डोले-शोले के लिए आप भी जमकर खाते हैं Protein Supplements, तो एक्सपर्ट से जानें इसके खतरनाक नुकसान
इन दिनों हर कोई फिट और हेल्दी रहने के लिए कई तरीके अपना रहा है। प्रोटीन सप्लीमेंट का इस्तेमाल इन्हीं में से एक है जो आजकल लोगों खासकर युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हो चुका है। संतुलित भोजन की भरपाई करने और स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में प्रोटीन सप्लीमेंट गुणकारी तो है लेकिन यदि इसमें मिलावट हो तो यह जोखिम भी बन सकता है।
नई दिल्ली। आज पेशेवर एथलीट से लेकर मजबूत शरीर बनाने की चाह रहने वालों तक के बीच प्रोटीन पाउडर लेने का चलन देखने को मिल रहा है। व्यस्त जीवनशैली के चलते भी लोग प्रोटीन सप्लीमेंट के जरिए अपनी सेहत को सहारा दे रहे हैं। लेकिन, जो प्रोटीन हम ले रहे हैं अगर वह गुणवत्ता मानकों पर खरा न हो, तो सेहत के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। बाजार में आज कई तरह के प्रोटीन पाउडर बेचे और विज्ञापित किए जा रहे हैं।
चिंताजनक है कि इनकी गुणवत्ता के बारे में नहीं बताया जाता और न ही ग्राहक इसमें मौजूद हानिकारक तत्वों के प्रति जागरूक होते हैं। मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, भारत में 70 प्रतिशत प्रोटीन सप्लीमेंट के बारे में जानकारी नहीं दी जाती। यहां तक कि प्राकृतिक और आयुर्वेदिक औषधि के आवरण में बिकने वाले कुछ सप्लीमेंट में तो विषाक्त तत्व भी होने का दावा किया गया है। ऐसे में प्रोटीन सप्लीमेंट के बारे में विस्तार से जानने के लिए ब्रह्मानंद मिश्र ने गुरुग्राम के मेदांता में गैस्ट्रो विभाग के वाइस चेयरमैन डॉ. एएस पुरी से बातचीत की।
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क्यों जरूरी है प्रोटीन
प्रोटीन पाउडर कई तरह के होते हैं। बेसिक प्रोटीन सप्लीमेंट जो मरीजों को दिया जाता है, उसे व्हे प्रोटीन कहते हैं, जो गेहूं से तैयार होता है। यह उच्च गुणवत्ता का प्रोटीन सप्लीमेंट होता है। अच्छी फार्मा कंपनियां इसे तैयार करती हैं और सेवन के लिए यह बेहतर होता है। आमतौर पर जो मरीज सही ढंग से भोजन नहीं ले पाते हैं या जिन्हें ट्यूब से खाना दिया जाता है, उनके लिए प्रोटीन सप्लीमेंट का सहारा लिया जाता है। दूसरा, आज बहुत सारे लोग खासकर युवा बाडी बिल्डिंग के लिए प्रोटीन सप्लीमेंट लेते हैं।
सप्लीमेंट हो सकता है हानिकारक
बाडी बिल्डिंग के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले प्रोटीन सप्लीमेंट में कई बार समस्या आती है, क्योंकि इसमें स्टेरायड और अन्य चीजें मिला दी जाती हैं। खासकर जिम में प्रयोग होने वाले प्रोटीन सप्लीमेंट को लेकर लोगों को पर्याप्त जानकारी नहीं होती। एक-दो महीने में शरीर आकर्षक बनाने की जिद कई बार स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित होती है। हालांकि, इस तरह के प्रोटीन सप्लीमेंट के प्रयोग से 90 प्रतिशत लोगों को कोई गंभीर प्रभाव नहीं होता, लेकिन 10 प्रतिशत में लिवर डैमेज होने की प्रबल आशंका रहती है।ऐसा सप्लीमेंट में मिलावट के कारण होता है, जैसे पेनिसिलीन की एलर्जी है और अगर 1000 मरीजों को यह दवा दी जाएगी, तो केवल एक ही मरीज को दिक्कत होगी। इसी तरह स्टेरायड मिश्रित होने से हर किसी को परेशानी नहीं होती, लेकिन कुछ सौ लोगों के लिवर के डैमेज होने की भरपूर आशंका रहती है। लिवर डैमेज होने पर पीलिया आदि बीमारियों का प्रभाव लंबे समय तक बना रहता है। हालांकि, उसका भी उपचार हो जाता है, लेकिन मरीज को परेशानी तो होती ही है यानी बिना किसी बीमारी के एक स्वस्थ व्यक्ति भी मरीज बन जाता है।
बेहतर खानपान और व्यायाम जरूरी
जल्दी शरीर बनाने की चाहत में कई बार धोखा हो जाता है। यह बिल्कुल वैसा ही है, जिस तरह छह महीने में पैसे डबल करने के चक्कर में लोग धोखा खा जाते हैं। वैसे ही, मांसपेशियों को तीन महीने में दोगुना करना संभव नहीं है। इसके लिए निरंतर बेहतर खानपान और पर्याप्त व्यायाम करना होता है। जिम करने वाले प्रोटीन सप्लीमेंट की उचित मात्रा का ध्यान नहीं रखते और ना ही किसी चिकित्सक से परामर्श लेते हैं। इससे भी समस्या बढ़ती है।प्रोटीन का कितना सेवन जरूरी
आमतौर पर डाक्टर किसी मरीज को प्रतिदिन 60 से 80 ग्राम प्रोटीन सप्लीमेंट के सेवन का परामर्श देते हैं। प्रयास होता है कि मरीज की 1800 कैलोरी की आवश्यकता पूरी हो। व्हे प्रोटीन को दूध में घोलकर पीने से उसकी कैलोरी वैल्यू और बढ़ जाती है। जो बेहोशी की स्थिति में हैं या जिन मरीजों को ट्यूब से भोजन दिया जाता है। उनके लिए प्रोटीन की मात्रा अलग से निर्धारित होती है।असुरक्षित सेवन से लिवर को खतरा
असुरक्षित प्रोटीन के प्रयोग से सबसे समस्या बड़ी समस्या लिवर डैमेज की होती है। अगर अन्य किसी तरह की मिलावट होगी, तो शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकती है। कई आयुर्वेदिक दवाओं या भस्म आदि के नाम पर भी विषाक्त तत्वों का सेवन नुकसानदेह हो सकता है। इसमें लेड, आर्सेनिक जैसे हानिकारक तत्व हो सकते हैं।हर आयु वर्ग के लिए अलग-अलग मात्रा
- वजन के हिसाब से प्रति किलोग्राम पर एक ग्राम प्रोटीन का सेवन करना चाहिए यानी अगर कोई 70 किलो का व्यक्ति है तो 60-70 ग्राम तक प्रोटीन ले सकता है।
- बच्चों को, खासकर जिनके शरीर का विकास हो रहा है, उन्हें अधिक प्रोटीन की जरूरत होती है। मांसपेशियों, हड्डियों के विकास के साथ प्रोटीन की आवश्यकता बढ़ती है।
- गर्भवती महिलाओं को उनकी जरूरत के हिसाब से डाक्टर प्रोटीन सप्लीमेंट की मात्रा निर्धारित करते हैं।
- बीमार होने पर भी प्रोटीन की आवश्यकता बढ़ जाती है।
प्रोटीन के प्राकृतिक स्रोत
अगर संतुलित और पारंपरिक भारतीय भोजन का सेवन करें तो प्रोटीन की जरूरत पूरी हो जाती है। कई एथलीट हैं जो पूरी तरह शाकाहारी हैं। वीरेंद्र सहवाग ने एक बार कहा था कि वह दूध-दही का सेवन व शाकाहारी भोजन करते हैं और अपने करियर में पूरी तरह फिट रहे। अगर अंडे का सेवन कर रहे हैं, तो और भी बेहतर है। प्रोटीन के प्राकृतिक स्रोत का कोई मुकाबला ही नहीं है। दूध, दही, पनीर जैसे प्राकृतिक स्रोत गुणकारी हैं। लेकिन सप्लीमेंट फैक्ट्री में बनता है, उसमें मिलावट की आशंका हर समय बनी रहती है।प्रोटीन के प्राकृतिक स्रोत
- क्लास-1 प्रोटीन- दूध, दही, पनीर, अंडा, मीट (मछली, चिकन आदि)
- क्लास-2 प्रोटीन- काले चने की दाल, सोयाबीन, राजमा और अन्य दलहन।