बच्चों में गंभीर रूप ले सकता है Asthma, एक्सपर्ट के बताए इन तरीकों से करें इसे मैनेज
अस्थमा एक गंभीर बीमारी है जो किसी को भी अपना शिकार बना सकती है। खासकर बच्चों में यह समस्या कई बार गंभीर रूप ले सकती है। ऐसे में बढ़ते वायु प्रदूषण में इसके लक्षणों के बिगड़ने का खतरा काफी बढ़ जाता है। अगर आपके बच्चे को भी अस्थमा की बीमारी है तो एक्सपर्ट के बताएं कुछ टिप्स की मदद से आप इसे ट्रिगर होने से बचा सकते हैं।
By Harshita SaxenaEdited By: Harshita SaxenaUpdated: Sat, 16 Dec 2023 05:57 PM (IST)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। इन दिनों पर्यावरण में मौजूद धुंध या स्मॉग के कई कारण हो सकते हैं। इनमें पराली जलना, वाहनों की आवा-जाही और औद्योगिक उत्सर्जन आदि शामिल हैं। ऐसे में इस स्मॉग से प्रभावित होने वाले लोगों के लिए यह काफी हानिकारक हो सकता है। इनमें छोटे बच्चे और अस्थमा, सीओपीडी या फेफड़ों की अन्य पुरानी बीमारियों जैसी सांस संबंधी समस्याओं से पीड़ित लोग शामिल हैं। बच्चों के फेफड़े विकासशील होते हैं और इसलिए हवा में मौजूद प्रदूषणकारी तत्वों के हानिकारक प्रभाव के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं।
यातायात से संबंधित वायु प्रदूषण (टीआरएपी) का भारत में अस्थमा के 13% मामलों में योगदान होता है और यह निश्चित रूप से प्रमुख चिंताओं में एक है। ऐसी आबादी में जहां बायोमास ईंधन का उपयोग होता है। घर के अंदर वायु प्रदूषण भी एक प्रमुख जोखिम कारक बन जाता है। स्मॉग में प्रदूषण के कारणों के संपर्क में आने से बीमारी बढ़ सकती है, फेफड़ों की कार्यक्षमता कम हो सकती है और अस्थमा बढ़ने पर बच्चों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है। ऐसे में फेलो इन पेड पल्मोनोलॉजी (यूके), एमडी (पेड), डीसीएच (बीओएम) डॉ. इंदु खोसला बता रही हैं बच्चों में अस्थमा से निपटने के कुछ तरीकों के बारे में-
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अस्थमा से पीड़ित बच्चों को प्रदूषण कैसे प्रभावित करता है?
बच्चों में अस्थमा की शुरुआत का एक प्रमुख कारण वायु प्रदूषण है। आमतौर पर अस्थमा की शुरुआत का संबंध वायु प्रदूषण से है। इनमें वायरल संक्रमण, पराग, बारीक कण पदार्थ, धुआं, धूल, कालिख, रसायन, वाहनों से होने वाला उत्सर्जन शामिल है। इनसे होने वाली शुरुआत में एयरवेज में जलन, सूजन या तकलीफ हो सकती है, जिससे अस्थमा पीड़ित बच्चों के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है।
प्रदूषित हवा में अक्सर पराग और फंगस जैसे एलर्जी कारक होते हैं, जो अस्थमा से पीड़ित बच्चों में एलर्जी से जुड़ी प्रतिक्रिया को तेज करते हैं। इसके अलावा, स्मॉग में जमीन के स्तर पर ओजोन, जो आमतौर पर प्रदूषित शहरी क्षेत्रों में पाया जाता है, सांस लेने में परेशानी पैदा करता है, जो अस्थमा के लक्षणों को बढ़ा सकता है। इन लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- सांस लेने में तकलीफ, जिसमें सांस तेज चलती है और हवा पूरी नहीं जाती है
- लगातार खांसी या ऐसी खांसी जिसका इलाज करना मुश्किल हो
- खांसी जो अक्सर रात में बढ़ जाती है
- घरघराहट, सांस छोड़ने के दौरान तेज सीटी जैसी आवाज
- सीने में जकड़न, खास कर बड़े बच्चों में जो छाती पर दबाव जैसा महसूस करते हैं
- अस्थमा का दौरा पड़ सकता है, जिसके लिए तुरंत इलाज की जरूरत होती है
देश में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के बीच, माता-पिता को इन कारणों और शुरुआत को लेकर सतर्क रहना चाहिए और विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होता है कि उनके बच्चे किसी प्रकोप के डर के बिना हर सीजन का आनंद ले सकें। इस जागरूकता के अलावा, इस अवधि में कई आवश्यक रणनीतियों की भूमिका होती है, जैसे:
शीघ्र जांच और निदान
अस्थमा का पता लगाने के लिए, माता-पिता को अपने बच्चे पर नजर रखना चाहिए और लक्षणों, गंभीरता, आवृत्ति और महत्वपूर्ण कारकों पर विचार करना चाहिए। जिन लोगों में अस्थमा विकसित होता है, उनका पारिवारिक इतिहास एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। वैसे तो अस्थमा आजीवन रहता है, लेकिन जल्दी पता चल जाए तो सही इलाज से इसे प्रभावी ढंग से मैनेज किया जा सकता है। अगर बच्चों में आपको सांस फूलना, बोलने में परेशानी, नीले होंठ जैसे लक्षण दिखे, तो तुरंत डॉक्टर से सपंर्क करें।अस्थमा का निदान
इस बीमारी का पता लगाने के लिए छह वर्ष से अधिक के बच्चों पीक एक्सपायरेट्री फ्लो (पीईएफ) या स्पाईरोमेट्री जैसे परीक्षण किए जाते हैं। वहं, नई तकनीक जैसे इंपल्स ऑसिलोमेट्री का उपयोग तीन साल से ऊपर के बच्चों के लिए किया जा सकता है जबकि फेनो (FeNO) परीक्षण का उपयोग सूजन (आमतौर पर स्कूल जाने वाले बच्चों में) का पता लगाने के लिए किया जाता है और संभावित ट्रिगर की पहचान करने के लिए त्वचा की चुभन या ब्लड टेस्ट के जरिए एलर्जी टेस्ट का उपयोग किया जा सकता है।इन बातों का भी रखें ध्यान
- बच्चों का रूटीन सेट करें
- अस्थमा-अनुकूल वातावरण बनाना
- स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा दें
- साफ-सफाई का ध्यान रखें
- एनुअल वैक्सीनेशन कराएं