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फर्टिलिटी के लिए कितना मायने रखती है आपकी उम्र? जानें एक्सपर्ट की राय

बढ़ती उम्र में शादी के जहां अपने कुछ फायदे हैं वहीं कुछ नुकसान। उम्र बढ़ने के साथ फर्टिलिटी कम होती जाती है और ये समस्या सिर्फ महिलाओं में ही नहीं पुरुषों में भी देखने को मिलती है। जिस पर हमने एक्सपर्ट से बात की उन्होंने इसके बारे में विस्तार से बताया कि उम्र बढ़ने के साथ कपल्स को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है बच्चा पैदा करने के लिए।

By Priyanka SinghEdited By: Priyanka SinghUpdated: Thu, 03 Aug 2023 11:09 AM (IST)
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फर्टिलिटी के लिए कितना मायने रखती है आपकी उम्र
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। आज के जमाने में 20 से 40 साल की उम्र वाले लोग अपने कॅरियर पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। उनका टारगेट सेट है करियर बनाना, फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट होना और लाइफ को फुल एन्जॉय करना। शादी और बच्चे उनकी सेकेंड प्रियोरिटी हैं। सोचकर तो शायद आपको सब ओके लगे, लेकिन बढ़ती उम्र में महिलाओं और पुरुषों के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं, जिसका हेल्थ पर कई अलग-अलग तरीकों से असर पड़ता है। जिसमें से एक है बच्चा पैदा करने में आने वाली दिक्कतें। जिससे आजकल ज्यादातर कपल्स जूझ रहे हैं। लोगों का इस बात को जानना जरूरी है कि बढ़ती उम्र प्रजनन क्षमता यानी फर्टिलिटी को भी प्रभावित कर सकती है जिस वजह से आगे चलकर बच्चा पैदा करने की कोशिशों में कई सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

महिला प्रजनन क्षमता पर उम्र का प्रभाव

महिलाओं का रिप्रोडक्टिव सिस्टम कई सारे सेल्स और टिश्यूज़ से मिलकर बना होता है। इसका सबसे जरूरी कॉम्पोनेंट होता है एग (अंडे)। जन्म के समय, महिला के अंडाशय (डिंबग्रंथि) में करीब 10-20 लाख अंडे होते हैं। जो बढ़ती उम्र के साथ कम होते जाते हैं। एक उम्र में आकर ये अंडे ख़त्म हो जाते हैं और उन्हें फिर से नहीं बनाया नहीं जा सकता। 35 या 40 की उम्र के आसपास शरीर में प्रजनन से संबंधित हार्मोन्स, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का निर्माण कम मात्रा में होने लगता है। इसलिए 20 से 35 वर्ष के बीच की उम्र बच्चे पैदा करने के लिए सबसे अनुकूल मानी जाती है। आमतौर पर 32 साल के आसपास महिलाओं की प्रजनन क्षमता में गिरावट की शुरूआत होने लगती है और 37 की उम्र के बाद यह गिरावट और ज्यादा बढ़ जाती है। कई अध्ययनों में यह सामने आया है कि 35 से कम उम्र की उन महिलाओं के लिए जिन्होंने आईवीएफ उपचार कराया है, उनकी प्रेग्नेंसी अच्छी तरह से पूरी होने और एक हेल्दी बच्चे के जन्म की संभावना का दर 31% होती है। वहीं 42 वर्ष की उम्र के बाद यह दर गिरकर 5 प्रतिशत से भी कम रह जाती है।

पुरूष प्रजनन क्षमता पर उम्र का प्रभाव

जबकि महिलाओं को बार-बार उनकी बायोलॉजिकल क्लॉक के बारे में याद दिलाया जाता है, वहीं पुरूषों पर इस प्रकार का कोई प्रेशर नहीं होता। अक्सर, 20 और 30 के बीच की उम्र में पुरूष इस विषय के बारे में नहीं सोचते कि वे कब बच्चे पैदा करेंगे या पिता बनेंगे। इस प्रकार का नजरिया शायद इस गलतफहमी के कारण है कि पिता बनने के लिए उनके पास काफी समय बचा है। लेकिन ये सही नहीं है। महिलाओं की तरह ही पुरूषों में भी बढ़ती उम्र के साथ प्रजनन क्षमता में कमी आती है। जैसे-जैसे पुरूषों की उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे उनके स्पर्म काउंट (शुक्राणु संख्या) और इसकी क्वॉलिटी में गिरावट आती है। लेकिन कुछ पुरूष 60 वर्ष और इससे ज़्यादा की उम्र में भी पिता बन सकते हैं, लेकिन इस बात पर गौर करना जरूरी है कि आनुवांशिक रूप से उनके शुक्राणु शायद उतने स्वस्थ नहीं होते हैं जितने युवावस्था में थे। पुरूष प्रजनन क्षमता पर किए गए अध्ययन यह दर्शाते हैं कि 40 से ज्यादा उम्र के पुरूषों में स्पर्म काउंट कम होता है और उनके स्पर्म कम एक्टिव होते हैं जिसकी वजह से प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करना अधिक चुनौतीपूर्ण और मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, जैसे-जैसे पुरूषों की उम्र बढ़ती जाती है, वैसे- वैसे उनके होने वाले बच्चों में आनुवांशिक विकार होने का खतरा भी बढ़ता जाता है।

प्रजनन क्षमता से जुड़ी दिक्कतों को जानने के लिए नियमित जांच का महत्व

नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी गुरुग्राम की फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट, डॉ. अनीशा ग्रोवर का कहना है कि, ' इन सभी परेशानियों से बचने के लिए अपने रिप्रोडक्टिव हेल्थ को प्राथमिकता देना और शुरुआत में ही प्रजनन क्षमता की जांच बिना देरी के करवाना जरूरी है जिससे संभावित खतरों से समय रहते निपटा जा सके। फर्टिलिटी से जुड़ी जांच से आपके प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में कई महत्‍वपूर्ण जानकारियां मिल सकती हैं। इससे आपको भविष्य में गर्भधारण से जुड़ी किसी भी तरह की संभावित बाधाओं के बारे में पता चलता है और आपके बायोलॉजिकल क्लॉक की एक क्लीयर समझ मिलती है।'

प्रजनन संबंधी जांच में शामिल है प्रजनन प्रणाली, हार्मोन लेवल। किसी भी व्यक्ति की प्रजनन क्षमता का पता लगाने और प्रजनन को प्रभावित कर सकने वाली किसी दूसरी समस्याओं की पहचान करने के लिए खून की जांच, इमेजिंग टेस्ट,

हिस्टेरोसाल्पिन्गोग्राम, ट्रान्सवैजाइनल अल्ट्रासाउंड, सीमेन (वीर्य) एनालिसिस और टेस्टीक्यूलर बायोप्सी जैसे रूटीन टेस्ट कराए जाते हैं। प्रजनन क्षमता की जांच के बारे में प्रो- एक्टिव रहने से कपल्स को फैमिली प्लानिंग के बारे में समझने और आगे जरूरी निर्णय लेने में मदद मिल सकती है।  

Pic credit- freepik