Diabetes: जानें क्या है टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज़ में अंतर, कैसे होते हैं लक्षण और इलाज
Type-1 vs Type-2 Diabetes पिछले कुछ समय में डायबिटीज़ एक आम बीमारी हो गई है खासतौर पर भारत में। लेकिन डायबिटीज़ भी दो तरह की होती है जिसके बारे में आपने ज़रूर सुना भी होगा। लेकिन क्या आप इन दोनों में फर्क को समझते हैं?
By Ruhee ParvezEdited By: Updated: Thu, 09 Jun 2022 11:27 AM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Type-1 vs Type-2 Diabetes: डायबिटीज़ टाइप-1 और डायबिटीज़ टाइप-2 तब होती है जब शरीर ग्लूकोज़ को ठीक से स्टोर और उपयोग नहीं कर पाता है, जो ऊर्जा के लिए आवश्यक है। यह ग्लूकोज़ तब रक्त में इकट्ठा हो जाता है और उन कोशिकाओं तक नहीं पहुंचता है जिन्हें इसकी आवश्यकता होती है, जिससे गंभीर जटिलताएं होती हैं। ग्लूकोज़ वह ईंधन है जो आपके शरीर की कोशिकाओं को खिलाता है, लेकिन आपकी कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिए इसे एक कुंजी की आवश्यकता होती है। वह कूंजी इंसुलिन है।
जो लोग डायबिटीज़ टाइप-1 से पीड़ित होते हैं, उनमें इंसुलिन का उत्पादन नहीं होता। वहीं, जो लोग टाइप-2 डायबिटीज़ से पीड़ित होते हैं, इंसुलिन पर जितनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए नहीं दे पाते और आगे चलकर बीमारी में अक्सर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाते। दोनों तरह की डायबिटीज़ में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ा होता है।लक्षणों का विकास होना
वैसे तो टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज़ के कई लक्षण एक समान होते हैं, लेकिन वे अलग तरह से दिखते हैं। टाइप-2 डायबिटीज़ के कई मरीज़ों को सालों लक्षण नहीं दिखते और समय के साथ लक्षण दिखते हैं। कई लोग जो टाइप-2 डायबिटीज़ से पीड़ित होते हैं उनमें कोई लक्षण नहीं होते और तभी दिखते हैं जब बीमारी में जटिलताएं दिखना शुरू हो जाती हैं। वहीं, टाइप-1 डायबिटीज़ के लक्षण जल्दी दिखने लगते हैं, कुछ ही हफ्तों में। एक वक्त पर इसे बचपन में होने वाली डायबिटीज़ कहा जाता था, जो कम उम्र में ही आमतौर पर होती थी। हालांकि, टाइप-1 डायबिटीज़ किसी भी उम्र में हो सकती है।
अगर टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज़ को सही तरीके से मैनेज न किया जाए, तो इससे कई तरह के लक्षण उत्पन हो जाते हैं, जैसे- बार-बार पेशाब आना, बहुत ज़्यादा पयास लगना, बहुत भूख लगना, बहुत ज़्यादा कमज़ोरी महसूस होना, धुंधला दिखना, चोट या घाव जो आसानी से ठीक नहीं होते। इसके अलावा वे चिड़चिड़ापन, मूड बदलना, अचानक वज़न घट जाना, सुन्नता और हाथों व पैरों में झुनझुनी महसूस होना।
इनके होने का क्या है कारण
टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज़ के लक्षण भले ही एक तरह के हों, लेकिन इसकी वजहें अलग हो सकती है। टाइप-1 मधुमेह वाले लोगों में, प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर की अपनी स्वस्थ कोशिकाओं को गलती से विदेशी आक्रमणकारी समझ लेती है। जिसकी वजह से इम्यून सिस्टम पैनक्रियाज़ में इंसुलिन बनाने वाले बीटा सेल्स पर हमला करता है और उसे तबाह कर देता है।टाइप-2 डायबिटीज़ मुख्य रूप से दो परस्पर संबंधित समस्याओं के कारण होता है। क्योंकि ये कोशिकाएं इंसुलिन के साथ सामान्य तरीके से संपर्क नहीं करती हैं, इसलिए वे पर्याप्त चीनी नहीं लेती हैं। एक और समस्या यह हो सकती है कि अग्न्याशय रक्त शर्करा के स्तर को प्रबंधित करने के लिए पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने में असमर्थ हो जाता है।
किन लोगों को होता है डायबिटीज़ होने का ज़्यादा ख़तरा जिन लोगों के मां-बाप या भाई-बहन को टाइप-1 डायबिटीज़ होती है, तो उनमें भी इस बीमारी का ख़तरा बढ़ जाता है। टाइप-1 डायबिटीज़ बच्चों और नौजवान लोगों में ज़्यादा देखी जाती है, लेकिन यह किसी को भी हो सकती है। टाइप-2 डायबिटीज़ होने का ख़तरा तब बढ़ जाता है, जब आप प्री-डायबिटिक हों, आपका ब्लड शुगर स्तर बढ़ा हुआ हो, जिन लोगों का वज़न ज़्यादा होता है या फिर मोटापे का शिकार होते हैं, पेट के आसपास चर्बी जमा होती है या फिज़िकल एक्टिविटी नहीं होती।
उम्र की बात करें, तो जिन लोगों की उम्र 45 से ऊपर है, उनमें डायबिटीज़ का जोखिम बढ़ जाता है। अगर आपको प्रेग्नेंसी के दौरान जेस्टेशनल डायबिटीज़ हुई है, तो आपमें भी टाइप-2 डायबिटीज़ का ख़तरा बढ़ जाएगा।क्या इलाज भी अलग होता है?टाइप-1 डायबिटीज़ का कोई इलाज नहीं है। जो इससे पीड़ित होते हैं उन्हें इंसुलिन लेनी पड़ती है। साथ ही दिन में 4 बार अपने ब्लड शुगर स्तर की जांच भी करनी होती है। इसमें ब्लड शुगर के स्तर की जांच अहम होती है, क्योंकि यह तेज़ी से ऊपर-नीचे हो सकती है।
वहीं, टाइप-2 डायबिटीज़ में लाइफस्टाइल में बदलाव भी करने होते हैं, जिसमें सही डाइट लेना और एक्सरसाइज़ करना और दवाइयों का सेवन शामिल है। समय के साथ अगर आपके पैनक्रियाज़ इंसुलिन बनाना छोड़ दें तो आपके डॉक्टर इंसुलिन इंजेक्शन की सलाह दे सकते हैं।Disclaimer: लेख में दिए गए सुझाव और टिप्स सिर्फ सामान्य जानकारी के उद्देश्य के लिए हैं और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। अपनी डाइट में किसी भी तरह के बदलाव करने से पहले अपने डॉक्टर या आहार विशेषज्ञ से ज़रूर सलाह लें।