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हमारा खानपान ही करता है औषधि का काम, मौसम के हिसाब से ऐसे करें डाइट में बदलाव

संतुलित और साथ ही पोषक से भरपूर आहार हमारे स्वास्थ्य के लिए किसी वरदान से कम नहीं होता है। पारंपरिक भोजन में गुणकारी और सूक्ष्म पोषक तत्वों की प्रचुरता हमारे खानपान को औषधीय गुण प्रदान करती है जिससे बेहतर स्वास्थ्य के साथ-साथ निरोगी और आनंदमय जीवन की नींव तैयार होती है। आइए जानें कैसे आहार ही औषधि का काम करता है।

By Jagran News Edited By: Ruhee Parvez Updated: Tue, 20 Feb 2024 01:06 PM (IST)
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हमारा आहार किसी औषधि से कम नहीं है
नई दिल्ली। हमारे आसपास जो कुछ उपलब्ध है, वह औषधि जैसा काम करता है। वातावरण हो या आहार या फिर हमारी जीवनशैली। इनका विशेष प्रभाव हमारे शरीर पर होता है। अगर आहार की बात करें तो यह औषधि तब होता है जब इसका युक्तिपूर्ण तरीके से उपयोग करें। कोई भूख में है उसे आहार देंगे तो वह उसके लिए दवा है। कोई बीमार है और उसे विशेष प्रकार से बना आहार देंगे तो वह भी उसके लिए औषधि है। इसी तरह यदि आप मौसम व आहार के संतुलन को ध्यान में रखकर आहार ग्रहण करते हैं तो वह आरोग्य देता है। इस विषय में डॉ. रमाकांत यादव (प्रोफेसर, अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान) से सीमा झा ने बातचीत की।

डॉ. रमाकांत ने बताया कि उपयुक्त आहार का ज्ञान रहे तभी स्वास्थ्य ठीक रह सकता है। शरीर को ऊर्जा मिल सकती है। इन दिनों खानपान के तौर तरीके युक्ताहार के विपरीत हैं इसलिए मेटाबोलिक विकारों का सामना बड़ी आबादी कर रही है। जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का नियंत्रण काफी हद तक युक्त आहार से किया जा सकता है।

ऋतुकाल अनुसार हो भोजन

भोजन का चयन ऋतुकाल के अनुसार करें तो हम स्वस्थ रह सकते हैं। अभी बसंत ऋतु है। इसे कफ प्रधान मौसम कहा गया है। इस मौसम में भारीपन रहता है। आलस्य रहता है। भूख भी कम लगती है इसलिए इस अवधि में कफनाशक भोजन लेना चाहिए। जैसे, मूंग दाल, हरी सब्जियां, मक्का, बाजरा आदि। गरिष्ठ भोजन से दूर रहें। राजमा, उड़द, मास की दाल आदि इस मौसम में कम सेवन करें।

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छह रस का समावेश

यह सुनिश्चित करें कि आप जो भोजन करें उसमें छह रस का समावेश हो। इसे आयुर्वेद में षडरस कहा गया है। ये छः रस ये हैं - मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त तथा कसाय। प्रत्येक रस के अपने अपने गुण और प्रभाव होते हैं, जिन्हें ग्रहण किए जाने पर शरीर में पाचन क्रिया में उचित संतुलन रहता है। पर इन षडरस युक्त भोजन को उचित अनुपात में लें तभी यह श्रेष्ठ प्रभावकारी होता है। मात्रा से कम अथवा अधिक लेने पर शरीर रोग ग्रस्त होने की आशंका रहती है। जैसे, कभी खूब तीखा खा लेना तो कभी खूब मीठा या खट्टा खा लेना नुकसानदेह है।

कैसा हो आहार

भोजन को पथ्य (खाने योग्य, स्वास्थ्य) और अपथ्य (खाने योग्य नहीं, हानिकारक) के रूप में चार भाग में बांटा गया है।

1. मात्रा (भोजन की)

2. समय (कब उसे पकाया गया और कब उसे खाया गया)

3. प्रक्रिया (उसे बनाने की)

4. जगह या स्थान जहां उसके कच्चे पदार्थ उगाए गए हैं (भूमि, मौसम और आसपास का वातावरण इत्यादि)

5. उसकी रचना या बनावट (रासायनिक, जैविक, गुण इत्यादि)

6. उसके विकार (सूक्ष्म और सकल विकार और अप्राकृतिक प्रभाव और अशुद्ध दोष, यदि कोई है तो)

यदि अपच महसूस हो

यदि आपको खाना खाने के बाद भारीपन लगता हो। हाथ पैर में जकड़न हो या मुंह में मीठा खटटापन सा लगता तो इसका अर्थ है कि खाना ठीक से पचा नहीं। यदि रात को भारी खाना खाया और सुबह सोकर उठने के बाद भारीपन लग रहा है तो थोड़ी देर और सो लें। नहीं सो पाएं तो गर्म पानी का सेवन करें। थोड़ी देर तक कुछ न खाएं।

इन बातों का रखें ध्यान

  • मौसमी फलों व सब्जियों का सेवन करें, न कि जो सब्जी या फल पसंद हो उन्हें खाएं।
  • पुराने अनाज का सेवन कफनाशक होता है। इस मौसम में पुराने अनाज का सेवन करें।
  • भोजन करने से पूर्व आधा इंच अदरक के टुकड़े को नमक के साथ सेवन करें तो पाचन क्रिया सही रहती है।
  • गर्म पानी का सेवन करें। गुनगुना न ले सकें तो उसमें सौंफ या धनिया डालकर सेवन कर सकते हैं।
  • जितनी भूख हो उससे कम खाने का नियम बनाएं। चार हिस्से में भोजन को बांटें, दो हिस्सा ठोस, एक द्रव और एक हिस्सा खाली रखें।
  • भूख लगने पर ही खाएं।
  • पूरी तरह से पका हुआ खाना खाएं।
  • गर्म खाने का सेवन यानी ताजा आहार लें। बार बार गर्म करके भोजन न करें। बाहर से आहार लाकर उन्हें बार बार गर्म कर न खाएं।
  • खाना खाते समय शांत रहकर खाने पर एकाग्र होकर भोजन करें। हड़बड़ी में भोजन नहीं करें।
  • विरुद्ध आहार को समझें। अठारह प्रकार के विरूद्ध आहार बताए गए हैं। जैसे, दूध के साथ नमक वाले भोजन का सेवन या शहद को गर्म करके सेवन करना शरीर पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है।