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Retinoblastoma Awareness Week: छोटे बच्चों में होने वाला खतरनाक कैंसर है रेटिनोब्लास्टोमा, ये हैं इसके लक्षण

Retinoblastoma Awareness Week इस साल 14 मई से 20 मई तक रेटिनोब्लास्टोमा अवेयरनेस वीक मनाया जा रहा है। जो ज्यादातर 5 साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। तो क्या है। यह बीमारी आइए जानते हैं एक्सपर्ट से।

By Priyanka SinghEdited By: Priyanka SinghUpdated: Thu, 18 May 2023 01:12 PM (IST)
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Retinoblastoma Awareness Week: छोटे बच्चों में होने वाला खतरनाक कैंसर है रेटिनोब्लास्टोमा
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Retinoblastoma Awareness Week: आंख के कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल मई के दूसरे सप्ताह में विश्व रेटिनोब्लास्टोमा जागरूकता सप्ताह मनाया जाता है। तो इस साल 14 मई से 20 मई तक रेटिनोब्लास्टोमा अवेयरनेस वीक मनाया जा रहा है। इस बारे में जानकारी होना जरूरी है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों में व्हाइट रिफ्लेक्स होना कैंसर का संकेत हो सकता है। अगर इसका पता जल्द लगाया जाए तो ऐसे बच्चे जिन्दा रह सकेंगे। 

रेटिनोब्लास्टोमा 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में बचपन में होने वाला सबसे नॉर्मल आई कैंसर है। इससे एक या दोनों आंखों पर असर पड़ सकता है। 20-30% मामले वंशानुगत होते हैं जिसका मतलब है कि यह एक पीढ़ी को दूसरी पीढ़ी से विरासत में मिलता है और बाकी मामले छिटपुट प्रकृति के होते हैं। पूरी दुनिया में हर साल 4000-5000 इसके नए मामले सामने आते हैं जिनमें से 1500-2000 मामले भारत से होते हैं इसलिए जरूरी हो जाता है कि इस कैंसर के बारे में और उसके उपचार को जानना।

ल्यूकेमिया या हड्डी के कैंसर जैसे बचपन में होने वाले अन्य प्रकार के ट्यूमर्स की तुलना में अगर इस कैंसर का पता जल्द लग जाए और शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने से पहले इसका इलाज हो जाए तो इससे इसका उपचार संभव है। लेकिन जागरूकता की कमी, निदान और उपचार में देरी की वजह से यह गंभीर होता जाता है। इसलिए इस कैंसर के शुरुआती लक्षणों और संकेतों के बारे में माता-पिता, दादा-दादी समेत स्वास्थ्य कर्मचारियों में भी जागरूकता फैलाना जरूरी है। लक्षणों को पहचानते हुए उचित इलाज से इसे गंभीर होने से काफी हद तक रोका जा सकता है और बच्चे की आंखों और जीवन को बचाया जा सकता है।

इन लक्षणों पर दें ध्यान

चूंकि रेटिनोब्लास्टोमा ज्यादातर बच्चों में होता है इसलिए इसके लक्षण स्पष्ट नज़र नहीं आते हैं और शुरुआत में तो बिल्कुल ही पता नहीं चलते। इसके लक्षणों में कम नज़र आना, आंखें लाल पड़ना, आंखों में दर्द, सूजन और कभी-कभी नेत्रगोलक का बाहर की ओर निकलना (प्रॉपटोसिस) भी शामिल हो सकता है।

रेटिनोब्लास्टोमा का पता लगाने के लिए जरूरी जांचें

अगर किसी बच्चे में इनमें से कोई भी लक्षण हो तो तुरंत नजदीकी नेत्र रोग विशेषज्ञ/रेटिना एक्सपर्ट से संपर्क करें। एक नेत्र रोग विशेषज्ञ दोनों आंखों की रेटिना का इनडायरेक्ट ऑपथैलमोस्कोपी द्वारा सम्पूर्ण जांच करके इस कैंसर का आसानी से निदान कर सकता है। अगर जरूरी हो तो नेत्र चिकित्सक द्वारा आंख का यूएसजी, ऑर्बिट का सीटी/एमआरआई किया जा सकता है जिससे कैंसर के फैलाव सीमा का पता लगाया जा सके और उसके उपचार की योजना बनाई जा सके। यह उपचार आमतौर पर एक ओकुलर ऑन्कोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है जिसमें आंख के अंदर मौजूद एक छोटे ट्यूमर की लेजर/क्रायोथेरेपी या बड़े ट्यूमर के लिए कीमोथेरेपी/रेडियोथेरेपी की जाती है। नई तकनीकों में इंट्रा-आर्टरीयल कीमोथेरेपी, जहां कीमोथेराप्यूटिक दवाओं को आंख में रक्त आपूर्ति करने वाली धमनी में सीधे डाला जाता है और प्लाक रेडियोथेरेपी, जहां कुछ दिनों के लिए रेडियोधर्मी सामग्री वाले एक छोटे उपकरण को ट्यूमर के ऊपर रखा जाता है का उपयोग किया जाता है।

अगर इन लक्षणों को पहचानने और उसके उपचार में देर हो जाती है तो ट्यूमर को अन्य अंगों में फैलने से रोकने और बच्चे की जान बचाने के लिए नेत्रगोलक को निकालना पड़ सकता है। बच्चे की जांच रिपोर्ट, स्कैन और अन्य इमेजिंग टेस्ट डॉक्टरों के लिए यह निर्धारित करने के काम आएंगी कि रेटिनोब्लास्टोमा से आंख के आसपास के हिस्से प्रभावित हुए हैं या नहीं।

ध्यान दें

- उपचार के परिणामों और सफलता की गुंजाइश को बढ़ाने के लिए जागरूकता, कैंसर की शीघ्र पहचान और शीघ्र निदान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समय-समय पर आंखों की उचित देखभाल करने की सलाह दी जाती है खासकर तब जब माता-पिता या भाई-बहन में से किसी को भी रेटिनोब्लास्टोमा रहा हो।

- हर किसी के लिए और विशेष रूप से पांच साल से कम उम्र के बच्चों में घातक ट्यूमर का पता लगाने के लिए आंखों की साल में एक बार जांच कराना आवश्यक है।

यह ध्यान रखना जरूरी है कि रेटिनोब्लास्टोमा का उपचार पूरा होने के बाद भी कैंसर के वापस आने की संभावना रहती है। इसके अलावा, जिन बच्चों को यह आनुवंशिक रूप से मिला है, उनके शरीर के अन्य हिस्सों में भी कैंसर विकसित होने की संभावना बनी रहती है, इसलिए नियमित फॉलो-अप और स्क्रीनिंग आवश्यक बन जाता है।

(डॉ बिरवा दवे, वीआर सलाहकार, संकरा आई हॉस्पिटल, आनंद से बातचीत पर आधारित)

Pic credit- freepik 

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