ट्राईग्लिसराईड

ट्राईग्लिसराईड एक तरह के फैट होते हैं, जिनसे रक्तवाहिनियों के संकरे होने का जोखिम बढ़ सकता है। ट्राईग्लिसराईड ज्यादा हो, और साथ ही एलडीएल ज्यादा एवं एचडीएल कम हो, तो सीएडी का जोखिम बहुत बढ़ जाता है। ट्राईग्लिसराईड का सामान्य स्तर 150 mg/dL से कम होता है।

लिपिड प्रोफाइल के नतीजे

व्यक्तिगत लिपिड के स्तर में ये उतना ज्यादा मायने नहीं रखते, पर संपूर्ण स्वास्थ्य में इनका बहुत महत्व है। लिपिड प्रोफाइल के साथ उम्र, लिंग, परिवार में इतिहास, धूम्रपान की आदत, रक्तचाप, और डायबिटीज जैसे तत्वों को शामिल करने पर सीएडी के जोखिम का निर्धारण हो सकता है।

कुल कोलेस्ट्रॉल में एचडीएल कोलेस्ट्रॉल का अनुपात बहुत महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। यह अनुपात 5:1 से ज्यादा नहीं होना चाहिए, यह अनुपात जितना कम होगा, सीएडी का जोखिम भी उतना ही कम होगा। टोटल कोलेस्ट्रॉल और एचडीएल कोलेस्ट्रॉल का अनुपात देखकर सीएडी के जोखिम का आकलन किया जाता है। 5:1 या उससे कम का अनुपात अच्छा होता है, जो कम जोखिम प्रदर्शित करता है।

लिपिड प्रोफाइल के आधार पर उपाय

अगर लिपिड प्रोफाइल कोरोनरी आर्टरी डिजीज के बढ़ते जोखिम की ओर इशारा करता है, तो कुछ टिप्स आपके लिए काफी मददगार हो सकते हैं।

लाइफस्टाइल में सुधार

हृदय के लिए स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम, वजन नियंत्रण, और धूम्रपान का त्याग लिपिड प्रोफाइल में सुधार लाते हैं, जिससे सीएडी का जोखिम कम हो जाता है।

दवाइयां

कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण में रखने के लिए डॉक्टर स्टेटिन जैसी विशेष दवाइयां दे सकते हैं।

नियमित स्वास्थ्य जांच

लिपिड प्रोफाइल की नियमित जांच इलाज के प्रोग्रेस पर नजर रखने में मददगार है।

लिपिड प्रोफाइल की जानकारी कोरोनरी आर्टरी डिजीज के जोखिम को समझने के लिए जरूरी है। भारत में बढ़ती सीएडी और कम उम्र में ही सीएडी होने की प्रवृत्ति के साथ लिपिड प्रोफाईल की नियमित जांच और भी ज्यादा जरूरी हो गई है, ताकि कार्डियोवेस्कुलर जोखिम को नियंत्रित करने में मदद मिल सके। इसलिए आज ही अपने लिपिड प्रोफाईल की जांच कराएं और भविष्य में हार्ट डिजीज से अपना बचाव कर एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।

(डॉ. मोनिक मेहता - एचओडी और सलाहकार - कार्डियोलॉजी, मणिपाल अस्पताल, गुरुग्राम से बातचीत पर आधारित)

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