Bad News! सिर्फ बीड़ी-सिगरेट ही नहीं, इन कारणों से भी होता है Lung Cancer
हाल ही में Lung Cancer के बारे में एक चौंकाने वाली स्टडी सामने आई है। यह स्टडी हैरान करने वाली इसलिए है क्योंकि इसके मुताबिक भारत में लंग कैंसर के आधे से ज्यादा मरीज Non-Smokers हैं यानी वे स्मोक नहीं करते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि लंग कैंसर के और कौन-कौन से मुख्य रिस्क फैक्टर्स हैं जिनके प्रति सावधानी बरतने की जरूरत है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Lung Cancer in Non -Smokers: लंग कैंसर (Lung Cancer) यानी फेफड़ों में होने वाले कैंसर का नाम सुनते ही, दिमाग में इसकी सबसे पहली वजह आती है स्मोकिंग। धूम्रपान करने से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, इस बारे में हम अक्सर ही बात करते हैं, लेकिन हाल ही में, मेडिकल जर्नल 'द लांसेट' में आई एक स्टडी इसके बिल्कुल विपरीत बात कह रही है।
इस स्टडी के मुताबिक, भारत में लंग कैंसर के 50 प्रतिशत मरीज वे लोग हैं, जो नॉन स्मोकर्स (Non-Smokers) हैं, यानी वे धूम्रपान नहीं करते। इस स्टडी से यह बात साफ हो जा रही है कि लंग कैंसर से बचाव के लिए सिर्फ तंबाकू के सेवन से परहेज करना भर ही काफी नहीं है, बल्कि इसके अन्य रिस्क फैक्टर्स के बारे में भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
लंग कैंसर के अन्य रिस्क फैक्टर्स में प्रदूषण, जेनेटिक्स, हानिकारक केमिकल्स और पैसिव स्मोकिंग शामिल हैं। इसलिए लंग कैंसर के खतरे को टालने के लिए जरूरी है कि इसके कारणों को गहराई से समझा जाए और उनसे निपटने के उपाय किए जाएं।
लंग कैंसर के अन्य रिस्क फैक्टर्स
वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण भारत के लिए बेहद गंभीर समस्या है। हर साल सर्दियों के मौसम में प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने की खबरें सामने आने लगती हैं। प्रदूषण की समस्या शहरी इलाकों में ज्यादा देखने को मिलती हैं। हवा में मौजूद PM 2.5 फेफड़ों के टिश्यू को भीतर तक नुकसान पहुंचाते हैं, जिसके कारण सूजन या सेल्स में बदलाव होने लगते हैं, जिसके कारण लंग कैंसर हो सकता है। इसलिए वायु प्रदूषण कम करने और इससे बचने पर ध्यान देना जरूरी है।
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टीबी
Tuberculosis यानी टीबी फेफड़ों में होने वाली एक बेहद गंभीर बीमारी है, जिसे शुरुआत में अक्सर लोग मामूली खांसी समझकर अनदेखा कर देते हैं। भारत में टीबी के मामले भी काफी अधिक हैं, जो आगे चलकर लंग कैंसर की वजह बन सकते हैं। इसलिए टीबी का जल्दी और बेहतर इलाज होना बेहद जरूरी है।
हानिकारक केमिकल्स
भारत में कई लोग अपने व्यवसाय की वजह से रोजाना कुछ हानिकारक केमिकल्स भरी हवा में काम करते हैं। कोयला खादान, लकड़ी का काम, कंस्ट्रक्शन आदि क्षेत्रों में आर्सेनिक, एस्बेस्टस, क्रोमियम, कैडमियम और कोयले के कण हवा में काफी मात्रा में मौजूद होते हैं, जिसकी वजह से उन जगहों पर काम करने वाले कारीगरों में लंग कैंसर का खतरा रहता है।
पैसिव स्मोकिंग
सिर्फ स्मोक करना ही फेफड़ों के लिए हानिकारक नहीं है, बल्कि किसी और द्वारा स्मोक का छोड़ा हुआ धुंआ भी लंग्स के लिए नुकसानदेह होता है। इसे ही पैसिव स्मोकिंग या सेकंड हैंड स्मोक कहा जाता है। भारत में कई लोग पैसिव स्मोक भी करते हैं, जिसकी वजह से उनमें कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए इससे भी बचने की जरूरत है।
जेनेटिक्स
कुछ लोगों के जेनेटिक्स की वजह से भी उनमें कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। परिवार में पहले किसी को कैंसर रहा हो या किसी जेनेटिक बदलाव की वजह से लंग कैंसर उन लोगों को आसानी से अपना शिकार बना लेता है।
भारत में लंग कैंसर के मामले पश्चिमी देशों की तुलना में 10 साल पहले नजर आते हैं यानी यहां लंग कैंसर के मरीज तुलनात्मक रूप से उनसे कम उम्र के हैं। ऐसे में जरूरी है कि लंग कैंसर के बारे में लोगों को जागरूक बनाया जाए, इसके लक्षणों के बारे में जानकारी दी जाए, फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों के बारे में लोगों में जागरुकता होनी चाहिए और साथ ही, लंग कैंसर के बेहतर इलाज की सुविधाएं मुहैया कराने की जरूरत है।
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