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Monsoon Fungal Infections: बरसात में बढ़ जाता है फंगल संक्रमण का खतरा, जानें इससे बचने के आयुर्वेदिक उपाय

Monsoon Fungal Infections मानसून यानी बारिश का मौसम आते ही हवा में नमी बढ़ जाती है। जिसके चलते बैक्टीरिया और फफूंद का प्रसार होता है और इन्फेक्शन फैलता है। ऐसे में फफूंद संक्रमण (फंगल इन्फेक्शन) की समस्या भी स्वाभाविक है। गीला कपड़ा पहनने और शरीर में काफी देर तक नमी बनी रहने से इस संक्रमण के होने का खतरा बढ़ जाता है।

By Jagran NewsEdited By: Ruhee ParvezUpdated: Mon, 31 Jul 2023 05:27 PM (IST)
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Monsoon Fungal Infections: फंगल इन्फेक्शन से बचने के लिए जरूरी है सतर्कता
नई दिल्ली। Monsoon Fungal Infections: मानसून के दिनों में कपड़े सही ढंग से नहीं सूखते और न ही उसमें पर्याप्त धूप लगती है। इसके अलावा, सिंथेटिक कपड़े से भी त्वचा संबंधी परेशानियां होती हैं। अगर किसी कारणवश फंगल संक्रमण हो जाता है, तो आयुर्वेद के अनुसार उसे सही करने के कई तरीके हैं।

इसमें औषधीय तेल, मलहम आदि फफूंद संक्रमण को खत्म करने में सहायक होते हैं। हल्के संक्रमण के उपचार में बाह्य औषधियां पर्याप्त होती हैं। कुछ लोगों को वर्षों से संक्रमण रहता है और मानसून में गंभीर हो जाता है। ऐसे लोगों के लिए बाह्य उपचार पर्याप्त नहीं होता। कुछ खास तरह का काढ़ा और औषधि देने के साथ-साथ ऐसे लोगों का बाह्य उपचार विधियों से इलाज किया जाता है। इस दौरान उन्हें रक्त शुद्धता और फंगल रोधी कुछ दवाएं दी जाती हैं, ताकि संक्रमण को जड़ से खत्म किया जा सके।

क्लेद बढ़ने से होती है समस्या

मानसून अवधि में पानी की अशुद्धि बढ़ जाती है, जो कई तरह की बीमारियों का कारण है। आयुर्वेद का सिद्धांत कहता है कि इस मौसम में शरीर में क्लेद यानी द्रव की मात्रा अधिक हो जाती है। इससे रक्त दूषित होता है, जिससे त्वचा, श्वसन संबंधी बीमारियां और पेट का संक्रमण बढ़ता है। मानसून जनित समस्याओं के लिए अनेक आयुर्वेदिक उपचार विधियां हैं। कुछ उपाय तो घरेलू स्तर पर भी किए जा सकते हैं।

आहार और जल को करें शुद्ध

इस मौसम में शुद्ध, ताजा और गर्म भोजन व पानी का उपयोग ही करना चाहिए। भोजन में तेल और वसा की मात्रा को सीमित करें। खदिर (खैर), धनिया, जीरा, सोंठ आदि को पानी में मिश्रित और उबाल कर पीना फायदेमंद है। इससे संक्रमण से बचाव होने के साथ पेट की अशुद्धियां भी दूर होती हैं और पाचन क्रिया दुरुस्त होती है।

विरेचन क्रिया लाभकारी

पंचकर्म से शरीर का शुद्धीकरण होता और संक्रमण दूर होता है। शरीर में पानी का अंश बढ़ जाने या दूषित पानी के प्रभाव को खत्म करने के लिए पंचकर्म में कई चिकित्सा विधियां हैं। इसके तहत विरेचन कराया जाता है, ताकि शरीर में उत्पन्न दोष को खत्म किया जा सके। नमी के चलते इन दिनों जोड़ों के दर्द बढ़ने की भी शिकायत रहती है, उसके लिए कुछ बाह्य थेरेपी की मदद ली जा सकती है।

घर पर कर सकते हैं उपाय

  • सामान्य तरह के संक्रमण के लिए उबले पानी का नियमित प्रयोग जरूरी है।
  • अत्यधिक ठंडे पानी के उपयोग से बचें। उबले पानी में अलग से ठंडा पानी न मिलाएं।
  • उबले पानी से पाचन क्रिया दुरुस्त होगी, संक्रमण से बचेंगे।
  • पानी में सोंठ या जीरा डाल कर प्रयोग करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी।
  • हल्दी युक्त पानी से गरारा करना और हल्दी वाला दूध पीना स्वास्थ्य के लिए विशेष लाभदायक है।

फंगल के लिए बाह्य उपचार

  • अगर नमी के चलते फंगल संक्रमण हो रहा है, तो नारियल तेल का उपयोग लाभदायक है।
  • शुरुआती चरण में नारियल तेल का प्रयोग करें, लेकिन अधिक फंगल होने पर इसके प्रयोग से संक्रमण बढ़ सकता है।
  • बचाव के लिए शारीरिक स्वच्छता का ध्यान जरूरी है।
  • संक्रमण होने पर परिवार के अन्य सदस्यों के साथ कपड़े सुखाने से बचें, अलग साबुन का इस्तेमाल करें।

आंतरिक मजबूती भी जरूरी

शारीरिक क्षमता को बढ़ाने में आयुर्वेद चिकित्सा बहुत प्रभावी है। दक्षिण भारत में मानसून के मौसम में भोजन के साथ औषधि लेने जैसी कुछ परंपराएं हैं। शरीर में क्लेद बढ़ने से पाचन क्रिया बाधित होती है और गैस-एसिडिटी की दिक्कत आने लगती है। पाचन बेहतर और शरीर मजबूत करने के लिए औषधीय खिचड़ी का प्रयोग लाभकारी है। इसे घर पर ही तैयार कर सकते हैं। पाचन बढ़ाने वाली कुछ औषधियों के साथ नारियल दूध डालकर इसे तैयार किया जाता है। इसके सेवन से मानसून जनित समस्याएं दूर रहती हैं। इसमें केवल चावल का प्रयोग होता है। ध्यान रखें इसमें मूंगदाल नहीं होती। चावल को पकाते समय ही इसमें 10 से 15 औषधियां मिश्रित की जाती हैं। अंत में इसमें नारियल दूध मिलाया जाता है। दिन में एक बार ही सेवन करना होता है, बाकी समय सामान्य भोजन कर सकते हैं।

डॉ. आनंद पीवी रमन

प्रोफेसर, अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, नई दिल्ली

Picture Courtesy: Freepik

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