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Hearing Loss: पुरुषों और महिलाओं में अलग-अलग होते हैं हियरिंग लॉस के कारण, बढ़ती उम्र के साथ जरूरी है सावधानी

बढ़ती उम्र के साथ कई लोगों को हियरिंग लॉस से जुड़ी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। हाल ही में हुई एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि महिला और पुरुषों में सुनने की समस्या अलग-अलग कारणों के चलते पैदा होती है जो आगे जाकर बहरेपन की वजह बन सकती है। बता दें इन्हें नजरअंदाज करने की भूल आपको भारी पड़ सकती है आइए जान लीजिए इसके बारे में।

By Jagran News Edited By: Nikhil Pawar Published: Sun, 10 Mar 2024 02:00 PM (IST)Updated: Sun, 10 Mar 2024 02:03 PM (IST)
बहरेपन का कारण बन सकती है हियरिंग लॉस से जुड़े लक्षणों की अनदेखी

एजेंसी, वाशिंगटन डीसी। Hearing Loss: उम्र के साथ कई लोगों में कम सुनाई देने की समस्या दिखने को मिलती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्रवण हानि (Hearing Loss) से जुड़े कुछ कारण लिंग के आधार पर भी अलग-अलग हो सकते हैं? जी हां, दरअसल दक्षिण कोरिया में चुंगबुक नेशनल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल और उनके सहकर्मी होंग वू नाम द्वारा ओपन-एक्सेस जर्नल पीएलओएस वन में प्रकाशित एक अध्ययन में इससे जुड़ी कुछ जानकारियां सामने आई हैं। आइए जान लीजिए कि कैसे लिंग के साथ-साथ वजन और हार्मोनल चेंज आपकी सुनने की क्षमता के लिए जोखिम साबित हो सकता है।

दुनियाभर में 5 में से एक व्यक्ति हियरिंग लॉस से पीड़ित

उम्र से संबंधित श्रवण हानि (एआरएचएल) उच्च आवृत्ति ध्वनियों को सुनने में मुश्किल धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। ऐसे में वर्बल कम्युनिकेशन एक बड़ी चुनौती बन जाता है, जिससे डिप्रेशन जैसी दिक्कतें भी झेलनी पड़ सकती हैं। बता दें, कि दुनियाभर में हर पांच में से एक शख्स हियरिंग लॉस से पीड़ित है। वैश्विक स्तर पर जनसंख्या की उम्र में इजाफा होने के साथ यह संख्या और अधिक बढ़ने की उम्मीद है। चूंकि एआरएचएल यानी हियरिंग लॉस अपरिवर्तनीय होता है, ऐसे में जरूरी है कि इसकी समय रहते पहचान कर ली जाए, और इसके ट्रीटमेंट को लेकर आगे बढ़ा जाए।

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लैंगिक स्तर पर एआरएचएल से जुड़े कारकों को सही तरीके से देखने के लिए इनके सापेक्ष प्रभावों का अध्ययन किया गया। शोधकर्ताओं ने 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के 2,349 प्रतिभागियों के हेल्थ चेकअप रिकॉर्ड का विश्लेषण किया। हर प्रतिभागी की मेडिकल हिस्ट्री, ब्लड टेस्ट, बॉडी टेस्ट और एक बेसिक हियरिंग लॉस चेकअप के डाटा का विश्लेषण किया गया। इसके बाद पुरुषों और महिलाओं के लिए एआरएचएल खतरे सबसे अधिक मजबूती से जुड़े कारकों की पहचान करने के लिए सांख्यिकीय विश्लेषण किया गया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि कुछ कारक उम्र व लिंग की परवाह किए बिना एआरएचएल से जुड़े थे, वहीं अन्य कारक पुरुषों और महिलाओं में एआरएचएल के खतरे से अलग-अलग तरीके से जुड़े थे। उदाहरण के लिए, कम वजन होना पुरुषों में एआरएचएल के साथ एक महत्वपूर्ण संबंध दिखाता है, वहीं महिलाओं में कम वजन और मोटापा दोनों का महत्वपूर्ण संबंध देखने को मिला।

पुरुषों और महिलाओं पर अलग-अलग प्रभाव

बता दें, धूम्रपान सिर्फ पुरुषों में बढ़े हुए एआरएचएल के खतरे से जुड़ा है, जिनका नमूना आबादी में धूम्रपान करने वाली महिलाओं की तुलना में कहीं ज्यादा है। जिन महिलाओं को कम उम्र में पीरियड्स शुरू हो गए थे, उनमें बाद में एआरएचएल विकसित होने की संभावना कम थी, जो हार्मोन एस्ट्रोजन संभावित सुरक्षात्मक प्रभाव की और इशारा करता है। हियरिंग लॉस से पीड़ित लगभग 80 फीसदी लोग निम्न व मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं। श्रवण हानि की व्यापकता उम्र के साथ बढ़ती है। 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में 25 प्रतिशत से अधिक श्रवण हानि से प्रभावित होते हैं।

प्रिवेंटिव ट्रीटमेंट हो सकता है मददगार

यह अध्ययन इन कारकों और हियरिंग लॉस के बीच कारण के संबंधों को स्पष्ट करने की अनुमति नहीं देता है। इन निष्कर्षों की पुष्टि और बेहतर व्याख्या करने के लिए आगे प्रयोगात्मक अध्ययन जरूरी हैं। हालांकि, लेखकों का प्रस्ताव है कि रोगियों के धूम्रपान के व्यवहार, वजन और पीरियड्स के बारे में मूल्यांकन करने और परामर्श देने से एआरएचएल के लिए स्क्रीनिंग और निवारक इलाज में सुधार करने में मदद मिल सकती है।

सांस की बीमारी के उपचार में कारगर है पेट का बैक्टीरिया

शोध में सामने आया है कि पेट में पाया जाने वाला एक बैक्टीरिया सांस और फेफड़ों से संबंधित बीमारी से लड़ने में मददगार है। इससे आइसीयू में भर्ती रहने के दौरान एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) की चपेट में आने वाले मरीजों का भी उपचार किया जा सकता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के ताजा अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आए हैं, और इसे प्रसिद्ध जर्नल क्लीनिकल इम्यूनालाजी में प्रकाशित किया गया है।

एम्स के बायोटेक्नोलाजी विभाग के डा. रूपेश श्रीवास्तव ने बताया कि फिलहाल यह अध्ययन प्रयोगशाला में चूहों पर किया गया है। शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रोबायोटिक के इस्तेमाल से सांस की बीमारी से पीड़ित आइसीयू में भर्ती इंसान भी जल्द ठीक होते हैं। पेट यानी गट में पाया जाने वाला बैक्टीरिया लैक्टोबैसिलस रमनीसस फेफड़ों की बीमारी को जल्द ठीक करने में मददगार है। सांस की गंभीर स्थिति एआरडीएस में फेफड़ों में पानी भरने से तबीयत और खराब हो जाती है। आइसीयू में भर्ती होने वली 10 प्रतिशत मरीज एआरडीएस की चपेट में आ जाते हैं और इसमें 40 प्रतिशत की मौत हो जाती है।

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Picture Courtesy: Freepik


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