Muscular dystrophy: क्यों होती है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, लक्षणों के साथ जानें क्या संभव है इसका उपचार?
Muscular dystrophy कुछ आनुवंशिक डिसैबिलिटी के लक्षण बच्चों में जन्म के समय नजर नहीं आते लेकिन कुछ सालों बाद उनकी फिजिकल एक्टिविटीज में ये आभास होता है। मस्कुलर डिस्ट्रॉफी भी एक ऐसी ही प्रॉब्लम है। यहां जानें इसके बारे में।
By Priyanka SinghEdited By: Priyanka SinghUpdated: Mon, 23 Jan 2023 08:01 AM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Muscular dystrophy: हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 'सलाम वेंकी' की वजह से मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक आनुवंशिक रोग लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि यह फिल्म इसी बीमारी पर केंद्रित है और इसका लीड कैरेक्टर वेंकी इस समस्या से जूझ रहा होता है। क्यों होता है ऐसा और क्या है इसका उपचार? जानेंगे इसके बारे में इस लेख में विस्तार से।
क्या है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी
जब शरीर में कई न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के लक्षण एक साथ मौजूद होते हैं, तो ऐसी फिजिकल कंडीशन को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी कहा जाता है। जो एक आनुवंशिक बीमारी है, जिसमें जन्म के बाद धीरे-धीरे बच्चे की मांसपेशियां कमजोर होती जाती हैं। ऐसे में फिजिकल एक्टिविटीज को कंट्रोल करने वाली स्केलेटल मसल्स कमजोर होकर डैमेज हो जाती हैं। हेल्दी मसल्स के विकास के लिए शरीर में कुछ खास तरह के प्रोटीन का निर्माण होता है लेकिन ऐसी समस्या होने पर कुछ म्यूटेशन (असामान्य जीन्स) इस प्रक्रिया में रूकावट पैदा करते हैं। कुछ में जन्म के समय ही इस बीमारी की पहचान की जा सकती है, तो कई बार ऐसा भी होता है कि किशोरावस्था में प्रवेश करने के बाद बच्चे में ऐसे लक्षण नजर आते हैं।
क्यों होता है ऐसा
कोशिकाओं (सेल्स) में मौजूद जीन्स की संरचना में गड़बड़ी के कारण मस्कुलर डिस्ट्रॉफी की समस्या होती है। मांसपेशियों के आकार औऱ मजबूती को निर्धारित करने के लिए खास तरह के प्रोटीन की जरूरत होती है और इसमें हजारों जीन्स मौजूद होते हैं, जो इस काम में कोशिकाओं की मदद करते हैं। 23 जोड़े गुणसूत्रों में से हर जोड़े का आधा हिस्सा माता-पिता से विरासत में मिलता है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए, तो इनमें से 22 जोड़े गुणसूत्र, जिन्हें ऑटोसोमल क्रोमोसोम कहा जाता है, ये ही जन्म के बाद शिशु में रंग-रूप, शारीरिक संरचना, दिमागी क्षमता का निर्धारण करते हैं। इन गुणसूत्रों का एक विशेष जोड़ा ऐसा होता है, जो गर्भस्थ शिशु के लिंग को निर्धारित करता है। इनकी संरचना में बदलाव से शरीर में डायस्ट्रोफिन नामक जरूरी प्रोटीन की कमी हो सकती है। जब शिशु का शरीर पर्याप्त मात्रा में डायस्ट्रोफिन नहीं बना पाता, तो उसके शरीर में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लक्षण पनपने लगते हैं। अगर इस बीमारी की फैमिली हिस्ट्री रही हो, तो ऐसे परिवार में जन्म लेने वाले बच्चों में भी यह समस्या हो सकती है। क्योंकि इस रोग के संवाहक डीएमडी और बीएमडी एक्स क्रोमोसोम्स से जुड़े होते हैं, इस वजह से लड़कों में इस बीमारी की संभावना ज्यादा होती है क्योंकि गर्भस्थ शिशु का लड़का होना इसी क्रोमोसोम पर डिपेंड करता है।मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लक्षण
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित बच्चों में आमतौर पर नजर आने वाले लक्षणः- कदमों में लड़खड़ाहट
दौड़ने या कूदने में परेशानीबार-बार गिरनालेटने या बैठने में कठिनाईनजर में कमजोरीमांसपेशियों में जकड़नकद न बढ़नातेडी से वजन घटनाबौद्धिक विकास में रूकावट आदि।