Hereditary Cancer: पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाले कैंसर से होगा बचाव, पहले से जांच करवाकर समय रहते इलाज संभव
अगर किसी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी कैंसर होता आ रहा है तो अब चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसे परिवारों के सदस्य पहले से अपना परीक्षण करवाकर समय रहते इलाज करवा सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे-
By Jagran NewsEdited By: Harshita SaxenaUpdated: Tue, 02 May 2023 03:25 PM (IST)
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल ने हेरेडिटरी (वंशानुगत) कैंसर क्लीनिक की शुरुआत की है, जहां कैंसर का परीक्षण और इलाज हो सकता है। मुंबई के टाटा मेमोरियल सेंटर के बाद यह दूसरा अस्पताल है, जहां कैंसर के जोखिम वाले परिवारों की पहले से जांच कर कैंसर का जल्द पता लगाकर इसे रोका जा सकता है। अस्पताल के आंकोलाजी विभाग (कैंसर विभाग) के निदेशक डॉ. राजेश मिस्त्री के अनुसार भारत में हर साल कैंसर के लगभग 14 लाख नए मामले सामने आते हैं।
इनमें 90 प्रतिशत मामले पान, तंबाकू, गुटखा जैसी बुरी आदतों के कारण होते हैं। लेकिन 10 प्रतिशत मामले वंशानुगत कैंसर वाले होते हैं, जिनमें रोगी के माता-पिता, दादी-दादा इत्यादि को भी कैंसर हो चुका होता है। ये मामले ज्यादातर ब्रेस्ट, ओवेरियन, कोलोन, प्रोस्टेट, फेफड़े, थायरायड, मूत्राशय, यकृत, मेलेनोमा, ग्लियोमा, सार्कोमा और पैंक्रियाटिक कैंसर के होते हैं।
जोखिम कम करने में मिलेगी मदद
अब विशेषज्ञ डॉक्टर 113 जीनों पर आधारित व्यापक अनुवांशिक मूल्यांकन और परीक्षण करके समय रहते किसी व्यक्ति में कैंसर की संभावना का पता लगा सकते हैं। इस जांच से पहले मरीजों को प्री-टेस्ट जेनेटिक काउंसलिंग और टेस्ट के बाद जेनेटिक सलाह दी जाती है, ताकि मरीजों को टेस्ट के नतीजे और इससे जुड़े जोखिमों को समझने में मदद मिल सके। इस प्रकार के वंशानुगत कैंसर सिंड्रोम का पता लगाने के लिए परीक्षण की आयु कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए।कम होगा कैंसर से जुड़ा जोखिम
इस प्रकार किया जानेवाला जेनेटिक परीक्षण कैंसर के इलाज की प्रिसिजन आंकोलाजी पद्धति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें कैंसर के इलाज की प्रभावशीलता में सुधार करके कैंसर के बोझ को समय रहते काफी कम किया जा सकता है। इससे कैंसर से जुड़ा जोखिम भी काफी कम हो जाता है। क्योंकि इस पद्धति से किसी व्यक्ति या उसके परिवार में जीन म्यूटेशन की पहचान की जा सकती है। इससे कैंसर के लक्षण प्रकट होने से पहले ही बीमारी होने की आशंका का अनुमान लगाया जा सकता है।
कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों से होगा बचाव
एक बार बीमारी की संभावना का पता चलने के बाद प्रिसिजन आंकोलाजी में ट्यूमर को मालिक्युलर लेवल पर ही पहचान कर लक्षित थेरेपी या इम्यूनोथेरेपी के जरिए सिर्फ कैंसरग्रस्त जीनों को ही निशाना बनाकर उनका इलाज कर दिया जाता है, जबकि पहले होने वाली कीमोथेरेपी शरीर के सामान्य बॉडी सेल को भी नुकसान पहुंचा देती थी, जिसके कारण शरीर पर कई दुष्प्रभाव भी देखने को मिलते थे। प्रिसिजन आंकोलाजी में इस प्रकार के अतिरिक्त दुष्प्रभावों से भी बचा जा सकता है।Picture Courtesy: Freepik