Diabetic Retinopathy: डायबिटीक रेटिनोपैथी से जुड़ी गलतफहमियां और उनके पीछे का सच
Diabetic Retinopathy डायबिटिक रेटिनोपैथी एक खतरनाक स्थिति है जिसमें मरीज के आंखों की रोशनी जाने का खतरा होता है। इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका डायबिटीज को मैनेज करना है। रोजाना व्यायाम करने हेल्दी डाइट लेने और अपने इंसुलिन तथा मधुमेह की दवाओं के नियमित सेवन के साथ आंखों की नियमित जांच कराते रहने से इसे बचे रहा जा सकता है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Diabetic Retinopathy: डायबिटिक रेटिनोपैथी मधुमेह की एक गंभीर स्थिति है, जो आंखों को प्रभावित करती है, जिससे नजरें कमजोर होना या अंधेपन की समस्या हो सकती है। यह स्थिति मुख्य रूप से ब्लड शुगर के बढ़ने की वजह से होती है, जो रेटिना को ब्लड की सप्लाई करने वाली छोटी ब्लड वेसेल्स के नेटवर्क को नुकसान पहुंचाती है। यह आमतौर पर मामूली बीमारी के रूप में शुरू होती है। कुछ लोगों की दृष्टि में बदलाव होते हैं, जैसे कि पढ़ने में या दूर की वस्तुओं को देखने में दिक्कतें आना। बीमारी बढ़ने पर रेटिना की ब्लड वेसेल्स से आपकी आंख में भरे द्रव में रक्त स्राव होने लगता है जिससे अस्थायी या स्थायी दृष्टि हानि हो सकती है।
डायबिटिक रेटिनोपैथी से जुड़े कई मिथक हैं, जो बेवजह की चिंता बढ़ा सकते हैं। आज के इस लेख में हम इन्हीं मिथकों के बारे में जानेंगे साथ ही इसे कैसे दूर करें।
मिथक 1: डायबिटिक रेटिनोपैथी केवल बुजुर्गों को प्रभावित करता है।
तथ्य: डायबिटिक रेटिनोपैथी का खतरा उम्र के साथ बढ़ता है, लेकिन यह मधुमेह से पीड़ित किसी भी उम्र के व्यक्तियों को प्रभावित कर सकता है। डायबिटिक रेटिनोपैथी के विकास में मधुमेह की अवधि और प्रबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उम्र चाहे कोई भी हो। इस स्थिति का शीघ्र पता लगाने और उसका प्रबंधन करने के लिए, नियमित आंखों की जांच करवाना आवश्यक है।
मिथक 2: अगर आंखें बिल्कुल सही हैं, तो डायबिटिक रेटिनोपैथी का खतरा नहीं होता।
तथ्य: डायबिटिक रेटिनोपैथी अक्सर प्रारंभिक अवस्था में बिना किसी लक्षण के विकसित होता है। जब तक दृष्टि संबंधी समस्याएं स्पष्ट होंगी, तब तक रोग काफ़ी बढ़ चुका होगा। भले ही आपकी दृष्टि सही हो, पर फिर भी नियमित नेत्र जांच करवाना डायबिटिक रेटिनोपैथी का शीघ्र पता लगाने के लिए महत्वपूर्ण है, इससे इसका सही टाइम पर इलाज हो सकता है।
मिथक 3: अगर ब्लड शुगर कंट्रोल में है, तो डायबिटिक रेटिनोपैथी नहीं होगा।
तथ्य: रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करना मधुमेह प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण पहलू है, लेकिन यह डायबिटिक रेटिनोपैथी से प्रतिरक्षा की गारंटी नहीं देता है। अन्य कारक, जैसे कि रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल का स्तर और आनुवंशिक प्रवृत्ति भी इस स्थिति के विकास में भूमिका निभाते हैं। आँखों की नियमित जांच सहित व्यापक मधुमेह देखभाल आवश्यक है।
मिथक 4: डायबिटिक रेटिनोपैथी केवल टाइप 1 मधुमेह से पीड़ित लोगों को प्रभावित करती है।
तथ्य: टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज दोनों के रोगियों में डायबिटिक रेटिनोपैथी विकसित होने का खतरा होता है। मधुमेह की अवधि के साथ-साथ जोखिम भी बढ़ता जाता है। इसके अलावा, गर्भावस्था के दौरान गर्भकालीन मधुमेह के कारण भी डायबिटिक रेटिनोपैथी विकसित हो सकता है।
मिथक 5: डायबिटिक रेटिनोपैथी से व्यक्ति पूरी तरह से अंधा हो जाता है।
तथ्य: डायबिटिक रेटिनोपैथी से पीड़ित हर व्यक्ति अंधा नहीं होता। शीघ्र पता लगने, उचित प्रबंधन और समय पर चिकित्सा के साथ, रोग की बढ़ने की दर को धीमा किया या रोका जा सकता है। दृष्टि बचाने के लिए नियमित आंखों की जांच करवाना और जरूरी उपचार योजना का पालन करना आवश्यक है।
नियमित आधार पर आंखों की विस्तृत जांच कराना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि शीघ्र निदान और उपचार से क्षति को और डायबिटिक रेटिनोपैथी के कारण होने वाले अंधेपन को रोका जा सकता है।
(डॉ. बिरवा दवे, संकरा आई हॉस्पिटल, आनंद के विट्रेओ-रेटिना सर्जन से बातचीत पर आधारित)
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