Chia Seeds: वजन घटाने के लिए कर रहे हैं चिया सीड्स का सेवन, तो जान लें इसके पीछे की सच्चाई
वजन कम करने के लिए लोग सिर्फ एक्सरसाइज ही नहीं बल्कि खानपान में भी कई तरह के बदलाव करते हैं। इन्हीं में से एक हैं चिया सीड्स जिन्हें वेट लॉस के लिए खाने का ट्रेंड आजकल काफी ज्यादा है। ऐसे में क्या आपके मन में भी ये सवाल आता है कि इन्हें खाने से सचमुच वजन कम होता भी है या नहीं? आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Chia Seeds for Weight Loss: चिया सीड्स को लेकर अक्सर लोगों के मन में उम्मीद होती है कि इन्हें खाने से वजन कम हो सकता है। ऐसे में, कई लोग बिना सोचे-समझे धड़ल्ले से इनका सेवन करना शुरू कर देते हैं, जो कि सेहत पर आगे चलकर भारी भी पड़ता है। इस बात में कोई शक नहीं, कि चिया सीड्स कई पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, जिनसे बॉडी डिटॉक्स तो होती ही है, साथ ही मेटाबॉलिज्म को भी बढ़ावा मिलता है, लेकिन वजन घटाने के लिए इन्हें खाने से क्या होता है और क्या नहीं, इसे जानना बेहद जरूरी है। आइए इस आर्टिकल में आपको बताते हैं, कि वेट लॉस के लिए ये सचमुच प्रभावी हैं या फिर महज एक धोखा है।
हाई कैलोरी फूड हैं चिया सीड्स
चिया सीड्स कैलोरी और फैट में रिच होते हैं। इसमें शुगर कंटेंट नहीं होता है, लेकिन इसके दो टेबलस्पून में 138 कैलोरी और 9 ग्राम के करीब फैट पाया जाता है। ऐसे में इन्हें ज्यादा मात्रा में खा लेने से वजन कम होने के बजाय बढ़ सकता है, क्योंकि ये ज्यादा कैलोरी वाले फूड्स में गिने जाते हैं।दरअसल, इसे लेकर लोगों के मन में यही भरोसा रहता है कि इसके सेवन से वजन कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन वास्तव में जूस, दही, डेजर्ट या स्मूदी में इसे मिलाकर खाने से इसकी मात्रा का ख्याल रख पाना मुमकिन नहीं होता है और वेट लॉस जर्नी को नुकसान पहुंच सकता है।
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चिया सीड्स को लेकर क्या कहते हैं अध्ययन?
चिया सीड्स फाइबर से भरपूर होते हैं, जिस कारण इसे लेकर लोगों के मन में धारणा ये है कि इससे ज्यादा देर तक पेट भरा रहता है और भूख नहीं लगती। कई लोग मानते हैं, कि इससे ओवरईटिंग से बचा जा सकता है और इसकी सीधा फायदा वजन घटाने के रूप में मिलता है। ऐसे में क्या आप जानते हैं कि इस बात को लेकर अभी पर्याप्त सबूत ही मौजूद नहीं हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की एक स्टडी से समझें, तो इसमें शामिल एक ग्रुप ने एक दिन में 35 ग्राम चिया के आटे का सेवन किया। इन्हें दो ग्रुप में बांटा गया, जिनमें से दूसरे ग्रुप ने नॉर्मल आटा ही खाया। ऐसे में 12 हफ्तों बाद की गई जांच में यह पाया गया कि दोनों ही ग्रुप्स में कोई अंतर नहीं था।