Project Garima: लड़कियों में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ा रहा है प्रोजेक्ट गरिमा
परिवर्तन एक सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक प्रक्रिया है और मानसिकता बदलने में समय लग सकता है लेकिन इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड का प्रोजेक्ट गरिमा सही दिशा में एक बड़ा कदम है। इस परियोजना ने न केवल बातचीत शुरू की है बल्कि पहुंच सामर्थ्य और जागरूकता भी प्रदान की है।
नई दिल्ली। मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता हर महिला के जीवन का एक मुश्किल लेकिन महत्वपूर्ण पहलू है। 12 वर्ष की आयु के आसपास किशोरावस्था में प्रवेश करने और 40 वर्ष की आयु में मेनोपॉज़ तक पहुंचने तक हर महिला इनसे गुज़रती है। हर महिला अपने जीवन में कुल मिलाकर लगभग 2,100 दिन मासिक धर्म में बिताती है, जो उसके जीवन के लगभग छह वर्षों के बराबर है। इसके बावजूद आज भी हमारे देश में पीरियड्स और उससे जुड़ा हाइजीन एक ऐसा विषय है, जिस पर कभी खुलकर चर्चा नहीं की जाती।
भारत में, समाज ऐसा है जो लड़कियों पर पीरियड्स के दौरान कई तरह के नियम, प्रतिबंध, अलगाव और तुच्छ अपेक्षाएं थोपता है। जिसकी वजह से लड़कियों के आत्म-अभिव्यक्ति, स्कूली शिक्षा, गतिशीलता और स्वतंत्रता सहित कई पहलुओं में वृद्धि और विकास प्रभावित होता है। इससे महिलाओं की मानसिकता पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है।
MHM यानी मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के दिशानिर्देशों के अनुसार, माहवारी के दौरान 60% बालिकाएं अपने स्कूल नहीं जा पातीं और 86% बच्चे मासिक धर्म शुरू होने तक इसके बारे में पूरी तरह से अनजान रहते हैं। सामाजिक बहिष्कार और मासिक धर्म स्वच्छता पर शिक्षा की कमी की वजह से भारत में कई लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ता है या हर महीने अपने मासिक धर्म के दौरान घर पर ही बैठना पड़ता है। यह प्रथा मुख्य रूप से ग्रामीण भारत के कई हिस्सों में देखी जाती है, जहां किशोर लड़कियों में मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता और ज्ञान की कमी है। मानसिक और मनोवैज्ञानिक तनाव से गुज़रने के साथ ही लड़कियों को स्वच्छ सैनिटरी पैड प्राप्त करने, उन्हें सुरक्षित रूप से फेंकने और खुद को साफ रखने में भी भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
इन समस्याओं को देखते हुए, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, उत्तरी क्षेत्र पाइपलाइन कार्यालय - पानीपत, हरियाणा ने पहल की और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत भारत सरकार के उद्यम एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड के साथ गरिमा परियोजना शुरू करने का फैसला किया।
प्रोजेक्ट गरिमा किशोर लड़कियों के मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड की एक सीएसआर पहल है। इसका उद्देश्य वेंडिंग मशीनों के माध्यम से अच्छी क्वालिटी के सैनिटरी नैपकिन लड़कियों तक पहुंचाना है और इंसीनरेटर्स के माध्यम से सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करना भी है। इसका उद्देश्य मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के बारे में शिक्षा प्रदान करना और इसके बारे में मिथकों और गलत धारणाओं को मिटाना भी है।
इस परियोजना से स्कूलों में लगभग 21,000 किशोरियों को लाभ मिल रहा है। इस परियोजना के तहत राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा के 41 सरकारी स्कूलों में 150 सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन, 50 सैनिटरी नैपकिन इंसीनरेटर और 81,000 पैक की आपूर्ति और स्थापना की जा रही है।
मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम के साथ छात्राओं को सशक्त बनाने के लिए 25 जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं। एचएलएल सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनों के माध्यम से छात्राओं के लिए अब उच्च गुणवत्ता वाले सैनिटरी नैपकिन आसानी से उपलब्ध हैं। इंसीनरेटर का काम उपयोग किए गए नैपकिन को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से नष्ट करना है।
जागरूकता सत्रों के माध्यम से छात्राओं को सुरक्षित और स्वस्थ मासिक धर्म स्वच्छता प्रथाओं को अपनाने के बारे में परामर्श और प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
एचएलएल मैनेजमेंट एकेडमी (एचएमए), एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड (एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र परियोजना की कार्यान्वयन एजेंसी है) की 100% सहायक कंपनी है। एचएलएल एक हेल्थकेयर सीपीएसई है जो देश में विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल परियोजनाओं में काम कर रहा है। यह मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता में एक दशक से अधिक समय से काम कर रहा है और सैनिटरी नैपकिन के सबसे बड़े निर्माताओं में से एक है। यह सीपीसीबी दिशानिर्देशों का पालन करने वाले सैनिटरी नैपकिन का निपटान करने के लिए वेंडिंग मशीन और इंसीनरेटर का निर्माता है।
परिवर्तन एक सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक प्रक्रिया है और मानसिकता बदलने में समय लग सकता है, लेकिन इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड का प्रोजेक्ट गरिमा सही दिशा में एक बड़ा कदम है। इस परियोजना ने न केवल बातचीत शुरू की है बल्कि पहुंच, सामर्थ्य और जागरूकता भी प्रदान की है।