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Mental Health at Workplace: मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता ऑफिस का माहौल, जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट

Mental Health at Workplace मानसिक स्वास्थ्य बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण मुद्दा है। लेकिन अफसोस की बात है कि बेहद कम प्रतिशत में ऐसे लोग मौजूद हैं जो इस विषय पर ध्यान देते हैं और इसके बारे में बात करते हैं। डब्ल्यूएचओ ने भी मानसिक स्वास्थ्य को एक गंभीर मुद्दा बताया है। ऑफिस में काम करने वाले कर्मचारियों की बड़ी संख्या मौजूद है जो मानसिक विकार से जूझ रहे हैं।

By Ritu ShawEdited By: Ritu ShawUpdated: Thu, 13 Jul 2023 04:38 PM (IST)
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ऑफिस के माहौल का मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है गहरा असर
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Mental Health at Workplace: विश्व स्वास्थ्य संगठन की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, लगभग दुनिया की आधी से अधिक आबादी की उम्र काम करने की है, जिसमें से 15% वयस्क मानसिक परेशानी के साथ जी रहे हैं। ऐसे लोगों को अगर समय रहते सही इलाज और समर्थन न मिले, तो मानसिक विकार और अन्य मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां किसी भी व्यक्ति पर बुरा असर डाल सकती हैं। इससे न केवल उनका काम प्रभावित होगा, बल्कि उनके आत्मविश्वास और काम करने की क्षमता में भी काफी गिरावट आएगी।

खराब मानसिक स्वास्थ्य होने के चलते परिवार, सहकर्मी, समाज और यहां तक के खुद के करियर पर भी बड़े पैमाने पर नेगेटिव असर पड़ता है। WHO की मानें, तो अवसाद और चिंता के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को हर साल 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है क्योंकि व्यक्ति में प्रोडक्टिविटी की कमी हो जाती है। लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित करना जरूरी है कि मेंटल हेल्थ केवल इमोशनल या पर्सनल लाइफ की वजह से खराब नहीं होती, बल्कि वर्क लाइफ से भी हो सकती है। इस मुद्दे पर गहराई से जानने के लिए हमने मनिपाल हॉस्पिटल के क्लिनिकल साइकोलॉजी एक्सपर्ट डॉक्टर सतीश कुमार से बात की।

डॉ. सतीश के मुताबिक पिछले 1-2 वर्षों में वर्कप्लेसेज पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के बहुत सारे मामले सामने आए हैं। उनका कहना है कि महामारी से पहले भी कार्यस्थलों पर लोगों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हुआ करती होंगी, लेकिन लॉकडाउन और उसके बाद के दौरान ये समस्याएं अपने चरम पर देखने को मिल रही हैं।

चिंता, ड्रिप्रेश और तनाव वर्कप्लेस पर रिपोर्ट की जाने वाली सबसे आम समस्याओं में से एक हैं, जिसका मुख्य कारण है काम करने का खराब माहौल है। ऐसी जगह जहां कर्मचारियों के मेहनत की सराहना न की जाती हो, उनके काम को स्वीकार न किया जाता हो या फिर उन्हें वह न मिलना जिसके वे हकदार हैं। ऐसी चीजें व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालती हैं। इसके अलावा एक व्यक्ति की तुलना में दूसरे के साथ भेदभाव करना भी मानसिक विकार की एक बड़ी वजह है।

वर्क फ्रॉम होम और ऑफिस कल्चर के बीच बैलेंस कैसे बनाएं?

कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के दौरान, ऑफिस कल्चर से वर्क फ्रॉम होम में परिवर्तन होने के कारण कुछ लोगों को राहत महसूस हुई। इससे उनके घंटों का ट्रैवल टाइम बचने लगा और लोग अपनी स्वतंत्रता से काम करने लगे। ऐसे में अब जब घर से काम करने की सुविधा धीरे-धीरे खत्म हो रही है और लोगों को अपने ऑफिस वापस लौटने के लिए कहा जा रहा है, तो बॉस, सहकर्मियों और वर्कप्लेस पर खुद को एडजस्ट करने के मुद्दे भी सामने आ रहे हैं।

मंदी और नौकरी छूटने का डर

मंदी और नौकरी खोने का डर कुछ ऐसा है, जो व्यक्ति का बीपी भी बढ़ा सकती है। डॉ. सुधीर कहते हैं कि ऐसे कई मामले मिले हैं, जिनमें लोगों ने काम पर जाने के बाद अगले दिन नौकरी खोने के डर से रातों की नींद हराम होने की बात कही है। वहीं, कुछ लोगों ने सांस फूलने की समस्या होने की भी शिकायत की है। कई लोगों ने तो यह भी बताया कि वे ऑफिस से आने वाले फोन कॉल, ईमेल या मैसेजेस को देखने से भी डरने लगे और सोचने लगे कि क्या उन्हें नौकरी से निकालने का मैसेज आया है?

वर्क फ्रॉम होम या ऑफिस?

लॉकडाउन के बाद से काफी बदलाव हुए हैं, जिसमें कार्यस्थल पर लोगों के रवैये में भी बदलाव आया है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। कई लोगों ने बताया है कि वे वर्क फ्रॉम होम कल्चर को जारी रखना चाहते हैं क्योंकि इससे उन्हें घंटों बैठे रहने और ट्रैफिक में घंटों बिताने से राहत मिलती है, जो उनकी चिंता और बढ़ाती है।

वर्कलाइफ बैलेंस के लिए क्या करें?

  • आज के फास्ट लाइफस्टाइल में लोग अपने वर्क और पर्सनल लाइफ को बैलेंस करने को प्राथमिकता देना चाहते हैं। इसके लिए कुछ उचित उपाय अपनाकर वे अपने समय का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • जब भी संभव हो वर्कलाइफ और खाली समय के बीच स्पष्ट सीमाएं निर्धारित करें। ऐसा करने के लिए अपनी जिम्मेदारियों को सही ढंग से बांटना जरूरी है।
  • वर्कप्लेस पर सभी के लिए साइकोलॉजिकल सपोर्ट सेंटर उपलब्ध होने चाहिए, जिससे लोग नियमित रूप से साइकोलॉजिस्ट से मिल सकें।
  • जब लोग तनाव भरे माहौल में काम करते हैं, तो उनकी प्रोडक्टिविटी और मेंटल हेल्थ दोनों को नुकसान पहुंचता है। इसलिए एम्प्लॉइज और बॉसेस के बीच रेगुलर मीटिंग होनी चाहिए, जिससे वे सीधे तौर पर अपनी बात को खुलकर रख सकें।
  • इसके अलावा, मेंटरशिप नए जुड़ने वालों को समर्थित महसूस करने में मदद कर सकती है और साथ ही उन्हें सीखने और बढ़ने के लिए एक मंच भी दे सकती है। उन्हें पता होगा कि संकट के समय किससे संपर्क करना है।

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