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Vitamin D से जुड़े हैं ये 5 मिथ, तथ्यों के साथ आइए करें उनका खंडन

हमारे शरीर के सही विकास और वृद्धि के लिए सभी तरह के पोषक तत्व जरूरी होते हैं। विटामिन डी (Vitamin D) इन्हीं में से एक है जो खासकर बच्चों के विकास और उसके पूरे स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। हालांकि आज भी लोगों में इसे लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं जिन्हें दूर करना बहुत जरूरी है।

By Jagran News Edited By: Harshita Saxena Updated: Fri, 10 May 2024 05:12 PM (IST)
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Vitamin D से जुड़े कुछ मिथक और उनके तथ्य
ब्रांड डेस्क, नई दिल्ली। विटामिन डी (Vitamin D) बच्चों के विकास और उसके पूरे स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है, लेकिन इसको लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं, जिन्हें दूर करना बहुत जरूरी है। बतौर बाल पोषण विशेषज्ञ मेरा (सोनाली सरकार) उद्देश्य है कि बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए उनके माता-पिता को सटीक जानकारी दी जाए। इस लेख के जरिए हम उन मिथकों को दूर करेंगे, जो विटामिन डी से संबंधित है। साथ ही, विटामिन डी के प्राकृतिक स्रोत और बच्चों के लिए संतुलित आहार के महत्व के बारे में जानेगे। आइए तथ्यों के साथ विटामिन डी से संबंधित आम मिथकों का खंडन करें

मिथक 1: विटामिन डी केवल हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए है।

तथ्य: यह सच है कि विटामिन डी हड्डियों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन यह एक व्यापक भूमिका निभाता है। यह कैल्शियम अवशोषण के लिए आवश्यक है और इम्यून फंक्शन को सपोर्ट करता है। साथ ही, यह मांसपेशियों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। अध्ययनों से पता चलता है कि यह बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज सहित कई पुरानी बीमारियों के जोखिम को कम करने में भी योगदान देता है।

स्रोत: रतीश नायर, अरुण मसीह; विटामिन डी: सनशाइन विटामिन, जर्नल ऑफ फार्माकोलॉजी एंड फार्माकोथेरेप्यूटिक्स

https://journals.sagepub.com/doi/abs/10.4103/0976-500X.95506

मिथक 2: विटामिन डी के लिए केवल धूप में रहना ही काफी है।

तथ्य: सूरज की रोशनी विटामिन डी का मुख्य स्रोत है, लेकिन त्वचा की रंगत, भौगोलिक स्थिति और सनस्क्रीन के इस्तेमाल जैसे कई कारक इसके सिंथेसिस को प्रभावित करते हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स अक्सर सप्लीमेंट या फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों का सुझाव देती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां सूरज की रोशनी कम या सीमित है।

मिथक 3: सभी बच्चों के विटामिन डी की मात्रा समान होना जरूरी।

तथ्य: उम्र के हिसाब से विटामिन डी की आवश्यकता अलग-अलग होती है। शिशुओं को लगभग 400 IU और बड़े बच्चों को 600 IU प्रतिदिन इसकी आवश्यकता होती है। ये जरूरतें व्यक्तिगत स्वास्थ्य स्थितियों और आहार प्रतिबंधों के आधार पर बदल सकती हैं।

स्रोत: जी येओन ली, त्सज-यिन सो, जेनिफर थैकरे; बाल रोगियों में विटामिन डी की कमी के उपचार पर एक समीक्षा, जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक फार्माकोलॉजी एंड थेरेप्यूटिक्स (2013) 18 (4): 277–291

https://doi.org/10.5863/1551-6776-18.4.277

मिथक 4: ओवर-द-काउंटर विटामिन डी सप्लीमेंट हमेशा सुरक्षित होते हैं।

तथ्य: अनियमित सप्लीमेंट के उपयोग से विटामिन डी टॉक्सिटी हो सकती है, जिससे हाइपरकैल्सीमिया जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जो हृदय और गुर्दे को प्रभावित कर सकती हैं। सप्लीमेंट या डोजेस लेने से पहले हेल्थकेयर प्रोफेशनल से परामर्श करना महत्वपूर्ण है।

स्रोत: लेविटा, जे.; विलर, जी.; वाह्युनी, आई.; बावोनो, एल.सी.; रामादैनी, टी.; रोहानी, आर.; डायंटिनी, ए. बाल चिकित्सा में विटामिन डी का क्लिनिकल टॉक्सिकोलॉजी साइंस: एक समीक्षा और केस रिपोर्ट। टॉक्सिक्स 2023, 11, 642

https://doi.org/10.3390/toxics11070642

मिथक 5: एक वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को विटामिन डी सप्लीमेंट की आवश्यकता नहीं होती।

तथ्य: सप्लीमेंट की आवश्यकता अक्सर शैशवावस्था (Infancy) से आगे तक जारी रहती है। बड़े बच्चों को अगर विटामिन डी से संबंधित आहार कम मिल पा रहा है या उसे अपर्याप्त धूप मिल रहा है तो सप्लीमेंट की आवश्यकता हो सकती है, खासकर कम धूप वाले क्षेत्रों में।

स्रोत: होलिक एम.एफ., बिंकले एनसी, बिस्चॉफ-फेरारी एचए, गॉर्डन सीएम, हैनली डीए, हेनी आरपी, मुराद एमएच, वीवर सीएम, एंडोक्राइन सोसाइटी। विटामिन डी की कमी का मूल्यांकन, उपचार और रोकथाम: एंडोक्राइन सोसाइटी की क्लिनिकल प्रैक्टिस गाइडलाइन। जे क्लिन एंडोक्राइनॉल मेटाब। 2011 जुलाई, 96(7):1911-30. Doi: 10.1210/jc.2011-0385.

विटामिन डी के प्राकृतिक स्रोत और स्ट्रेंथ डेवलपमेंट में इसकी भूमिका

विटामिन डी के प्राकृतिक स्रोतों में साल्मन और मैकेरल जैसी वसायुक्त मछलियां, अंडे की जर्दी, दूध और अनाज जैसे फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ शामिल हैं। ये स्रोत न केवल विटामिन डी से भरपूर हैं, बल्कि ओमेगा-3 फैटी एसिड जैसे आवश्यक पोषक तत्व भी प्रदान करते हैं, जो बच्चों में मस्तिष्क के विकास और मांसपेशियों की ताकत के लिए महत्वपूर्ण हैं।

संतुलित विटामिन डी के सेवन का महत्व

शरीर में संतुलित विटामिन डी के स्तर को बनाए रखना महत्वपूर्ण है। अपर्याप्त सेवन से रिकेट्स जैसी स्थिति पैदा हो सकती है, जिसमें हड्डियां कमजोर और नरम होती हैं, जबकि इसके ज्यादा सेवन से टॉक्सिसिटी उत्पन्न हो सकती है, जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंग प्रभावित होते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ बच्चों के शरीर में विटामिन डी के स्तर की निगरानी और समायोजन के लिए नियमित बाल चिकित्सा जांच की सलाह देता है।

सबकी अलग हैं विटामिन डी की जरूरतें

बच्चों की विटामिन डी की जरूरतें काफी अलग-अलग हो सकती हैं। उम्र, त्वचा का रंग, भौगोलिक स्थिति, खान-पान की आदतें और समग्र स्वास्थ्य जैसे कारक विटामिन डी की व्यक्तिगत जरूरतों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए, गहरे रंग की त्वचा वाले बच्चों को हल्की त्वचा वाले बच्चों के बराबर विटामिन डी प्राप्त करने के लिए ज्यादा समय तक धूप में रहने की जरूरत हो सकती है।

विटामिन डी के प्रभाव और इसकी जागरूकता को बढ़ावा देना माता-पिता या बच्चों की देखभाल करने वालों को विटामिन डी के महत्व के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है। इसके लिए जागरूकता अभियान और स्वास्थ्य कार्यक्रम विटामिन डी के लाभों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके सेवन के लिए संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दिया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

विटामिन डी की भूमिका को समझना और उससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। संतुलित दृष्टिकोण जिसमें आहार, नियंत्रित धूप में रहना और सप्लीमेंटेशन के लिए प्रोफेशनल की सलाह शामिल है। इससे बच्चों की विटामिन डी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। माता-पिता के तौर पर, हमारा पहला कदम जानकारी प्राप्त करना और सही निर्णय लेना है। https://www.tayyarijeetki.in पर Nutricheck टूल पर अपने बच्चे के विटामिन डी सेवन के स्तर की जांच करें। अच्छी तरह से जानकारी रखने वाले माता-पिता ही सबसे अच्छे निर्णय लेते हैं।

लेखक - सोनाली सरकार, चाइल्ड न्यूट्रिशन एंड केयर में सर्टिफाइड

डिस्क्लेमर: “इस कॉन्टेंट में दी गई जानकारी केवल सूचना प्रदान करने के उद्देश्य के वास्ते है और इसे प्रोफेशनल मेडिकल एडवाइस, डायग्नोसिस या ट्रीटमेंट का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए। अपने आहार, व्यायाम या दवा की दिनचर्या में कोई भी बदलाव करने से पहले अपने चिकित्सक या किसी अन्य योग्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाता की सलाह लें।"

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