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Chronic Burnout की वजह बन रहा है काम का बोझ और थकान, तो एक्सपर्ट से समझें इसके कारण, लक्षण और बचाव के तरीके

क्या आप लगातार तनाव और थकान से जूझ रहे हैं? क्या आपको लगता है कि आपका जीवन एक रूटीन में फंस गया है? अगर हां तो यह आर्टिकल आपके लिए ही है। जागरण के ब्रह्मानंद मिश्र आपको बताएंगे कि कैसे आप Chronic Burnout से बाहर निकल सकते हैं और अपने जीवन में खुशहाली ला सकते हैं। जानिए बर्नआउट के लक्षणों को पहचानने और इससे निपटने के आसान तरीके।

By Brahmanand MishraEdited By: Nikhil Pawar Updated: Mon, 23 Sep 2024 07:05 PM (IST)
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बर्नआउट के जाल से कैसे निकलें? एक्सपर्ट ने बताए कुछ खास टिप्स (Image Source: Freepik)
नई दिल्ली, ब्रह्मानंद मिश्र। मल्टीनेशनल कंसल्टिंग फर्म अर्न्स्ट एंड यंग में काम करने वाली 26 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट अन्ना सेबेस्टियन की काम के दबाव (Chronic Burnout) के चलते जान चली गई। अब सवाल उठता है- हमारे पेशेवर जीवन और व्यक्तिगत जीवन के बीच का संतुलन इतना बिगड़ सकता है कि यह हमारी जान को खतरे में डाल दे? दरअसल, कामकाज का बेशुमार दबाव, नौकरी की अनिश्चितता और बढ़ती संवादहीनता आज की जिंदगी का जाने-अनजाने में हिस्सा बन गई है। हमारी भावनाओं और मनोदशा को कुचल रहा यह दबाव कैसे कम हो, इस सवाल पर साइकियाट्रिस्ट डॉ. एकांश कहते हैं कि हमें तीन बातों का ध्यान रखना है- पहला, हमारा पेशेवर जीवन सुख-दुख में साथ रहने वाले स्वजन से दूरी का कारण नहीं बनना चाहिए, दूसरा, काम का दबाव पुस्तक पढ़ने, संगीत सुनने या फिर बागवानी जैसे शौक को हमसे न छीन ले, तीसरा, आभासी दुनिया यानी स्मार्टफोन और गैजेट से पर्याप्त दूरी भी जरूरी है। वर्क-लाइफ असंतुलन में जी रहे लोग बढ़ते काम के दबाव के साथ असहाय और निराश महसूस करने लगते हैं। इसका असर बहुत बड़ा होता है। थोड़ा-सा आराम करके तनाव व थकान को दूर कर सकते हैं, पर बर्नआउट तो हमें डरावने स्तर तक लेकर चला जाता है।

ऐसे तलाशें बर्नआउट के लक्षण

  • क्या आपको अपने ही काम पर शक होने लगा है?
  • क्या काम अब बोझ बन गया है और शुरुआत करने में परेशानी हो रही है। फोकस नहीं बन पा रहा है?
  • टीम में काम करते हुए अलग-थलग या असहाय महसूस करने लगे हैं?
  • सहकर्मियों या ग्राहकों के साथ काम करते या बात करते हुए सब्र खो देते हैं?
  • काम पूरा करने के बाद भी संतुष्टि नहीं होती और अपने कौशल और क्षमता पर शक होने लगा है?
  • स्ट्रेस फ्री रहने के लिए ड्रग्स या अल्कोहल का रुख कर रहे हैं, सोने-जागने की आदत बदल रही है?
  • क्या सिरदर्द, पेट या कोई अन्य शारीरिक समस्या हो रही है, जिसे समझ नहीं पा रहे हैं?
अगर इन सवालों के जबाव हां में है, तो मुमकिन है आप बर्नआउट की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में, आपके लिए तुरंत एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लेना बेहतर होगा।

तनाव कैसे बन जाता है बर्नआउट?

बर्नआउट से पहले एक स्थिति होती है तनाव की। यह इंसान के जीवन में सामान्य सी बात है। लेकिन जब तनाव लंबे समय तक बना रहे तो वह बर्नआउट हो जाता है। इससे मानसिक, शारीरिक स्वास्थ्य और इम्युनिटी तीनों ही प्रभावित होती है। किसी चुनौती का सामना करने से पहले स्ट्रेस से सामना होता ही है। यह अच्छा भी है। लेकिन, तनाव और दबाव लगातार बने रहे यह ठीक नहीं।

तनाव का सामना कैसे करता है दिमाग?

हमारे मस्तिष्क में हाइपोथैल्मस होता है, जैसे ही कोई तनावपूर्ण स्थिति आती है, एमिगडाला के सिग्नल से वह सक्रिय हो जाता है। यह संवेदनशील हिस्से से जुड़ा होता है। कोई खतरा सामने आने पर अलग-अलग हार्मोन निकलने लगते हैं। ये हाइपोथैल्मस को ट्रिगर करते हैं। एसीटीएच हार्मोन ब्लड स्ट्रीम में चला जाता है। इससे कार्टिसोल निकलता है, जिसे स्ट्रेस हार्मोन कहते हैं। कार्टिसोल थोड़े समय के लिए रिलीज हो तो शरीर में अलर्टनेस आती है। इसके धीमे पड़ते ही दिमाग शांत हो जाता है और सभी हार्मोन सामान्य हो जाते हैं। लेकिन जब ये स्ट्रेस 24 घंटे बना रहे, तो दिमाग में बिहैवियर पैटर्न बन जाता है। इससे लगातार कार्टिसोल रिलीज होने लगता है, जो हानिकारक है।

तनाव का शरीर पर असर

लगातार तनाव में रहने से कम उम्र में ही शरीर बूढ़ा दिखने लगता है, इम्युनिटी खराब हो जाती है। पेट की समस्या होने लगती है। तनावपूर्ण माहौल में काम करने वालों के साथ यह समस्या स्थायी तौर पर जुड़ जाती है। पाचन में सहायता करने वाले आंतों के अच्छे बैक्टीरिया खराब होने लगते हैं। अगर हमारा शरीर 24 घंटे तनाव में रहेगा तो जाहिर है शरीर हर समय एक्टिवेट रहेगा। इससे थकान और आलस्य होगा। फोन आने पर भी घबराहट होने लगती है। इससे इमोशनल, काग्निटिव हेल्थ और इम्युनिटी सब खराब होने लगेगी।

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नींद, भोजन, दिनचर्या के बीच हो संतुलन

कामकाज के अव्यवस्थित होने से शरीर की प्रतिक्रिया देने की क्षमता गिरने लगती है। जैसे नींद प्रभावित हुई तो स्वतः ही भोजन का चक्र बिगड़ जाएगा। खुद के लिए समय निकालना कठिन हो जाएगा। अपने शौक और स्वजन को आप समय नहीं दे पाएंगे।

बर्नआउट का जोखिम बढ़ाने वाले कारण

  • काम का ज्यादा बोझ और काम के अंतहीन घंटे
  • सामान्य दिनचर्या और काम के बीच असंतुलन
  • काम के दौरान नियंत्रण का अभाव
  • तनाव को लगातार टालते रहना और किसी की सलाह से बचना

कैसे बदल जाता है स्वभाव?

  • थकान महसूस होना
  • नए काम और जिम्मेदारियों से बचना
  • नींद का बाधित होना
  • दुखी, चिड़चिड़ा और जीवन से बेपरवाह होना
इतना ही नहीं, तनाव अगर लंबे समय तक बना रहे तो आप हाई ब्लड प्रेशर, टाइप-2 डायबिटीज और दिल से जुड़ी बीमारियों की चपेट में भी आ सकते हैं।

इन बातों का जरूर रखें ध्यान

1) पीना पिएं

अगर तनाव महसूस करने लगे हैं, तो पानी की मात्रा बढ़ाएं। पानी शरीर को हाइड्रेशन ही नहीं, बल्कि दिमाग को सुकून का सिग्नल भी देता है। पानी से स्किन और पेट भी अच्छा रहता है और आप तनाव मुक्त होते हैं।

2) एक्सरसाइज शुरू करें

सुबह की सैर-व्यायाम करने जाएं, रनिंग करें। कुछ एमएनसी में अब जिम की भी सुविधा है। जिम करने से सेरोटोनिन (हैपी हार्मोन) रिलीज होता है, इससे 30-35 प्रतिशत तनाव तुरंत खत्म हो जाता है।

3) शौक को जिंदा रखें

नए काम करना शुरू करें, शौक विकसित करें। कई बार पढ़ने का शौक भागदौड़ के चलते पूरा नहीं हो पाता। संगीत, बागवानी, प्रकृति से जुड़ें, इन्हें छोड़े नहीं। इन छोटी-छोटी चीजों का प्रभाव बहुत बड़ा होता है।

4) पैसे से ज्यादा खुशहाली ढूंढ़ें

पैसे के बजाय खुशहाली को कमाना सीखना चाहिए। पैसे बनाने में पांच के बजाय सात साल लग जाएंगे, पर स्वास्थ्य गया तो उसे कोई नहीं लौटा पाएगा।

5) सकारात्मकता का अभ्यास

मानसिक स्वास्थ्य पर नजर रखना एक दिन का काम नहीं है, यह अभ्यास का विषय है। सकारात्मक महसूस करने के लिए कोई एक दिन तय नहीं कर सकते। इसे आदत में शामिल करना होगा।

6) विचारों और भावनाओं के साथ संतुलन

विचारों और भावनाओं का सम्मान करना सीखना होगा। ये सब माइंडफुलनेस अभ्यास, व्यायाम और सकारात्मक दृष्टिकोण से ही होगा।

7) चाहने से नहीं करने से होगा

जब जिम्मेदारी खुद लेंगे तो समय भी निकाल लेंगे। हमारे डाक्टर 12 से 14 घंटे तक सेवाएं देने के बाद भी फिट रहने का भरपूर जतन करते हैं। उनसे सीखना चाहिए। बहाने से जिंदगी नहीं चलेगी। बदलाव चाहने से नहीं, करने से ही होगा।

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जागरूक और एकाग्र रहें, पर तनाव लेकर नहीं

हमें जिंदगी में कार्यों की प्राथमिकता तय करनी चाहिए। काम के साथ हमारा शरीर और मन भी होता है, इन सभी के बीच संतुलन जरूरी है। शरीर या मन दुखित होगा, तो काम भी नहीं होगा। कोई भूखा रहकर या अनिद्रा में काम तो नहीं कर सकता। हर डेढ़ घंटे पर थोड़ा रिलैक्स करें, दूर जाकर या खड़े होकर काम करें। कुछ प्लान कर रहे हैं, तो आंखें बंद करके या चलते-चलते सोचें। थोड़ी झपकी ले सकते हैं। आंखें बंद करके सुनें, जो प्रिय लगता हो।

तनाव कोई लेने की चीज नहीं

तनाव और समय का दबाव दोनों अलग-अलग हैं। निर्धारित समय में एकाग्रता से काम करना अच्छा है, पर तनाव लेना अच्छा नहीं है। काम होगा या नहीं, कोई चिल्लाएगा, यह सोचने के बजाय वर्तमान में रहें। जितनी क्षमता है उतना ही करें। यह मन के प्रशिक्षण और आत्म अनुशासन से आएगा। निश्चित ही विचारों का आवेग आएगा, पर बचना तो हमें ही है।

गाइडेड मेडिटेशन करें

दिमाग गर्म हो गया, उसे शांत रखें, दो या पांच मिनट के लिए कोई विचार न करें। भोजन से पहले कुछ सीढ़ियां चढ़ लें। हल्का भोजन, फल, सूखे मेवे लें। हर दो घंटे में पेट में कुछ ऊर्जा जानी चाहिए। पर्याप्त पानी पीते रहें। भूख नहीं लगी, तो जबरदस्ती भोजन भी न करें। थोड़ा गाना गा लीजिए, पौधों को देख लें।

अपनाएं ये टिप्स

तनाव का संबंध सांस के साथ है। धीरे-धीरे लंबी सांस लें। दो-तीन बार भ्रामरी प्राणायाम करें। तनाव हटाना है तो शरीर में थोड़ा खिंचाव लाएं, हाथों को फैलाएं। इससे मांसपेशियां रिलैक्स हो जाती हैं। लोगों से मिलना-जुलना शुरू करें। उनसे सुख-दुख साझा करें। फोन पर ही बात कर लें।

- डॉ. हंसा जी योगेन्द्र, योग विशेषज्ञ एवं निदेशक, द योग इंस्टीट्यूट, मुंबई

स्ट्रेस को नियंत्रित करने का अभ्यास जरूरी

तनाव को नियंत्रित करने का सबसे सहज तरीका है मित्र और स्वजन के साथ घुलना-मिलना और घूमना-फिरना। स्ट्रेस हमारे अंदर प्रेशर कुकर की तरह होता है। यह इकट्ठा होता रहा, तो एक दिन फट जाएगा। सीटी की तरह प्रेशर निकालते रहना आवश्यक है। अगर भागती-दौड़ती दुनिया में अपनों का सहारा नहीं मिला, तो मुसीबत आएगी ही। शरीर में आक्सीटोसिन हार्मोन तभी रिलीज होता है, जब हम स्वजन और प्रियजन के साथ होते हैं। यह हार्मोन एंटी स्ट्रेस की तरह होता है। 10-15 मिनट के लिए ही फोन और गैजेट को हटाकर उनके साथ भोजन करें, बात करें। इससे 40-50 प्रतिशत तनाव कम हो जाएगा। वर्क फ्राम होम के चलते हर समय स्क्रीन के सामने रहना होता है। इससे आंखें और मस्तिष्क थक रहे हैं। स्क्रीन देखने से डोपामीन बार-बार रिलीज होता है। यह नशीले पदार्थों के सेवन, इंटरनेट एडिक्शन से भी होता है। इससे बचना चाहिए।

सुबह की शुरुआत धीमी हो

माइंडफुलनेस को जीवन में उतारना आवश्यक है। इसके लिए निरंतर प्रयत्न करना होगा। यह प्राणायाम से एक स्तर ऊंचा है। सुबह उठते ही ध्यान रखें कि दिन की शुरुआत धीमी हो। उठते ही फोन चलाने, भागदौड़ करने और तनाव लेने की आदत छोड़ कर खुद पर बड़ा उपकार कर सकते हैं। सुबह आधे-एक घंटे पहले उठें, दिन की शुरुआत धीमें करें, आपका दिमाग तरोताजा रहेगा।

- डॉ. एकांश शर्मा, साइकियाट्रिस्ट, इंस्टीट्यूट आफ ह्यूमन बिहैवियर एंड एलाइड साइंसेज, नई दिल्ली

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