Air Pollution & Kids: प्रदूषण का स्तर पहुंचा गंभीर स्तर पर, इस दूषित हवा से कैसे करें बच्चों का बचाव?
Air Pollution Kids प्रदूषण के बढ़ने से इसका असर लोगों की सेहत पर पड़ रहा है खासतौर पर बच्चों की सेहत पर। कुछ समय पहले हुए सर्वे में देखा गया कि शहरों में बढ़ते प्रदूषण की वजह से बच्चों को सांस संबंधी दिक्कतें आ रही हैं।
By Ruhee ParvezEdited By: Updated: Fri, 05 Nov 2021 10:46 PM (IST)
नई दिल्ली, रूही परवेज़। Air Pollution & Kids: साल के इस समय हर साल दिल्ली और आसपास के इलाकों में हवा में प्रदूषण का स्तर ख़तरनाक तरीके से बढ़ता है। इस बढ़ते वायु प्रदूषण से लोग बीमार पड़ने लगते हैं। गले का इंफेक्शन, सर्दी-ज़ुकाम ऐसे में सबसे आम संक्रमण बन जाता है। खासतौर पर दिवाली के बाद की बात करें तो दिल्ली एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध था, लेकिन इसके बावजूद खूब आतिशबाजी हुई। इसका परिणाम ये हुआ कि आज पूरे दिल्ली एनसीआर में हवा की गुणवत्ता गंभीर स्थिति में पहुंच गया है।
प्रदूषण के बढ़ने से इसका असर लोगों की सेहत पर पड़ रहा है, खासतौर पर बच्चों की सेहत पर। कुछ समय पहले हुए सर्वे में देखा गया कि शहरों में बढ़ते प्रदूषण की वजह से बच्चों को सांस संबंधी दिक्कतें आ रही हैं। बच्चों का शरीर काफी कमज़ोर होता है इसलिए उनकी ख़ास ख़्याल रखना पड़ता है।सांस संबंधी बीमारियों से परेशान बच्चे
गुरुग्राम के पारस हॉस्पिटल में सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट और पारस चेस्ट इंस्टीट्यूट के एचओडी डॉ. अरुणेश कुमार का कहना है, "सर्दियां शुरू होने के साथ ही दिल्ली की हवा की क्वॉलिटी हर साल की तरह एक बार फिर बिगड़ना शुरू हो गई है। हाल ही में हुए एक सर्वे में पाया गया है कि 75% बच्चे सांस फूलने से पीड़ित हैं। पहले भी हमने शिशुओं और बच्चों को वयस्कों की तुलना में बुरी हवा की क्वॉलिटी से पीड़ित देखा है। पिछले पांच सालों में नेबुलाइज़र, मीटर्ड डोज़ इनहेलेशन और ड्राई पाउडर इनहेलेशन जैसे इनहेलेशन थेरेपी के उपयोग में लगातार वृद्धि हुई है। बार-बार होने वाली खांसी और सांस संबंधी लक्षणों के कारण ज़्यादा से ज़्यादा बच्चों को इनहेलेशन थेरेपी दी जा रही है। कैंसर और हार्ट संबंधी समस्याओं सहित युवाओं पर प्रदूषण का बहुत ज्यादा और कभी-कभी लॉन्ग टर्म प्रभाव हो सकता है। गंभीर अस्थमा से पीड़ित लोग तीन-स्तरीय सर्जिकल या एन-95 मास्क का विकल्प चुन सकते हैं। लेकिन इसे नाक और मुंह के चारों ओर कसकर पहनना होगा। अगर इसे ढीला पहना जाए तो इसका कोई फायदा नहीं होगा।"
बच्चों में गंभीर बीमारियों का ख़तरा
उजाला सिग्नस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के डायरेक्टर और फाउंडर डॉ. शुचिन बजाज ने कहा, "हवा की क्वॉलिटी बहुत ख़राब हो चुकी है। यह हमारे नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। सर्दियों की शुरुआत होने से यह स्थिति और भी भयानक हो जाती है। इस समय के आसपास होने वाले प्रदूषण को समाप्त होने में लगभग 4 महीने लगते हैं और इसका मतलब यह हुआ कि लोग लंबे समय तक इस हानिकारक हवा में सांस लेने को मजबूर होते हैं। हवा की ख़राब क्वालिटी का असर हर व्यक्ति पर पड़ता है, लेकिन इससे सबसे ज़्यादा बच्चे प्रभावित होते हैं। पर्यावरण एजेंटों और प्रदूषण को कम करने या डिटॉक्सीफाई करने की हर बच्चे की क्षमता अलग होती है। इसके अलावा बच्चों में एयरवे एपिथेलियम (वायुमार्ग उपकला) वयस्कों की तुलना में ज्यादा पारगम्य होता है, इससे उन्हें बीमारियां होने का ख़तरा ज्यादा हो जाता है। दिल्ली और गुरुग्राम जैसे सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में पले-बढ़े बच्चों के लिए इस ख़तरनाक हवा का प्रभाव उनके अविकसित फेफड़ों और रेस्पिरेटरी सिस्टम (श्वसन तंत्र) पर विनाशकारी हो सकता है। ऐसे में कोई हैरानी की बात नहीं होगी कि हमारा पल्मोनरी डिपार्टमेंट मरीज़ों से भर जाए।"
प्रदूषण से बच्चों कैसे बचाएं?1. घर से बाहर निकलते समय बच्चों को मास्क पहनाएंकोरोना महामारी की वजह से हम सभी मास्क के बिना घर से नहीं निकलते हैं, लेकिन वायु प्रदूषण के ख़तरनाक स्तर पर पहुंचने के बाद बच्चों को N95 मास्क ज़रूर पहनाएं। इसके बिना उन्हें घर से बाहर न जाने दें।2. बाहर कम से कम निकलेंइस दौरान छोटे बच्चों और बुज़ुर्गों को घर से बाहर कम से कम निकलना चाहिए। नवजात बच्चों को बाहर ले जाने से बचें और बड़े बच्चों को बिना मास्क के बाहर न जाने दें।
3. घर के दरवाज़े और खिड़कियां बंद रखेंखिड़कियों और दरवाज़ों से ज़हरीले प्रदूषक घर में प्रवेश कर जाते हैं, इसलिए इन्हें बंद रखें। इसके अलावा धूल में या घर की ज़्यादा साफ-सफाई का काम करने से भी बचें।4. ह्यूमिडिफायर लगाएंसांस से जुड़ी बीमारियों से परेशान लोगों को डॉक्टर घर में एयर प्यूरीफायर लगाने की सलाह देते हैं। प्यूरीफायर में कई तरह के फ़िल्टर होते हैं, जो अशुद्ध हवा को घर से बाहर निकालने में मदद करते हैं। इसके अलावा यह जीवाणुओं को भी घर से बाहर निकालकर अंदर की हवा को शुद्ध बनाता है।
5. तेज़ सुगंध वाली चीज़ों से बच्चों को रखें दूरपरफ्यूम या पेंट जैसी चीज़ें हवा में हानिकारक कण छोड़ते हैं, जिसने नवजात बच्चों को दूर रखना बेहतर है। क्योंकि ये सांस के ज़रिए फेफड़ों के लिए टॉक्सिक साबित हो सकते हैं और आगे चलकर सांस से संबंधित बीमारियों का कारण बन सकते हैं