Diet Plan for Changing Season: कहीं आप भी तो सीजनल अफेक्टिंग डिसऑर्डर के शिकार तो नहीं है? जानिए बीमारी के लक्षण और उपचार
Diet plan for changing season सीजनल अफेक्टिंग डिसऑर्डर मिजाज से संबंधित विकार है जिसका इलाज संभव है। अगर ठीक से डाइट ली जाए और इलाज किया जाए तो इस बीमारी से एक महीने में ही निजात पाई जा सकती है।
By Shahina NoorEdited By: Updated: Tue, 12 Oct 2021 12:52 PM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। मौसम बदलने के साथ ही मौसमी बीमारियां और कई तरह की परेशानिया अपना असर दिखाने लगती हैं। बदलते मौसम का सबसे ज्यादा असर हमारे मिजाज़ पर दिखता है। मिजाज़ में यह बदलाव कुछ और नहीं बल्कि सीजनल अफेक्टिंग डिसऑर्डर है। यह मनोदशा से संबंधित एक विकार है,
जिसे हर साल एक ही समय पर होने वाले अवसाद के रूप में पहचाना जाता है।सीजनल अफेक्टिंग डिसऑर्डर मिजाज से संबंधित विकार है जिसका इलाज संभव है। अगर ठीक से डाइट ली जाए और इलाज किया जाए तो इस बीमारी से एक महीने में ही निजात पाई जा सकती है। अवसाद की तरह ही यह बीमारी परेशान करती है जिसमें कोताही बरतना जान से खिलवाड़ साबित हो सकता है। आइए जानते हैं कि इस बीमारी के लक्षण कौन से है और डाइट से कैसे इसका उपचार किया जा सकता है।
सीजनल अफेक्टिंग डिसऑर्डर के लक्षण:
- किसी को भी थकान, अवसाद, निराशा महसूस हो तो वह सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर से प्रभावित हो सकता है।
- इस तरह की परेशानियों में व्यक्ति असहाय महसूस करने लगता है और किसी चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता है।
- इस तरह के परिवर्तन बच्चों, महिलाओं और बुजर्गों पर ज्यादा प्रभाव डालते हैं और वो मानसिक रूप से अस्थिर हो जाते हैं।
- कुछ दवाइयां, टॉक थेरेपी, एक्सरसाइज और हेल्दी डाइट से सीजनल अफेक्टिंग डिसॉर्डर को ठीक किया जा सकता है।
ओमेगा 3 फैटी एसिड को करें डाइट में शामिल:
सर्दी का मौसम आने से पहले डाइट में ओमेगा 3 फैटी एसिड की मात्रा को बढ़ा लें। ओमेगा 3 फैटी एसिड मूड स्विंग को होने से बचाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि ओमेगा 3 फैटी एसिड का हाई डोज़ अवसाद को कम करने में अहम किरदार निभाता है। ओमेगा 3 फैटी एसिड डाइट लेने के लिए आप मछली, अखरोट, अलसी के बीज, सेलमॉन मछली का सेवन करें। बैरीज को करें डाइट में शामिल: ब्ल्यूबेरी, रस्पबेरी और स्ट्रॉबेरी को मुख्य रूप से बैरीज कहा जाता है। भारत में जामुन इसका सबसे बढ़िया उदाहरण है। अध्ययन में यह प्रमाणित हो चुका है कि बैरीज के सेवन से तनाव के कारण होने वाले अवसाद को कम किया जा सकता है। बैरीज एडरीनल ग्लैंड से कार्टिसोल हार्मोन को रिलीज करने में सहायक है। कार्टिसोल ब्रेन के हिप्पोकैंपस को सक्रिय करता है जो याददाश्त को स्टोर करता है। कार्टिसोल के कारण भावनात्मक रूप से लोग मजबूत होते हैं। फॉलिक एसिड भी सर्दी में है जरूरी:कई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि फॉलिक एसिड ब्रेन में सकारात्मक प्रभाव डालता है जिससे मूड स्विंग नहीं होता। जब बॉडी में सेरोटोनिन हार्मोन बनने लगता है, तब यह मूड को प्रभावित करता है। हरी पत्तीदार सब्जियां, ओट्समील, सूरजमूखी के बीज, संतरे, अनाज में फॉलिक एसिड पाया जाता है।इन बातों का रखें ध्यान:
सर्दी का मौसम आने से पहले डाइट में ओमेगा 3 फैटी एसिड की मात्रा को बढ़ा लें। ओमेगा 3 फैटी एसिड मूड स्विंग को होने से बचाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि ओमेगा 3 फैटी एसिड का हाई डोज़ अवसाद को कम करने में अहम किरदार निभाता है। ओमेगा 3 फैटी एसिड डाइट लेने के लिए आप मछली, अखरोट, अलसी के बीज, सेलमॉन मछली का सेवन करें। बैरीज को करें डाइट में शामिल: ब्ल्यूबेरी, रस्पबेरी और स्ट्रॉबेरी को मुख्य रूप से बैरीज कहा जाता है। भारत में जामुन इसका सबसे बढ़िया उदाहरण है। अध्ययन में यह प्रमाणित हो चुका है कि बैरीज के सेवन से तनाव के कारण होने वाले अवसाद को कम किया जा सकता है। बैरीज एडरीनल ग्लैंड से कार्टिसोल हार्मोन को रिलीज करने में सहायक है। कार्टिसोल ब्रेन के हिप्पोकैंपस को सक्रिय करता है जो याददाश्त को स्टोर करता है। कार्टिसोल के कारण भावनात्मक रूप से लोग मजबूत होते हैं। फॉलिक एसिड भी सर्दी में है जरूरी:कई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि फॉलिक एसिड ब्रेन में सकारात्मक प्रभाव डालता है जिससे मूड स्विंग नहीं होता। जब बॉडी में सेरोटोनिन हार्मोन बनने लगता है, तब यह मूड को प्रभावित करता है। हरी पत्तीदार सब्जियां, ओट्समील, सूरजमूखी के बीज, संतरे, अनाज में फॉलिक एसिड पाया जाता है।इन बातों का रखें ध्यान:
- मौसम के बदलाव से होने वाली इस बीमारी का पता खुद भी लगाया जा सकता है, इसके लिए किसी तरह की जांच की जरूरत नहीं होती।
- यह बीमारी 14 साल से अधिक उम्र के लोगों को होती है, इसका ट्रीटमेंट आप मनोचिकित्सक से कर सकते हैं।
- इसका उपचार लक्षणों की गंभीरता के आधार पर किया जाता है।
- लाइफस्टाइल और खान-पान में बदलाव करके इस बीमारी से बचा जा सकता है।