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डायबिटीज की बीमारी बन सकती है किडनी फेलियर की वजह, जानें कैसे

डायबिटीज किडनी की सेहत के लिए एक बड़ा खतरा है। डायबिटीज के चलते किडनी की अपशिष्ट पदार्थों को फ़िल्टर करने की क्षमता कम होने लगती है। जिसके चलते ब्लड में गदंगी जमा होने लगती है इससे कई तरह की हेल्थ प्रॉब्लम्स पैदा हो सकती हैं। करीब 40 प्रतिशत किडनी फेलियर के मामलों की सबसे बड़ी वजह डायबिटीज की बीमारी है।

By Priyanka Singh Edited By: Priyanka Singh Updated: Mon, 26 Feb 2024 08:27 AM (IST)
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डायबिटीज कैसे किडनी को कर सकती है प्रभावित
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। डायबिटीज (मधुमेह) मेटाबॉलिज्म से जुड़ी एक समस्या है, जिसमें मरीज का ब्लड ग्लूकोज लेवल बढ़ जाता है। दुनिया में लगभग 422 मिलियन (42 करोड़) लोग डायबिटीज से प्रभावित हैं। डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जिसका असर शरीर के कई सारे अंगों पर पड़ता है, लेकिन इससे सबसे ज्यादा किडनी प्रभावित होती है, जिसे अकसर नजरअंदाज कर दिया जाता है। डायबिटीज से पीड़ित हर 3 में से 1 वयस्क किडनी से संबंधित समस्याओं से पीड़ित है।

डायबिटीज और किडनी फंक्शन के बीच यह कनेक्शन एक बड़ी चिंता का कारण है। ग्लूकोज लेवल बढ़ने से शरीर के कई अंग खासतौर से कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम और किडनी के खराब होने सबसे ज्यादा खतरा होता है। किडनी के डैमेज होने की स्थिति को डायबिटीक नेफ्रोपैथी कहते हैं। डायबिटीक नेफ्रोपैथी एक तरह का क्रोनिक किडनी डिजीज़ है। हाई ब्लड प्रेशर और किडनी की समस्या से परेशान लोगों को इसका ज्यादा खतरा होता है। 

किडनी शरीर के आंतरिक संतुलन को बनाए रखने और ब्लड से अपशिष्ट व अतिरिक्त तरल पदार्थों को फ़िल्टर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। डायबिटीज में ब्लड शुगर लंबे समय तक हाई रहने से किडनी की नाजुक फ़िल्टर इकाइयों को नुकसान होता है, जिन्हें नेफ्रॉन के रूप में जाना जाता है। 

इन तरीकों से डैमेज होती है किडनी

ग्लोमेरुलर डैमेज

हाई ब्लड शुगर का लेवल ग्लोमेरुली (किडनी के नेफ्रॉन के भीतर छोटी ब्लड वेसेल्स) को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे अपशिष्ट पदार्थों को फ़िल्टर करने की उनकी क्षमता कम हो जाती है। 

पुरानी सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव

ये सूजन संबंधी प्रतिक्रियाओं को ट्रिगर करके और फ्री रेडिकल्स के निर्माण को बढ़ावा देकर किडनी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

एडवांस्ड ग्लाइकेशन एंड प्रोडक्ट (एजीई) का संचय

हाई ब्लड शुगर के स्तर पर प्रोटीन के लंबे समय तक संपर्क में रहने से एजीई का फॉर्मेशन होता है, जो किडनी फंक्शन को ख़राब कर सकता है और सूजन व फाइब्रोसिस का कारण बन सकता है। 

डायबिटीज के साथ अक्सर हाई ब्लड प्रेशर भी रहता है, जिससे दोनों के बीच एक नुकसानदायक तालमेल बनता है, जो किडनी के नुकसान को और बढ़ा देता है। बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर किडनी में पहले से ही डैमेज ब्लड वेसेल्स पर एक्स्ट्रा प्रेशर डालता है, जिससे डायबिटीज संबंधी नेफ्रोपैथी की गति और तेज हो जाती है। 

जैसे-जैसे डायबिटीज किडनी को नुकसान पहुंचाता रहता है, अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को फ़िल्टर करने की उनकी क्षमता कम हो जाती है। किडनी की कार्यक्षमता में इस कमी से रक्त में विषाक्त पदार्थों का संचय हो सकता है, जिससे कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं। डायबेटिक नेफ्रोपैथी वाले व्यक्तियों को दिल के दौरे और स्ट्रोक सहित हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। 

शीघ्र इलाज और मैनेजमेंट

डॉ. संजीव गुलाटी, प्रेसिडेंट, इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी और प्रिंसिपल डायरेक्‍टर, नेफ्रोलॉजी, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, दिल्ली का कहना है कि, 'डायबेटिक किडनी की बीमारी एक साइलेंट किलर है। डायबेटिक किडनी की बीमारी वाले अधिकांश रोगियों में लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इसलिए, यूरिन एल्ब्यूमिन-टू-क्रिएटिनिन रेशियो (यूएसीआर) और अनुमानित ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट (ईजीएफआर) जैसे टेस्ट के जरिए किडनी की कार्यप्रणाली की नियमित निगरानी से इस रोग शीघ्र पता लगाने और समय पर इसके उपचार में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, दवा, खानपान और जीवनशैली में बदलाव के जरिए डायबिटीज के रोगियों में ब्लड शुगर के स्तर पर नियंत्रण डायबेटिक किडनी की बीमारी को रोकने और मैनेज करने के लिए महत्वपूर्ण है। हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जीवनशैली में बदलाव और दवाएं ब्लड प्रेशर को सही सीमा के भीतर बनाए रखने में मदद कर सकती हैं।'

डायबिटीज को मैनेज करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन लोग अपनी जीवनशैली में बदलाव, नियमित व्यायाम, सही भोजन और ग्लूकोज लेवल की निगरानी के द्वारा बहुत आसानी से अपना ग्लूकोज लेवल नियंत्रित रख सकते हैं। कंटीन्यूअस ग्लूकोज मॉनिटरिंग (सीजीएम) ग्लूकोज की निरंतर निगरानी जैसी तकनीकी के कारण और भी आसान हो गया है। जरूरी डेटा की सुलभता से लोगों को अपना ग्लूकोज कंट्रोल करने और सेहत से जुड़ी दूसरी जटिलताओं का जोखिम कम करने में मदद मिल सकती है।

डॉ. प्रशांत सुब्रमणियन, हेड ऑफ़ मेडिकल अफेयर्स, इमर्जिंग एशिया और इंडिया, डायबिटीज केयर, एबॅट ने कहा कि, “सीजीएम लोगों को बिना परेशानी के ग्लूकोज का रियल-टाइम लेवल देखने में मदद करता है। यह परम्परागत ब्लड ग्‍लूकोज से निगरानी उपकरणों का पूरक है जिनमें उंगलियों में सुई चुभोने की ज़रुरत होती है। यह मूल्यवान, कारवाई योग्य गहन जानकारी प्रदान करता है और डिजिटल इकोसिस्टम द्वारा समर्थित है, जिससे डॉक्टर और देखभाल करने वालों के साथ जुड़ना आसान हो जाता है। यह उपकरण एक अनूठा मीट्रिक भी प्रदान करता है कि लोगों की लक्षित ग्लूकोज रेंज कितनी देर तक स्थिर रही है। यह जानकारी होने से यह डेटा जीवन बदल सकता है और लोगों को स्वास्थ्य संबंधी दा कारगर फैसले करने तथा बेहतर ग्लूकोज कण्ट्रोल की तैयारी में मदद कर सकता है।”

प्रोफेसर रामजी अज्जन, मेटाबॉलिक मेडिसिन के प्रोफेसर/ डायबिटीज और एंडोक्राईनोलॉजी कंसलटेंट, यूनिवर्सिटी ऑफ़ लीड्स और लीड्स टीचिंग हॉस्पिटल्स एनएचएस ट्रस्ट ने कहा कि, “डायबिटीज वाले लोगों को न केवल ग्लूकोज के लेवल में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें हृदयरोग, मोटापा और आंख की समस्या जैसी दूसरी बीमारियों क होने का भी ख़तरा रहता है। डायबिटीज से अक्सर मोटापा बढ़ता है और एक साथ दोनों के होने पर हृदयरोग का ख़तरा पैदा होता है। सीजीएम लोगों को उनका ग्लूकोज लेवल नियंत्रित रखने और इस तरह के खतरे से बचने में मदद कर सकता है।'

डॉ. सुनील कोहली, प्रोफेसर और एचओडी, मेडिसिन विभाग, हमदर्द इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च ने कहा, “राज्‍य में लगभग 17.8% लोग डायबिटीज के साथ जी रहे हैं। उन लोगों के लिए ग्लाईसेमिक कंट्रोल बनाए रखना ज़रूरी है। इसे सीजीएम जैसे टूल्स से ज्यादा आसान बनाया जा सकता है जो उन्हें नियमित रूप से अपना ग्लूकोज लेवल जांचने में मदद करता है। इससे लोगों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि किस प्रकार उनके भोजन और जीवनशैली से उनका ब्लड शुगर प्रभावित होता है। लोग इसके अनुसार अपनी आदतों को बदल सकते हैं और अपने डॉक्टर से सलाह करके उचित ढंग से उपचार भी करा सकेंगे। नतीजतन, वे प्रतिदिन लगभग 17 घंटे के लिए इष्टतम ग्लूकोज रेंज में रह सकते हैं। ये संयोजित तकनीकें अपने सम्बद्ध मोबाइल ऐप के साथ हेल्थकेयर को हमारे क्लीनिकों से आगे ले जाकर लोगों के घरों तक पहुँच सकती हैं।'

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Pic credit- freepik