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यूटरस कैंसर और पेल्विक में होने वाले भयंकर दर्द को दूर करने का सेफ ऑप्शन है Hysterectomy

हिस्टेरेक्टॉमी (Hysterectomy) एक ऐसी सर्जरी है जिसमें यूटरस को शरीर से निकाल दिया जाता है। प्रजनन प्रणाली में होने वाली कुछ खास तरह की बीमारियों के इलाज के लिए यह सर्जरी की जाती है। इस सर्जरी के बाद महिला का नेचुरली तरीके से मां बन पाना नामुमकिन है। इस सर्जरी के बाद महिला को अपना खास ख्याल रखने की जरूरत होती है।

By Priyanka Singh Edited By: Priyanka Singh Updated: Wed, 31 Jul 2024 09:27 AM (IST)
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हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी क्या है और इसके फायदे व नुकसान (Pic credit- freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। हिस्टेरेक्टॉमी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें महिलाओं का यूटरस सर्जरी की मदद से निकाल दिया जाता है। ये ऑपरेशन कई सारी प्रॉब्लम्स की वजह से किया जा सकता है, जिसका उनके शरीर और मन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ सकता है। इस सर्जरी के बाद महिलाएं नेचुरली प्रेग्नेंट नहीं हो सकती हैं और उनके पीरियड्स भी बंद हो जाते हैं। यूटरस में कैंसर, यूटरस में सिस्ट जैसी समस्याओं के चलते इस सर्जरी की जरूरत पड़ती है। इस सर्जरी के बारें में और विस्तार से जानने के लिए हमने नोएडा में मदरहुड हॉस्पिटल की गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. मंजू गुप्ता से बात की, जिन्होंने कई जरूरी जानकारियां दी। जान लें आप भी इसके बारे में।

हिस्टेरेक्टॉमी कितने प्रकार की होती है?

हिस्टेरेक्टॉमी के कई प्रकार हैं। हर एक में रिप्रोडक्टिव सिस्टम का कौन सा अंग निकाला जा रहा है और साथ ही उसकी समय सीमा अलग-अलग होती है।

1.टोटल हिस्टेरेक्टॉमी

इसमें यूटरस ग्रीवा सहित पूरे यूटरस को निकाल दिया जाता है। यह सबसे कॉमन है।

2. सबटोटल या पार्शियल (आंशिक) हिस्टेरेक्टॉमी

इसमें यूटरस के ऊपरी हिस्से को निकाला जाता है, लेकिन यूटरस ग्रीवा को अपने स्थान पर ही रहने दिया जाता है।

3. रेडिकल हिस्टेरेक्टॉमी

यूटरस, यूटरस ग्रीवा, योनि का हिस्सा और उसके आस-पास के टिशूज को निकाला जाता है। यह सर्जरी कैंसर जैसी गंभीर स्थिति में की जाती है।

4. हिस्टेरेक्टॉमी के साथ सैलपिंगो ओओफेरेक्टॉमी

यूटरस के साथ-साथ एक या दोनों अंडाशय और फेलोपियन ट्यूब को निकाल दिया जाता है।

हिस्टेरेक्टॉमी करवाने की सलाह कब दी जाती है?

कई सारी बीमारियों में हिस्टेरेक्टॉमी करवाने की सलाह दी जाती है, जिनमें शामिल हैं:

यूटेराइन फाइब्रॉयड: यूटरस में कैंसरस सेल्स के बढ़ने की वजह से ज्यादा ब्लीडिंग, दर्द और प्रेशर की समस्या हो सकती है। तब डॉक्टर इस सर्जरी की सलाह देते हैें।

एंडोमेट्रियोसिस: यह एक ऐसी समस्या है जिसमें यूटरस के समान ही टिशूज उसके बाहर विकसित होने लगते हैं, जिसकी वजह से दर्द और अनियमित रूप से ब्लीडिंग होती रहती है।

यूटेराइन प्रोलैप्स: पेल्विक की सतह की मांसपेशियां कमजोर होने से यूटरस, योनि मार्ग की ओर खिसक जाता है, इस कंडीशन में भी यह सर्जरी जरूरी हो जाती है। 

पेल्विक में होने वाला क्रॉनिक दर्द: पेल्विक वाले हिस्से में तेज दर्द होता है, जिस पर दवा या कोई अन्य उपचार का भी जब असर नहीं होता, तो यह सर्जरी करवानी पड़ती है।

कैंसर: यूटरस, यूटरस ग्रीवा या ओवरी का कैंसर होने पर भी यह सर्जरी करवाना ही ऑप्शन बचता है।

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सर्जरी के क्या तरीके होते हैं?

सर्जरी की कई अलग-अलग विधियों के द्वारा हिस्टेरेक्टॉमी की प्रक्रिया की जा सकती है। हर एक तरीके का चुनाव, मरीज की बीमारी पर निर्भर करता है।

1. पेट की हिस्टेरेक्टॉमी

यूटरस को हटाने के लिए पेट के निचले हिस्से में एक चीरा लगाया जाता है और इसके माध्यम से यूटरस निकाल लिया जाता है।   

2. योनि की हिस्टेरेक्टॉमी

वजाइना में चीरा लगाकर यूटरस को हटाया जाता है। इसमें बाहरी कोई चीरा नहीं लगता। यूट्रस हटाने के बाद वजाइना के अंदर ही ऐसे टांके लगाए जाते हैं, जो थोड़ी दिनों में घुल जाते हैं। इसमें रिकवरी जल्दी होती है।

3. लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी

आज के समस में सबसे ज्यादा इसी सर्जरी का इस्तेमाल किया जा रहा है। पेट में एक छोटा-सा चीरा लगाया जाता है और लेप्रोस्कोप की मदद से यूटरस को निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में भी रिकवरी जल्दी होती है और ऑपरेशन के बाद दर्द भी कम होता है।

4. रोबोटिक-लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी

ये लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी की तरह ही है, लेकिन रोबोट की मदद से की जाती है और इसमें काफी सटीकता से काम पूरा होता है।

हिस्टेरेक्टॉमी के बाद किस तरह के बदलाव होते हैं?

यूटरस के निकल जाने के बाद महिलाओं में कई तरह के शारीरिक तथा भावनात्मक बदलाव होते हैं। 

1. मासिकचक्र में होने वाले बदलाव

हिस्टेरेक्टॉमी के बाद महिलाओं के पीरियड्स बंद हो जाते हैं। ऐसे में उन महिलाओं को काफी राहत मिलती है, जो पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा ब्लीडिंग और दर्द से गुजर रही होती हैं।

2. हॉर्मोन में होने वाले बदलाव

यूटरस निकलने के बाद शरीर मेनोपॉज की अवस्था में चला जाता है, चाहे मरीज की उम्र कितनी ही कम क्यों न हो। जिसके चलते ज्यादा गर्मी, रात को ज्यादा पसीना, वजाइनल ड्राईनेस और मूड स्विंग जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं। 

3. शारीरिक बदलाव

कुछ महिलाओं को यौन क्रिया में बदलाव महसूस हो सकता है, जैसे लिबिडो का कम होना या योनि में सूखापन। हालांकि, कुछ महिलाएं दर्द या रक्तस्राव के ना होने पर सेक्स को एन्जॉय भी करती हैं। 

4. भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक प्रभाव

हिस्टेरेक्टॉमी के बाद भावनात्मक प्रभाव अलग-अलग तरह के होते हैं। कुछ महिलाओं को राहत महसूस होती है खासकर जब क्रॉनिक दर्द या ब्लीडिंग में आराम मिल जाता है। वहीं कई महिलाएं मां न बन पाने के बारे में सोच-सोचकर कर डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं। 

5. रिकवरी तथा जीवनशैली में बदलाव

हिस्टेरेक्टॉमी के प्रकार पर रिकवरी का समय निर्भर करता है। पेट की हिस्टेरेक्टॉमी में स्वस्थ होने में लंबा वक्त लगता है(6-8 हफ्ते), वहीं वजाइनल हिस्टेरेक्टॉमी और लेप्रोस्कोपिक प्रक्रियाओं में रिकवरी में कम समय लगता है (2-4 हफ्ते)।

हिस्टेरेक्टॉमी एक बड़ी सर्जिकल प्रक्रिया होती है, जिसका महिलाओं के शरीर व मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके प्रभावों, संकेतों, सर्जिकल प्रक्रियाओं और ऑपरेशन के बाद होने वाले बदलावों के बारे में जानकारी होने से सही निर्णय लेने में मदद मिलती है। बतौर, गायनेकोलॉजिस्ट ऑपरेशन से पहले काउंसलिंग और उसके बाद सहयोग करने जैसी एक संपूर्ण देखभाल, मरीजों के बेहतर परिणामों को सुनिश्चित करता है।

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