वायु प्रदूषण कम करने के लिए स्मॉग टावर और क्लाउड सीडिंग स्थायी समाधान नहीं, भारत को करने होंगे और प्रयास
प्रदूषण एक गंभीर समस्या है जिससे निपटने के लिए दिल्ली में कुछ समय पहले क्लाउड सीडिंग और स्मॉग टावर्स की मदद ली गई थी लेकिन क्या ये लॉन्ग टर्म समाधान हैं या इस समस्या से निपटने के लिए कुछ और उपाय सोचने की जरूरत है। इस बारे में डब्ल्यूएचओ के एक सदस्य रिचर्ड पेल्टियर ने इस बारे में कुछ बड़ी बाते बताईं। जानें इस बारे में उनका क्या कहना है।
पीटीआई, नई दिल्ली। Air Pollution: एक वरिष्ठ अमेरिकी वैज्ञानिक का मानना है कि भारत में वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए दीर्घकालिक प्रयास की आवश्यकता है और स्मॉग टावर तथा क्लाउड सीडिंग जैसी महंगी प्रौद्योगिकियां देश में मौजूद प्रदूषण की समस्या का स्थायी समाधान नहीं हैं। क्लाउड सीडिंग तकनीक के तहत कृत्रिम तरीके से बारिश कराई जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वैश्विक वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य तकनीकी सलाहकार समूह के सदस्य रिचर्ड पेल्टियर ने कहा कि पूरे भारत में वायु प्रदूषण वास्तव में काफी खराब है। संभवत: पूरे भारत में पर्याप्त वायु प्रदूषण निगरानी व्यवस्था नहीं है।
कितना समय लगेगा प्रदषण कम करने में?
जब उनसे पूछा गया कि दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कितना समय चाहिए, तो उन्होंने अमेरिका का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने 1960 के आसपास स्वच्छ वायु अधिनियम लागू किया था और हाल ही में देश में वायु गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। इसे आमतौर पर अच्छा माना जाता है। यानी यहां तक पहुंचने में 50-60 साल लग गए। इसमें समय लगता है।
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क्यों स्मॉग टावर नहीं है स्थायी समाधान?
समस्या के समाधान में स्मॉग टावरों की भूमिका के बारे में पेल्टियर ने कहा कि ये विशाल वायु शोधक छोटे पैमाने पर काम करते हैं, लेकिन लागत और रख-रखाव से जुड़ी चुनौतियों के कारण पूरे शहरों के लिए अव्यावहारिक हैं। उन्होंने कहा कि क्या वे हवा से वायु प्रदूषण हटाते हैं? हां, वे ऐसा करते हैं। क्या वे हवा से पर्याप्त मात्रा में वायु प्रदूषण हटाते हैं? बिल्कुल नहीं। यह एक तरह से बड़ी शक्तिशाली नदी को नहाने के तौलिये से सुखाने की कोशिश करने जैसा है। क्लाउड सीडिंग तकनीक से वायु प्रदूषण से निपटने के बारे में वैज्ञानिक ने कहा कि यह ऐसी चीज नहीं है जो टिकाऊ हो और निश्चित रूप से यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है। वैज्ञानिक ने कहा कि क्या आप सचमुच चाहते हैं कि हवाई जहाज दिन के लगभग 24 घंटे, हर कुछ 100 मीटर की दूरी पर आकाश में उड़ते रहें और बारिश कराने के लिए क्लाउड सीडिंग करते रहें? और फिर क्या आप सचमुच चाहते हैं कि हर दिन बारिश हो? मुझे ऐसा नहीं लगता।
वायु प्रदूषण कम कर रहा है लोगों की लाइफस्पैन...
यह पूछे जाने पर कि क्या सेंसर और वायु गुणवत्ता निगरानी संस्थानों की कमी के कारण भारत में वायु प्रदूषण की समस्या की गंभीरता को कम आंका गया है, पेल्टियर ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि हम इतनी सटीकता से जानते हैं कि प्रदूषण कहां ज्यादा है। सबसे प्रदूषित इलाकों में रहती है देश की 56 प्रतिशत आबादी थिंकटैंक ग्रीनपीस इंडिया के अनुसार, देश की 99 प्रतिशत से अधिक आबादी पीएम 2.5 पर डब्ल्यूएचओ के मानकों से अधिक मानक वाली हवा में सांस लेती है। इसमें कहा गया है कि 62 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं और देश की 56 प्रतिशत आबादी सबसे प्रदूषित इलाकों में रहती है। पिछले अगस्त में शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सूक्ष्म कण वायु प्रदूषण (पीएम2.5) भारत में औसत जीवन प्रत्याशा को औसतन 5.3 साल और दिल्ली में 11 साल तक कम कर देता है।यह भी पढ़ें: वायु प्रदूषण बिगाड़ सकता है आपकी रिप्रोडक्टिव हेल्थ, जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट्सPicture Courtesy: Freepik