Ramsay Hunt Syndrome: दुनिया के सबसे चर्चित सिंगर जिस बीमारी से हुए पैरेलाइज, जानिए कैसे करें इससे बचाव
नोएडा के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट आफ चाइल्ड हेल्थ के मेडिकल जेनेटिक्स विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. मयंक निलय ने बताया कि रामसे हंट सिंड्रोम नामक वायरस एक न्यूरोलाजिकल समस्याओं का कारक है। इसका संक्रमण अधिकतर कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को होता है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 14 Jun 2022 07:58 PM (IST)
नोएडा, मोहम्मद बिलाल। पाप स्टार सिंगर जस्टिन बीबर के चेहरे का हिस्सा आंशिक रूप से लकवाग्रस्त होने की खबर से उनके प्रशंसक सदमे में है। मेडिकल एक्सपर्ट के मुताबिक जस्टिन बीबर रामसे हंट सिंड्रोम नामक एक संक्रमण की चपेट में हैं। यह वायरस न्यूरोलाजिकल समस्याओं का कारक माना जाता है, इससे चेहरे की नसें प्रभावित हो सकती हैं। जो चेहरे की रंगत उड़ाने के लिए काफी हैं। सिंड्रोम का नाम जेम्स रामसे हंट (1872-1937) के नाम पर रखा गया है, जो एक अमेरिकी न्यूरोलाजिस्ट और प्रथम विश्व युद्ध में सेना के अधिकारी थे। उन्होंने ही इस बीमारी के बारे में सबसे पहले बताया था। रामसे हंट सिंड्रोम कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के साथ ही सक्षम प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को भी प्रभावित करता है।
एक अध्ययन के मुताबिक अमेरिका में प्रतिवर्ष एक लाख में पांच लोग इस बीमारी का शिकार होते हैं। रामसे हंट सिंड्रोम वेरिसेला जोस्टर वायरस के कारण होता है। यह वायरस चिकनपाक्स का भी कारण बनता है। यह वायरस फेशियल नर्व (चेहरे की नस) को प्रभावित करता है। मानव शरीर में 12 क्रेनियल नर्व होती हैं। ब्रेन से निकलने वाली हर नर्व का अपना-अपना काम होता है। सातवीं नर्व फेशियल नर्व कहलाती है। फेशियल नर्व जो कान के जरिये आती है। यह नर्व पूरे चेहरे को इन्वाल्व करती है। फेशियल नर्व इनर ईयर अंदरूनी कान की नर्व के पास से गुजरती है। जब वायरस री-एक्टिवेट होता है तो फेशियल नर्व में प्रवेश करके सूजन करा देता है। जब सूजन होती है, तो जिस तरफ का फेशियल नर्व प्रभावित होता है, उस तरफ के आंख, होंठ, सुनने की क्षमता कम होने के साथ कान में रैसेज होने लगते हैं। इस हिस्से में पैरालिसिस होने की संभावना बढ़ जाती है।
कौन हो सकता है प्रभावित: बीमारी का जोखिम उन लोगों में अधिक होता है, जिन्हें चिकन पाक्स हुआ है। चिकन पाक्स से ठीक होने के बाद भी कुछ लोगों में वायरस रह जाता है। यह कुछ वर्षों में फिर से सक्रिय होकर द्रव से भरे फफोले के साथ कुछ प्रकार के लक्षणों को बढ़ा सकता है। यह स्थिति 60 साल के ऊपर के लोगों में अधिक देखी जाती रही है। डायबिटीज या शरीर के प्रतिरक्षा में अक्षम (इम्यूनो काम्प्रोमाइज) की अवस्था में होने पर भी रामसे हंट सिंड्रोम हो सकता है। तनाव, कीमोथेरेपी, इम्यूनोकाम्प्रोमाइज, संक्रमण, कुपोषण इसके प्रमुख कारकों में शामिल हैं।
बच्चों में इसके मामले काफी दुर्लभ रहे हैं। जिन लोगों को पहले से ही प्रतिरक्षा प्रणाली में कमजोरी की समस्या है, यह संक्रमण उन लोगों के लिए और भी गंभीर हो सकता है। वैसे तो ज्यादातर लोगों में सुनने या चेहरे पर लकवा की समस्या कुछ दिन में इलाज के बाद ठीक हो जाती है, हालांकि गंभीर स्थितियों में यह दिक्कत स्थायी रूप से बनी भी रह सकती है। इस संक्रमण की स्थिति में चेहरे की कमजोरी के कारण पलक बंद करना भी मुश्किल हो जाता है। इस तरह की दिक्कत वाले लोगों में कार्निया के क्षतिग्रस्त होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। यह किसी भी उम्र के इंसान को हो सकता है। छोटे बच्चों में भी यह बीमारी देखने को मिल रही है। इससे बचने के लिए जीवनशैली में बदलाव जरूरी है। इससे बचने के लिए साफ-सफाई का ध्यान रखें। अल्कोहल और सिगरेट से दूर परहेज करें। सेहतमंद रहने के लिए इम्युनिटी बढ़ाने वाले पदार्थों का सेवन करें।
कैसे करें इस बीमारी से बचाव?: बीमारी से पीडि़त व्यक्ति को तुरंत डाक्टर से संपर्क करना चाहिए। इलाज में एंटीवायरल दवाएं, स्टेरायड, एंटी-एंग्जाइटी, पेन किलर दवा दी जाती है। इसके साथ ही फीजियोथेरेपी भी करवाई जाती है। दवाओं के सेवन से न्यूरोलाजिकल दर्द कम होता है। यदि इसका इलाज समय पर न किया जाए, तो मरीज की सुनने की क्षमता भी जा सकती है। इसलिए जरूरी है कि लक्षण शुरू होने के तीन दिन के अंदर उपचार शुरू कर दिया जाए है। इससे ठीक होने की संभावना अधिक होती है।
असिस्टेंट प्रोफेसर डा. मयंक निलय