दबे पांव आकर Glaucoma चुरा सकता है आपकी आंखों की रोशनी, एक्सपर्ट से जानें कैसे करें इसे कंट्रोल
ग्लूकोमा आंखों में होने वाली एक खतरनाक बीमारी है जो आंखों में मौजूद नसों को कमजोर करता है। इस बारे में जागरुकता फैलाने के लिए जनवरी के महीने को Glaucoma Awareness Month की तरह मनाया जाता है। इस बीमारी का शुरुआती स्टेज पर पता लगाना कितना आवश्यक है इस बारे में हमनें एक एक्सपर्ट से बात की है। जानें इस बारे में उनका क्या कहना है।
By Swati SharmaEdited By: Swati SharmaUpdated: Thu, 18 Jan 2024 06:45 PM (IST)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Glaucoma Awareness Month 2024: ग्लूकोमा, जिसे काला मोतिया कहा जाता है, एक ऐसी बीमारी है, जो आंखों की नसों को डैमेज करता है। ऑप्टिकल नर्व्स हमारी आंखों से दिमाग तक सिग्नल लाने और ले जाने का काम करती है। इनके डैमेज होने की वजह से आंखों का प्रेशर बढ़ने लगता है और आंखों की रोशनी तक जा सकती है। यह बीमारी आंखों को ठीक न होने वाला डैमेज पहुंचा सकती है।
हालांकि, यह अधिक उम्र में होने वाली बीमारी है, लेकिन यह किसी भी उम्र में आपको प्रभावित कर सकती है। इसे शुरुआती स्टेज पर रोकने से ही इससे होने वाले नुकसान से बचा सकता है। इसलिए जरूरी है कि इसका जल्द से जल्द पता लगाकर, इसका इलाज किया जा सके। इस बारे में जागरुकता फैलाने के लिए जनवरी को Gloaucoma Awareness Month की तरह मनाया जाता है। इस बीमारी का जल्द से जल्द पता लगाकर, इसका इलाज कराना कितना जरूरी है, यह जानने के लिए हमने मैक्स आई केयर, गुरुग्राम की निर्देशक और प्रमुख डॉ पारुल शर्मा से बातचीत की। आइए जानते हैं, इस बारे में उनका क्या कहना है।
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क्यों जरूरी है इसका शुरुआती चरण में पता लगाना?
डॉ पारुल नें हमें बताया कि ग्लूकोमा एक साइलेंट डिजीज कहलाती है क्योंकि शुरुआत में इस बीमारी के कोई लक्षण नहीं होते हैं। यह बीमारी जब अपने अंतिम चरण तक पहुंचने वाली होती है, तब इसके लक्षण नजर आने शुरू होते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ग्लूकोमा के शुरुआती चरण में सबसे पहले आंखों के साइड विजन से रोशनी जानी शुरु होती है, जिस वजह से देखने में ज्यादा तकलीफ नहीं होती। जब यह डैमेज आंखों के बीज के विजन तक पहुंचता है, तब जाकर मरीज को आभास होता है कि उनकी आंखों के साथ कुछ तकलीफ है। लेकिन इस स्टेज तक पहुंचते-पहुंचते आंखों में कई ऐसे डैमेज हो चुके होते हैं, जिन्हें ठीक करना संभव नहीं होता। इसका कारण यह होता है कि ग्लूकोमा आंखों के पीछे की नर्व्स को हानि पहुंचाता है, जो साइड के विजन को प्रभावित करते हैं, लेकिन यही जब आंखों के बीच के विजन को प्रभावित करना शुरू करते हैं, तब तक ऑप्टिकल नर्व्स को काफी हानि पहुंच चुकी होती है, जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है। इसलिए शुरुआती स्टेज पर इसका पता लगाकर ही, इस बीमारी को कंट्रोल कर सकते हैं। इसका इलाज नहीं किया जा सकता है, इसलिए इसका जल्द से जल्द पता लगाकर, कंट्रोल करना ही इसके डैमेज को कम करने का उपाय है।
काला मोतिया किस प्रकार का है और किस स्टेज पर है, यह पता लगाकर इसका दवाई, लेजर या सर्जरी की मदद से कंट्रोल करने की कोशिश कर सकते हैं। इसलिए 40 और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों को साल में एक बार अपना आई प्रेशर जरूर चेक करवाना चाहिए। यह एक रूटीन चेकअप होता है, जो ग्लूकोमा का पता लगाने में मदद कर सकता है। इस बीमारी में जेनेटिक्स की भी बड़ी भूमिका होती है, इसलिए जिन लोगों के माता-पिता को काला मोतिया की समस्या है, उन्हें 30 की उम्र से ही हर साल अपनी आंखों का रूटीन चेकअप करना चाहिए ताकि अगर ग्लूकोमा शुरू हो रहा है, तो उसका शुरूआती चरण में पता लगाकर, इसे बढ़ने से रोका जा सके।
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